ये शब्द हैं सुप्रसिद्ध पत्रकार दुर्गादास के, जो उन्होंने सरदार पटेल के पत्रव्यवहार के दसवें खंड की भूमिका में लिखे हैं। दुर्गादास ने दस पृथक पुस्तकों में सरदार पटेल के पत्रव्यवहार को संकलित किया है। इन पुस्तकों से जहां हमंे पटेल और नेहरू के मतभेदों के बारे में जानकारी मिलती है वहीं यह तथ्य भी उजागर होता है कि तमाम मतभेदों के बावजूद दोनों के बीच पारस्परिक स्नेह और सम्मान का धागा भी किस मजबूती से जुड़ा हुआ था।

पत्र व्यवहार के दसवें खंड में सरदार पटेल की पुत्री मनीबेन पटेल ने सरदार पटेल और नेहरू के बारे मे महात्मा गांधी की धारणा केा उद्धत किया है। मनीबेन लिखती हैं ‘‘गांधीजी पटेल और नेहरू को बैलों की जोड़ी कहते थे। इन दोनों बैलों की जोड़ी ही राष्ट्र के भार को खींचती थी।‘‘
दुर्गादास सरदार पटेल के इंदौर में दिए गए भाषण का उल्लेख करते हैं। इंदौर में वर्ष 1950 में एक सभा को संबोधित करते हुए पटेल ने कहा था ‘‘कांग्रेस अपनी पूरी ताकत से नेहरू के साथ है।‘‘

नेहरूजी को संबोधित एक पत्र में पटेल गांधी की सलाह का उल्लेख करते हैं। गांधी ने सलाह दी थी कि दोनों (नेहरू और पटेल) को राष्ट्रहित की खातिर मिलकर चलना है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह देश के लिए खतरनाक होगा।

पटेल लिखते हैंः ‘‘मैंने बापू के इस अंतिम परामर्श पर पूरी मुस्तैदी से अमल किया है। इस परामर्श के अनुसार मैंने आपका पूरी मजबूती से साथ दिया है। यद्यपि इसके बावजूद मैं आपको समय-समय पर अपने विचारों से बिना किसी हिचक के अवगत कराता रहा हूं। मैं पूरी तरह से आपके प्रति वफादार रहा हूूं। अनेक अवसरों पर हमारे बीच मतभेद हुए हैं। कभी-कभी इन मतभेदों ने गंभीर रूप भी लिया है। इसके बावजूद हमने राष्ट्र के हित में नीति निर्धारण की प्रक्रिया में इन मतभेदों को रोड़ा नहीं बनने दिया है।‘‘

इस बीच पटेल की तबियत खराब हो गई। पटेल बंबई चले गए। नेहरू ने उन्हें पत्र लिखकर कहा कि वे पूरी तरह से अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान दें। वे उन समस्याओं को पूरी तरह से भूल जाएं जिनका सामना हमें करना पड़ रहा है।

भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटन ने 16 अप्रैल 1950 को पटेल को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया कि आप भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति हैं। आपके समर्थन और सहयोग के चलते नेहरू कभी भी असफल नहीं हांेगे। आप जो समर्थन नेहरू को दे रहे हैं उसका न सिर्फ राष्ट्रीय वरन् अंतर्राष्ट्रीय महत्व है।

वैसे सरदार पटेल को कांग्रेस के बहुमत का समर्थन प्राप्त था। परंतु अपने बिगड़ते हुए स्वास्थ्य के कारण वे देश की पूरी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते थे। पटेल की स्पष्ट राय थी कि नेहरूजी की दुनिया भर में जो प्रतिष्ठा है वह देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वे नेहरू को पूरा सहयोग देने के लिए प्रस्तुत थे किंतु उनका एक ही तर्क था कि नेहरू को जरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए- विशेषकर मुसलमानों के बारे में। पटेल ने शेख अब्दुल्ला के रवैये के बारे में नेहरू को अनेक बार चेतावनी दी थी।

इस तरह ऐसे कुछ मुद्दे थे जिनको लेकर दोनों में मतभेद थे। परंतु पटेल इस बात को महसूस करते थे कि नेहरू को जनता का अगाध स्नेह प्राप्त था। सच पूछा जाए तो नेहरू ही भारत था और इसलिए देश के बुनियादी हितों के मद्देनजर पटेल ने नेहरू को बिना शर्त समर्थन दिया।

सरदार पटेल की एक जीवनी प्रसिद्ध आईसीएस अधिकारी केवल एल. पंजाबी ने लिखी है। इस जीवनी का शीर्षक है ‘‘द इनडोमीटेबिल सरदार‘‘। इस पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न पर पटेल और महात्मा गंाधी के बीच भी मतभेद थे। परंतु इन मतभेदों के बावजूद पटेल ने हमेषा गांधी को अपना गुरू माना और स्वयं को उनका चेला।

पटेल और नेहरू की चर्चा करते हुए गांधी हमेशा कहा करते थे कि मेरे दो पुत्र हैं - जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल। दोनों को मेरा बराबर का स्नेह प्राप्त है। दोनों पर मेरा बराबर का भरोसा है। गांधी का विश्वास था कि दानों मिलकर भारत का नेतृत्व करेंगे।

अन्य बातों के अतिरिक्त आरएसएस को लेकर नेहरू और पटेल में मतभेद थे। नेहरूजी संघ को एक खतरनाक संगठन मानते थे। पटेल की मान्यता थी कि संघ का मत परिवर्तन किया जा सकता है। इसके बावजूद पटेल ने संघ के नेताओं से यह स्पष्ट कह दिया था कि वे अपना आक्रामक रवैया छोड़ दें और कानून अपने हाथ में न लें।

दुर्गादास दूसरे खंड के अंत में गांधी, पटेल और नेहरू का महत्वपूर्ण शब्दों में मूल्यांकन करते हैं। गांधी ने टार्च जलाई, नेहरू गांधी के टार्च बियरर थे, पटेल ने टार्च को मसाला दिया। गांधी में लोगों को सम्मोहित करने की ताकत थी, नेहरू में जनता को आकर्षित करने की शक्ति थी और पटेल में सभी चीजों को व्यवस्थित करने की अद्भुत क्षमता थी। इस तरह तीनों ने आजादी हासिल करने और आजाद भारत के विकास में जबरदस्त भूमिका निभाई।

पटेल ने देश को एक किया और प्रशासनिक ढांचा दिया। नेहरू ने देश की आदर्शवादी वैचारिक नींव डाली और दुनिया में देश को एक नैतिक शक्ति के रूप में स्थान दिलवाया।

अंतिम नतीजा यह है कि इतिहास में कभी भी इन तीनों (गांधी, नेहरू व पटेल) के योगदान को कम करके न आंका जाए (जैसा कि किया जा रहा है)। आशा है आज का नेतृत्व सुप्रसिद्ध पत्रकार दुर्गादास की इस चेतावनी को याद रखेगा। (संवाद)