यदि इस सबके बावजूद यह लाॅकडाउन नव कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में सफल हो जाता, तो हम यह मान लेते कि किसी बड़े राक्षस से देश के बचाने के लिए हममें से कुछ लोग कुर्बान हो गए, पर आंकड़े बताते हैं कि इतने बड़े और कठोर लाॅकडाउन के बावजूद हम कोरोना के प्रसार को रोकने में सफल नहीं हो सके। जब पहला चरण समाप्त हो रहा था, तो उस समय तक भारत में कोरोना के शिकार हुए कुल लोगों की संख्या साढ़े 10 हजार से भी पार हो चुकी थी। यह संख्या अमेरिका और यूरोप के देशों की संख्या की तुलना में भले कम लगती हो, लेकिन यदि हम एशिया महादेश की बात करें, तो भारत अब कोरोना से संक्रमित तीसरा सबसे बड़ा देश हो गया है। और यदि कोरोना से संक्रमित एक्टिव मरीजों की बात करें तो भारत एशिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है।
भारत की तुलना हमें एशिया, अफ्रिका और आस्टेªलिया महादेशों के देशों से ही करनी चाहिए, अमेरिका और यूरोप के देशों से नहीं, जहां का वातावरण और जलवायु भारत से अलग है। वैज्ञानिकों का कहना है कि नव कोरोना वायरस अन्य वायरसों की तरह ज्यादा तापक्रम पर अपना दम तोड़ देते हैं। भारत गर्म देश है और यहां की गर्मी के कारण वायरस का फैलाव उतना नहीं होता, जितना अमेरिका और यूरोप के ठंढे देशों में होते हैं। बनारस की एक प्रयोगशाला में यह पाया गया कि 23 डिग्री सेल्सियस पर कोरोना वायरस की संख्या अपनी मूल संख्या से घटकर आधी रह गई थी। जाहिर है, यह ज्ञात तथ्य है कि गर्म देशों में इसका फैलाव कम होता है। इसका प्रमाण एशिया और अफ्रिका के गर्म देश हैं, जहां इसका फैलाव अपेक्षाकृत कम है। चीन में भी इस वायरस का प्रकोप उस समय चरम पर था, जब वहां भारी ठंढक पड़ रही थी। अब वहां का माहौल भी गर्म हो रहा है और स्थिति को पहले से बेहतर बनाने में इस गर्म वातावरण का यकीनन कुछ न कुछ हाथ होगा ही। ईरान में भी हालत यूरोपीय देशों जैसे खतरनाक नहीं है।
सवाल उठता है कि देशव्यापी लौकडाउन के बाद भी हम कोरोना को पराजित क्यों नहीं कर सके? इसका जवाब ढूंढ़ना कठिन नहीं है। इसका सिर्फ एक ही जवाब है और वह यह है कि समय रहते भारत कोरोना के खिलाफ चेता ही नहीं। दिसंबर महीने में ही इस नव कोरोना वायरस के बारे में हम जान चुके थे। पहली गलती हमारी यही हुई कि हम इसे सिर्फ चीन की समस्या समझकर अपने आंखें मूंदे रहे। 29 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी कि इस वायरस से पूरी दुनिया को खतरा है। उसके अगले दिन यानी 30 जनवरी को भारत में कोरोना से ग्रस्त पहला मरीज केरल में मिला। वह चीन के वुहान विश्वविद्यालय का छात्र था और वहीं से भारत लाया गया था। गौरतलब हो कि इस वायरस का जन्मस्थल कथित तौर पर वुहान ही है।
भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और एक भारतीय के कोरोनाग्रस्त होने के तथ्य को नजरअंदाज कर दिया। वह हमारी सबसे बड़ी भूल थी। उसी समय भारत को दुनिया में आइजोलेट किया जाना शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन केन्द्र सरकार के नीति निर्माताओं के कान पर जूं नहीं रेंगी। कोरोनाग्रस्त देशों की नियमित उड़ानों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाना चाहिए था और उस देश के नागरिकों को भारत आने पर रोक लगा दी जानी चाहिए थी। भारत से भी विदेश जा रहे लोगों पर विदेश यात्रा की पाबंदी लगा दी जानी चाहिए थी। ज्यादा से ज्यादा हमें विदेशों में फंसे भारतीयों को भारत लाना चाहिए था और भारत लाकर उन्हें आवश्यक रूप से क्वारंटाइन में रखना चाहिए था।
पर भारत सरकार सोती रही। उसकी लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि 18 जनवरी से 18 मार्च के बीच भारत में 15 लाख से भी ज्यादा लोग विदेशों से आए। इन 15 लाख लोगों में विदेशी भी थे और वैसे एनआरआई भी थे, जो भारत के नागरिक नहीं थे। विदेशी पासपोर्ट रखने वालों को तो सीधे भारत में प्रवेश से रोक दिया जाना चाहिए थे। इन 15 लाख लोगों में वैसे भारतीय भी थे, जो कुछ दिन पहले ही भारत से विदेश जाकर वापस लौटे थे। उनके विदेश जाने पर ही कायदे से प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और उसका खामियाजा हमने देश व्यापी लाॅकडाउन के रूप में देखा और कोरोना के बढ़ते संक्रमण के रूप में भी।
तबलीगी जमात ने स्थिति को और भी बिगाड़ा, लेकिन उसके लिए भी केन्द्र सरकार द्वारा संक्रमित देशों से विदेशियों को दी गई इजाजत ही जिम्मेदार है। जमात के जलसे में 42 देशों के करीब डेढ़ हजार लोग आए थे। वे सरकार से वीजा लेकर ही आए थे। वैसे माहौल में उन्हें वीजा दिया ही क्यों गया? जमात में हिस्सा लेने के लिए मलेशिया, इंडोनेशिया, फ्रांस, तुर्की और चीन तक के लोग आए थे और उनके भारत ने कोरोना वायरस का आयात किया।
जाहिर है, लाॅकडाउन इसलिए विफल हुआ, क्योंकि इसे विफल करने की स्थितियां पहले ही पैदा हो गई थीं। विदेशियों को भारी संख्या में यहां आने दिया गया और उनके क्वारंटाइन का सही इंतजाम भी यहां नहीं था। तबलीगी जमात की ही बात की जाय, तो सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या उसमें आए विदेशी तबलीगियों को क्या वास्तव में क्वारंटाइन किया गया था? सच कहा जाय, तो केन्द्र सरकार की तरफ से भारी चूक हुई और उस चूक का खामियाजा भारत भुगत रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन हमारे लिए शुभ समाचार लेकर आएंगे और दूसरे चरण में कोरोना के इस राक्षस पर हम नियंत्रण कर लेंगे। (संवाद)
लाॅकडाउन का पहला चरण विफल क्यों?
मोदी सरकार ने पहले ही कर दी थी भारी चूक
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-04-14 10:03
लाॅकडाउन का पहला चरण समाप्त हो गया है और दूसरे चरण की शुरुआत भी हो चुकी है। यह लाॅकडाउन देश व्यापी थी और निश्चय ही बहुत कठोर थी, जिसके कारण देश भर में विस्थापित मजदूरों को भारी परेशानी हुई और उनमें से कइयों की मौत तक की खबरें सोशल मीडिया में आई हैं। अनेक लोगों ने आत्महत्या भी कर ली। सरकार ने अपने स्तर पर उनकी तकलीफों को दूर करने की कोशिश भी की, लेकिन उसके बादवजूद जान और माल का भारी नुकसान हुआ।