अब फिर महागठबंधन तैयार करने की चर्चा है, लेकिन बात चर्चा से आगे नहीं बढ़ पाई है। जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाला हम नीतीश कुमार के पाले में जा चुका है और इस कथित महागठबंधन में वामपंथियों को शामिल करने की भी बात हो रही है। बात तो उन्हें भी शामिल करने की हो रही है, लेकिन कांग्रेस को भी अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उसे कितनी सीटें मिलेंगी और कहां कहां से उसके उम्मीदवार खड़े होंगे। वैसे उनके जो वर्तमान विधायक हैं, वे अपनी उम्मीदवारी और सीट के लिए निश्चिंत हैं।
समय बहुत कम है और गठबंधन की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई है। जाहिर है, मुख्य विपक्षी राजद गठबंधन के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक नहीं है। सबसे पहले तो विपक्षी गठबंधन द्वारा मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने पर विवाद हुआ था। लालू यादव ने स्पष्ट कर दिया था कि गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव होंगे। इसका अन्य साथी दलों ने विरोध किया। हम के जीतन राम मांझी ने इसे अस्वीकार्य कहा और आरएलएसपी के उपेन्द्र कुशवाहा के लोगों ने भी इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। कांग्रेस भी पीछे नहीं थी। उसने कहा कि यह सब बाद में तय किया जाएगा। वैसे उसकी ओर से मीरा कुमार का नाम सामने आने लगा।
जाहिर है, कथित महागठबंधन के घटक दलों के नेता मुख्यमंत्री के नाम पर एकमत नहीं हैं। यह समस्या तो फिर भी छोटी है। सबसे बड़ी समस्या तो सीटों का बंटवारा और पहचान है, जिन पर घटक दल लड़ेंगे। इस पर कोई बात ही नहीं शुरू हुई है। हां, राजद को छोड़कर अभी दल अपनी अपनी फरमाइश जारी कर चुके हैं। यदि उनकी फरमाइशें पूरी की गईं, तो राजद के पास लड़ने के लिए एक सीट भी नहीं बचेगी। मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव के लिए भी कोई सीट नहीं बचेगी। उनकी बड़ी फरमाइशों के कारण ही शायद तेजस्वी यादव गठबंधन के लिए ठंढे पड़े हुए हैं। वैसे कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस के अलावा और किसी से गठबंधन करना भी नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि अन्य दलों के उम्मीदवार या तो राजद के टिकट से चुनाव लड़े या कांग्रेस के टिकट से।
इस तरह की बात करना स्वाभाविक भी है, क्योंकि चुनाव के बाद जिस तरह का दलबदल अब देखा जा रहा है, उसे देखकर भरोसा नहीं होता कि कौन किसी दल में चला जाय। यदि जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या कम हो, तो फिर एक नाव से दूसरी नाव पर कूद कर जाना बहुत आसान हो जाता है। वीआईपी और आरएलएसपी नाम की दो क्षेत्रीय यह कहिए जातीय पार्टी बिहार में है। एक के नेता मुकेश सहनी हैं, तो दूसरे के उपेन्द्र कुशवाहा। एक निषाद जाति के लोगों को अपना वोट बैंक बताते हैं, तो दूसरे कोयरी जाति के लोगों को। दोनों पार्टियों को लोकसभा में भी सीटें दी गई थीं। उनमें से कोई जीत नहीं सके। खुद उनके नेता भी चुनाव हार गए। उपेन्द्र कुशवाहा तो दो जगहों से चुनाव लड़ गए थे और दोनों जगहां से हार गए। दोनों जाति नेताओं पर टिकट बेचने के भी आरोप लगे। अब यदि उन्हें विधानसभा के लिए भी टिकट दिए जाते हैं, तो वे उन्हें नहीं बेचेंगे, ऐसा दावे से कोई नहीं कह सकता। इसके अलावे वे अपनी अपनी जाति के मतदाताओं का वोट महागठबंधन उम्मीदवारों को दिला पाएंगे, ऐसा भी कोई दावा नहीं कर सकता। कोयरी मुश्किल से बिहार की कुल आबादी के 5 फीसदी होंगे और निषाद एक से दो फीसदी के बीच। और इन दोनों जातियों के लोगों के बीच यादव विरोधी भावना बहुत मजबूत है, जिसके कारण वे राजद को वोट आमतौर पर नहीं देते। मुकेश निषाद और उपेन्द्र कुशवाहा उनके वोट राजद उम्मीदवारों को दिला पाएंगे, यह कोई अज्ञानी ही कह सकता है।
बिहार की सच्चाई यही है कि विपक्षी वोट मुख्यतः राजद के पास ही है। यादव बिहार की सबसे ज्यादा आबादी वाली जाति है, जो लगभग पूरी तरह राजद के साथ है। मुस्लिम भी ज्यादातर राजद के साथ ही हैं। महागठबंधन की सहयोगी पार्टियां इस वोट बैंक में ज्यदा इजाफा नहीं कर पाती। यह हम लोकसभा चुनाव में देख चुके हैं। कांग्रेस के पास भी कोई जनाधार नहीं रहा। उसे भी राजद के समर्थको के बूते ही अपने उम्मीदवार जिताने हैं। सवाल उठता है कि जब उनके पास अपने जनाधार ही नहीं हैं, तो फिर राजद उन्हें सीटें देकर क्या हासिल कर लेगा?
राजद की असली समस्या यह है कि गैर यादव पिछड़े अब उसको अपनी पसंद नहीं मानते। इसलिए उनका वोट पाने के लिए राजद को ज्यादा से ज्यादा टिकट उन जातियों के लोगों को देना होगा। अब यदि राजद कांग्रेस को सीटें देता है, तो कांग्रेस करीब 80 फीसदी अनारक्षित सीटों पर अगड़ी जातियों के उम्मीदवारों को उम्मीदवार बना देती है और लगने लगता है कि राजद यादवों, मुसलमानों और अगड़ी जातियों के गठबंधन का नेतृत्व कर रहा है। जिस पर तुर्रा यह कि अगड़ी जातियों के वोट राजद को मिलते नहीं हैं। इसलिए उसके लिए अच्छा यही रहेगा कि जितनी सीटें वह कांग्रेस व अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों के लिए छोड़े, उतनी ही सीटों पर गैर यादव ओबीसी जातियों को टिकट दे दे। ऐसा करने के लिए उसे सभी 243 सीटों पर लड़ना होगा। तभी वह ज्यादा से ज्यादा ओबीसी जातियों के उम्मीदवारों को टिकट दे पाएगा और उनका वोट पा सकेगा। इससे बेहतर रणनीति राजद की बिहार में इस समय नहीं हो सकती। (संवाद)
बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन
तेजस्वी के लिए अकेला जाना ही होगा फायदेमंद
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-09-15 10:00
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कभी भी अब हो सकती है, लेकिन विपक्ष अभी तक गठबंधन की प्रक्रिया भी शुरू नहीं कर पाया है। पिछले चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस ने एक गठबंधन किया था, जिसे महागठबंधन कहा गया था। अभी भी नाम वही है, लेकिन उसमे महागठबंधन जैसा कुछ भी नहीं है। जदयू उससे बाहर जा चुका है और पिछले लोकसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस, हम, वीआईपी और आरएलएसपी ने आपस में गठबंधन किया था और उस गठबंधन को भी महागठबंधन कहा था। कथित महागठबंधन ने एक सीट सीपीआई(एमएल) के लिए छोड़ दी थी।