आजादी के बाद नेहरूजी ने शिक्षा आयोग का गठन किया था और डॉ राधाकृष्ण्.ान को उसका अध्यक्ष बनाया था। वे एक आदर्श शिक्षक, महान दार्शनिक, विचारक और प्रभावशाली वक्ता थे। उनके श्रेष्ठ गुणों के कारण भारत सरकार ने सन 1954 में उन्हें देश के सर्वाच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया। वो यह पुरस्कार पाने वाले देश के पहले व्यक्ति थे।

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी (मद्रास) में हुआ था। उनके पुरखे सर्वपल्ली नामक गाँव में रहते थे इसलिए राधाकृष्.ान के परिवार के सभी लोग अपने नामों के आगे सर्वपल्ली उपनाम लगाते थे। आपके पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरास्वामी’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। राधाकृष्.ान के 4 भाई और 1 बहन थी।

विद्यार्थी जीवन

राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उनको क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में 1896-1900 के मध्य पढ़ने के लि, भेजा गया। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से उन्होंने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की।

स्नातक की परीक्षा 1904 में कला वर्ग में प्रथम श्रेणा में पास की। मनोविज्ञान और इतिहास विषय में विशेष योग्यता प्राप्त की। उन्होंने “बाईबिल” का अध्ययन भी किया। क्रिश्चियन कॉलेज में आपको छात्रवृत्ति मिली।

1916 में राधाकृष्.ान ने दर्शनशास्त्र में एम ए किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक पद पर नौकरी पा ली। अपने लेखो के द्वारा पूरी दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित करवाया।

वैवाहिक जीवन

उस जमाने में कम उम्र में शादियाँ होती थी। 1903 में 16 वर्ष की कम आयु में ही उनका विवाह ‘सिवाकामू’ से हो गया। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। उनको तेलगू भाषा का अच्छा ज्ञान था। वह अंग्रेजी भाषा भी जानती थी। 1908 में राधाकृष्णन दम्पति को एक पुत्री का जन्म हुआ।

राजनैतिक जीवन

1947 में अपने ज्ञान और प्रतिभा के कार.ा डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्.ान को संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। उनको अनेक विश्वविद्यालयों का कुलपति बनाया गया।

वे एक गैर परम्परावादी राजनयिक थे। जो मीटिंग देर रात तक चलती थी उसमें डॉ० राधाकृष्णन रात 10 बजे तक ही हिस्सा लेते थे क्योंकि उनके सोने का वक्त हो जाता था।

भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

सन 1962 से 1967 तक डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्.ान जी ने भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल संभाला।

विश्व के जाने-माने दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ० राधाकृष्.ान के राष्ट्रपति बनने पर अपनी प्रतिक्रिया इस तरह दी “यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान् भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषतः खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहि, और महान् भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।”

सप्ताह में 2 दिन कोई भी व्यक्ति बिना किसी अपोइंटमेंट के उनसे मिल सकता था। भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ० राधाकृष्णन हेलिकॉप्टर से अमेरिका के व्हाईट हाउस पहुंचे। इससे पहले कोई भी व्हाईट हाउस हेलीकॉप्टर से नही गया था।

मानद उपाधियाँ

अमेरिका और यूरोप प्रवास से लौटने पर देश के अनेक प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों ने आपको मानद उपाधि देकर उनकी विद्वता का सम्मान किया।

सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।

सन् 1939 से 48 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।

1946 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।

भारत रत्न एवं अन्य पुरस्कार

ब्रिटिश सरकार ने 1913 में डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन को “सर” की उपाधि प्रदान की। 1954 में उपराष्ट्रपति बनने पर आपको भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से पुरस्कृत किया गया। 1975 में आपको अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को पाने वाले वह पहले गैर- ईसाई व्यक्ति है।

मृत्यु

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हुई। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा सराहा जाएगा।

शिक्षक दिवस

उनको सम्मान देने के लिए उनके जन्मदिन 5 सितंबर को हर साल “शिक्षक दिवस” के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन देश के श्रेष्ठ शिक्षको को सम्मानित किया जाता है।

वो शिक्षा को नियमो में नही बांधना चाहते थे। खुद एक शिक्षक होने पर भी वो विश्वविद्यालय में अपनी कक्षा में कभी देर से आते तो कभी जल्दी चले जाते। उनका कहना था कि जो लेक्चर उनको देना था उसके लिए 20 मिनट का समय ही पर्याप्त है। वो सभी छात्र छात्राओं के प्रिय थे। (संवाद)