परंतु आज जिस दुश्मन का सामना पूरे विश्व को करना पड़ रहा है वह हिटलर और मुसोलिनी से ज्यादा खतरनाक और ताकतवर है। ऐसा इसलिए है कि वह दिखाई नहीं देता। यदि उसे हराना है तो सभी को अपने सारे मतभेदों को भुलाकर एक होना होगा। दुनिया के सभी वैज्ञानिकों, तकनीकी और चिकित्सकीय संसाधनों को मिलकर कोरोना को हराना होगा। परंतु दुःख की बात है कि ऐसा नहीं हो रहा है।
चीन और अमेरिका एक-दूसरे को जानी दुश्मन समझ रहे हैं। अनेक देशों के भीतर भी कई प्रकार की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जारी है। हमारे देश में भी राजनैतिक पार्टियां एक-दूसरे के साथ शत्रु जैसा व्यवहार कर रही हैं। न सिर्फ यह, बल्कि ऐसी बातें की जा रही हैं जिससे सौहार्द का वातावरण किसी भी क्षण दूषित हो सकता है।
हमारा प्रांत भी इससे अछूता नहीं है। सत्ताधारी पार्टी पर कांग्रेस विभिन्न मुद्दों को लेकर हमला कर रही है और सत्ताधारी पार्टी उसी भाषा में जवाब दे रही है। जबकि समय यह जरूरी है कि सभी पार्टियां एकजुट होकर इस महामारी का सामना करें।
अतीत में हमारे प्रदेश ने इस तरह की एकता दिखाई है। मैं इसके तीन उदाहरण देना चाहूंगा। हमारे प्रदेश और विशेषकर भोपाल पर उस समय जबरदस्त मुसीबत आई थी जब यूनियन कार्बाईड के कारखाने से आधी रात के पहले ऐसी जहरीली गैस रिसी जिसने हजारों लोगों की जान ले ली। उस समय अर्जुन सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
इसके कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव हुए और चुनाव के बाद अर्जुन सिंहजी को पंजाब का राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद मोतीलाल वोरा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने गैस त्रासदी से उत्पन्न समस्याओं का मुकाबला करने के लिए परामर्शदात्री समिति बनाई। समिति में सभी राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों, समाज के विभिन्न अंगों, अधिवक्ता, साहित्यकार, रंगकर्मी, उद्योगपति, व्यापारी, महिला, पत्रकार, ट्रेड यूनियन, सांसद, केन्द्रीय मंत्री व स्थानीय विधायक शामिल किए गए। गैस पीड़ितों की अबाध रूप से सहायता होती रहे इसलिए भोपाल क्षेत्र से होने वाले लोकसभा चुनाव को स्थगित कर दिया गया।
इस समिति की बैठक लगभग प्रति सप्ताह होती थी। वोराजी स्वयं बैठक में उपस्थित रहते थे। समिति की अनेक उपसमितियां बनीं। समिति और उपसमितियों की बैठकों में शासन और अधिकारियों की गतिविधियों की समीक्षा होती थी। समिति और उपसमितियों की बैठकों की कार्यवाही इतने लोकतांत्रिक ढंग से होती थी कि बाहर शासन की आलोचना लगभग बंद हो गईं और गैस पीड़ितों के हित में न सिर्फ अनेक फैसले हुए वरन् उनपर युद्धस्तर पर अमल भी हुआ। वोराजी स्वयं गैस पीड़ित इलाकों का भ्रमण करते थे और समिति के सदस्यों को भी अपने साथ ले जाते थे। मैं भी इस समिति का सदस्य था इसलिए मुझे उसका योगदान आज भी याद है।
भोपाल पर दूसरी मुसीबत सन् 1992 में आई। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद देश के अनेक भागों के साथ भोपाल में भी दंगा हुआ। उस समय सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे। उनपर गंभीर आरोप लगते थे। उस दौरान उन्होंने भी सभी पार्टियों, अनेक संगठनों, समाज के विभिन्न वर्गों से परामर्श लेने का सिलसिला प्रारंभ किया। लगभग प्रतिदिन मंत्रालय में नागरिकों की बैठक होती थी। पटवाजी सबसे परामर्श करते थे। शहर में हुई घटनाओं से सबको अवगत कराते थे। बैठक में आए सुझावों पर अमल भी करवाते थे।
उस दौरान विभिन्न संगठनों और पार्टियों के लोग भी शहर का भ्रमण करते थे। भ्रमण तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में होता था। मैं भी इस टीम में शामिल रहता था। प्रतिदिन सुबह पटवाजी कई लोगों को फोन करके जानकारी लेते थे। मैं भी उन लोगों में था जिन्हें पटवाजी प्रातः 6 और 7 के बीच फोन करके जानकारी लेते थे। इस परामर्श से कितना लाभ हुआ यह कहना कठिन है परंतु इससे सार्वजनिक रूप से आलोचना और प्रत्यालोचना का सिलसिला काफी कम हो गया।
सन् 1992 के दंगों के लगभग एक वर्ष बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए और दिग्विजय सिंह चुनाव के बाद गठित हुई सरकार के मुखिया बने। उन्होंने संकल्प किया कि वे किसी भी हालत में प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ने नहीं देंगे। इस उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रीय एकता समिति का गठन किया। इसमें भाजपा सहित सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय मंत्री, सांसद, ट्रेड यूनियन, साहित्यकार, शिक्षक, पत्रकार व देश के नामी कलाकारों को भी इस समिति में शामिल किए गए।
उन्होंने मुझे इस समिति के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। समिति की बैठक लगभग पन्द्रह दिन से एक माह के अंतराल में होती थी। पूरे प्रदेश में समिति द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। नतीजे में प्रदेश में शांति एवं सौहार्द कायम रहने में समिति का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
कितना अच्छा हो कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी ऐसी एक सर्वव्यापी समिति बनाएं। वैसे वे इस समय काफी परिश्रम के साथ अपना उत्तरदायित्व निभा रहे हैं परंतु यदि सबका सहयोग प्राप्त कर इस महामारी का मुकाबला करेंगे तो उन्हें और सफलता मिलेगी। (संवाद)
मिलकर करना होगा कोरोना का मुकाबला
हमें अतीत से सीखना होगा
एल. एस. हरदेनिया - 2020-05-02 09:51
जब दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देश मिलकर हिटलर और मुसोलिनी का मुकाबला कर रहे थे उस दौरान इन सभी देशों ने जबरदस्त आंतरिक एकता दिखाई। न सिर्फ इन देशों वरन् उन्होंने दुनिया के पहले साम्यवादी देश सोवियत संघ से अपने तमाम मतभेदों को भुला दिया था और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टल चर्चिल, अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और सोवियत संघ के सर्वोच्च शासक मार्शल स्टालिन ने मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाया। इसके चलते हिटलर, मुसोलिनी और जापान को हार माननी पड़ी।