जिस समय वह अनुमान लगाया गया है, उस समय के हिसाब से वह गलत भी नहीं था। प्रतिदिन नये कोरोना मरीजों की संख्या बढ़की करीब 4 हजार तक पहुंच गई थी और जिस गति से बढ़ते हुए वह संख्या वहां तक पहुंची थी, यदि वह गति बरकरार रहती, तो निश्चय ही आज दिल्ली मे कुल कोरोना पाजिटिव लोगों की संख्या 5 लाख से ऊपर ही होती। लेकिन करीब 4 हजार के आंकड़े तक पहुंचने के बाद नये संक्रमण की गति कमजोर हो गई। वह कमजोर होती गई और अभी वह संख्या एक हजार के आसपास है।

मुंबई में भी बहुत तेजी से संख्या बढ़ती थी। लंबे अरसे तक तो वह दिल्ली से आगे ही थी, लेकिन बाद में दिल्ली ने उसे पीछे छोड़ दिया। जाहिर है, मुंबई में वह पहले हुआ, जो दिल्ली में बाद में हुआ। मुंबई में कोरोना विस्तार में आई कमी दिल्ली के कोरोना विस्तार में आई कमी के पहले दर्ज हुई और इस तरह दिल्ली ने उसे दूसरे स्थान पर धकेल दिया।

सवाल उठता है दोनो महानगरों में ऐसा क्या हुआ कि कोरोना संक्रमण की गति कमजोर पड़ने लगी? इस सवाल का जवाब पहले दिल्ली में मिला। दिल्ली में उन लोगों का कोरोना अंटी बॉडी टेस्ट हुआ, जिन्होंने कोरोना संक्रमण को अनुभव नहीं किया था। करीब 21 हजार लोगों का टेस्ट किया गया। पूरी दिल्ली में सैंपल सर्वे के आधार पर लोगों को चुनकर वह टेस्ट हुआ था। पाया गया कि 23 फीसदी से ज्यादा लोगों के शरीर में वह अंटी बॉडी मिला, जो कोरोना संक्रमण के बाद निगेटिव हुए लोगों में पाया जाता है। इसका मतलब है कि उन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ था। उन्हें इसका अहसास नहीं हुआ और उन्होंने इसका भी नहीं कराया और वे संक्रमण मुक्त भी हो गए। उनकी संख्या में यदि कोरोना टेस्ट में पोजिटिव पाए गए लोगों की संख्या जोड़ दी जाय, तो दिल्ली की आबादी की कुल 25 फीसदी को कोरोना हो चुका है और उनमें उस वायरस का अंटी बॉडी तैयार हो चुका हें यह 5 जुलाई तक की रिपोर्ट है। उसके बाद भी उसी तरह से लोग संक्रमित होकर ठीक हो रहे हों और हो सकता है अब 30 या 35 फीसदी लोग कोरोना संक्रमित होकर अपने आप ठीक हो गए हो। टेस्ट में कोराना संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट यही साबित करती है कि दिल्ली की आबादी में हर्ड इम्युनिटी पूरी तरह नहीं, तो आंशिक रूप में हो चुका है। इससे हम दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं। पहला निष्कर्ष तो यह है कि सरकार द्वारा सुझाए गए उपाय कोरोना के प्रसार को रोकने में विफल रहे हैं। दूसरा निष्कर्ष यह है कि कोरोना का संकट अब पहले से कम हो गया है और आने वाले दिनों में यह लगातार कम होता जाएगा, क्योंकि जैसे जैसे कोरोना अंटी बॉडी धारकों की संख्या बढ़ती जाएगी, आबादी के शष्े लोग पहले से ज्यादा सुरक्षित होते जाएंगे।

दिल्ली की तरह मुंबई में भी वही टेस्ट हुआ और वहां तो दिल्ली से भी ज्यादा लोग कोरोना से इम्यून हुए दिखाई पड़े। वहां झुग्गियों में रहने वाले लोगों में से 57 फीसदी कोरोना अंटी बॉडी धारक मिले। स्लम के अलावा अन्य इलाकों में 20 फीसदी लोगों में यह अंटी बॉडी पाया गया। मुंबई में कोरोन का विस्फोट दिल्ली से पहले हुआ था, जाहिर है, वहां ज्यादा लोगों मे अंटी बॉडी आ गई है। आने वाले समय में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जाएगी और मुंबई भी धीरे धीरे कोरोना के संकट से सुरक्षित होती जाएगी।

कहने की जरूरत नहीं कि दिल्ली और मुंबई दोनों हर्ड इम्युनिटी की ओर बढ़ रही है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कुल आबादी का 50 फीसदी इम्यून हो जाए, तो हर्ड इम्युनिटी के आसार तैयार हो जाते हैं। कुछ का कहना है कि यह 60 फीसदी होना चाहिए और कुछ 75 फीसदी भी बोलते हैं। हालांकि कुछ विशेषज्ञ तो 42 फीसदी लोगों के इम्यून हो जाने को ही हर्ड इम्यूनिटी की दशा मान लेते हैं। जो भी हो दिल्ली और मुंबई हर्ड इम्युनिटी की ओर बढ़ रही है और हो सकता है कि वैक्सिन बाजार में आने के पहले ही दोनों महानगर हर्ड इम्यूनिटी की दशा को हासिल कर ले।

यह इम्यूनिटी दिल्ली और मुंबई में ही क्यों, देश के अन्य इलाकों में भी वास्तविकता बन सकती है। जो लाखों या शायद करोड़ों मजदूर झुड के झुंड महानगरों से गांवों की ओर गए हैं, उनमें भी यह इम्यूनिटी बनी होगी। उन्होंने दूसरों को जो संक्रमण दिए हैं उनके शरीर में भी अंटी बॉडी बनी होगी। जिस तरह से कोरोना राष्ट्रव्यापी है, उसी तरह हर्ड इम्यूनिटी बनना भी राष्ट्रव्यापी प्रक्रिया होनी चाहिए।

जब सरकारें कोरोना के फैलाव को रोक नहीं सकतीं और देश की 60 से 70 फीसदी आबादी को संक्रमण होना ही होना था, तो फिर इतना लंबा लॉकडाउन क्यों किया गया? ऐसी बात नहीं है कि लोग हर्ड इम्यूनिटी की भविष्यवाणी नहीं कह रहे थे। कुछ विशेषज्ञ कह रहे थे कि बीमारी को फैलने दिया जाय। इसमे बहुत ज्यादा लोगों की मौत तो होती नहीं है, इसलिए इसे फैलने दिया जाय। फैलकर यह बीमारी अपना इलाज खुद ढूंढ़ लेगी। लेकिन मोदी सरकार ने लंबे समय के लिए लॉकडाउन करने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर दिया और करो़ड़ों लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। लॉकडाउन की पहली घोषणा तो ठीक थी। लोगों को सोशल डिस्टेंस्रिक की शिक्षा देने के लिए वह जरूरी था। लेकिन उसके बाद किया गया लॉकडाउन अविवेकपूर्ण था। (संवाद)