लेकिन नीतीश की आलोचना करना अब रामविलास पासवान और उनके बेटे को भारी पड़ रहा है। किस हद तक भारी पड़ रहा है, उसका अनुमान बेटे चिराग पासवान द्वारा पार्टी कार्यकर्त्ताओं को जारी एक से लगाया जा सकता है। उस पत्र में उन्होंने कहा है कि अभी तक चुनावी गठबंधन और सीटों को लेकर उनकी किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से बातचीत नहीं हुई है। उन्होंने बिहार आने में अपनी लाचारी दिखाई है और कहा है कि अपने पिता के पास अस्पताल में रहना वे बिहार चुनाव से ज्यादा जरूरी समझते हैं। जब चुनाव सिर पर हो और सीटों के बंटवारे के लिए बातचीत के लिए पटना आना जरूरी हो, वैसी हालत में दिल्ली में पड़े रहना राजनैतिक रूप से अटपटा लगता है। पुत्र का पिता के लिए फर्ज होता है और जब पिता की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब हो, तो पुत्र को निश्चय ही उनका देखभाल करना चाहिए, लेकिन इस बीच वे किसी और को भी तो सीटों पर बातचीत के लिए अधिकृत कर सकते थे। लेकिन इसका उन्होंने संकेत तक नहीं किया है, जबकि पार्टी में परिवार के अन्य नेता भी हैं।
चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस उस समय से राजनीति मे सक्रिय हैं, जब चिराग पैदा भी नहीं हुए थे। वे बिहार की राजनीति से भलीभांति परिचित हैं। वे कई बार विधायक रह चुके हैं और कई बार प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। आज जो भी बिहार में प्रासंगिकता रखने वाले नेता हैं, उन सबों के साथ पारस काम कर चुके हैं। लिहाजा, यदि पुत्र को पिता के साथ ही अस्पताल में देखभाल के लिए रहना है, तो चाचा पारस को तो गठबंधन की जिम्मेदारी दी ही जा सकती है। लेकिन नहीं, चिराग का कहना है कि वे पटना नहीं आ सकते और किसी ने उनसे सीटों को लेकर बात भी नहीं की है। तो फिर क्या यह माना जाय कि रामविलास पासवान की पार्टी राजग से बाहर हो चुकी है?
ऐसा मानना गलत होगा, क्योंकि रामविलास पासवान अभी भी मोदी सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने अपनी तरफ से कोई चेतावनी सीटों को लेकर नहीं दी है और वे सरकार छोड़ना भी नहीं चाहेंगे। उन्हें पता है कि अकेले बिहार में चुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं। पिछली बार उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी, उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की पार्टी के साथ मिलकर 42 सीटों पर लड़ी थी और जीत सिर्फ दो सीटों पर ही हुई थी। यदि वे अकेले लड़ गए, तो एक भी सीट पर जीत पाना पार्टी के लिए संभव नहीं हो पाएगा। जीत तो दूर, जमानत बचाने के लाले पड़ जाएंगे और उसके बाद उनके परिवार की राजनीति ही समाप्त हो जाएगी।
इसलिए रामविलास पासवान बिना राजद के साथ समझौते का इंतजाम किए राजग छोड़ भी नहीं सकते। राजद से समझौते की अफवाह भी उड़ा दी गई थी और कहा जा रहा था कि राजद पासवान की पार्टी को 45 से 50 सीटें देगा और चिराग पासवान को उपमुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करेगा, लेकिन राजद ने इसका खंडन कर दिया है और कहा है कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। यह अफवाह पासवान के लोग ही उड़ा रहे हैं ताकि भाजपा नेतृत्व पर दबाव डालकर ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जा सकेगी।
पासवान की मुश्किल यह है कि जबतक वे मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं देते, तबतक राजद उनसे बात ही नहीं करेगा और इस्तीफा देकर राजद से बात करने का जोखिम वे उठा नहीं सकते। उन्होंने कई बार लालू यादव को धोखा दिया है। उन्हें खतरा यह भी सताता होगा कि कहीं लालू के बेटे उनसे पुराना हिसाब न चुका दे। लालू यादव एक भावुक नेता थे, इसलिए वे भावना मे आकर पुराने संबंधों का हवाला दिए जाने के बाद कटुता भूल जाते थे, लेकिन अभी वे जेल में हैं और फैसला उनके बेटे को करना है।
इसलिए रामविलास पासवान अभी बुरी तरह फंस गए हैं। उनके बड़बोले बेटे ने नीतीश के खिलाफ बयानबाजी कर अपना केस खुद खराब कर लिया है। नीतीश की पार्टी के प्रधानमहासचिव से स्पष्ट कर दिया है कि पासवान की पार्टी के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन आजतक कभी हुआ ही नहीं। जाहिर है, जदयू पासवान के साथ गठबंधन नहीं करना चाहता और वह चाहता है कि भाजपा अपने हिस्से की कुछ सीटें पासवान की पार्टी के लिए छोड़ दे। नीतीश द्वारा पूरी तरह नकार दिए जाने के बाद चिराग यह कहने की हिम्मत ही नही कर रहे कि उनकी पार्टी 143 सीटों पर, यानी भाजपा की सीटों को छोड़कर अन्य सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
उधर नीतीश ने जीतनराम मांझी की पार्टी को भी राजग में शामिल कर लिया है। अब वे चाहते हैं कि जदयू और भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा हो जाए। अपनी सीटों के हिस्से से वे जीतनराम मांझी को सीटें दे देंगे और भाजपा अपने हिस्से से पासवान की पार्टी को दे दे। इस तरह चिराग को नीतीश ने इस हालत में भी नहीं रहने दिया है कि वे उनसे सीटों के लिए बार्गेनिंग कर सकें। ऐसी हालत में पासवान के पास सिर्फ एक ही विकल्प रह गया है कि अपनी प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए भाजपा से सम्मानजनक सीटें मांगे और जो भी मिले, उसे स्वीकार कर लें। दूसरा कोई अन्य रास्ता उनकी रानजीति को ही समाप्त कर देगा। (संवाद)
बिहार विधानसभा चुनाव: बुरे फंसे रामविलास
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-09-21 09:31
बिहार में गठबंधन और महागठबंधन की कोशिशें जारी हैं। कौन पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी, यह तो स्पष्ट नहीं ही है और इसके साथ यह भी स्पष्ट नहीं है कि कुछ जाति आधारित छोटी पार्टियां किसी गठबंधन का हिस्सा हो भी पाएगी या नहीं। इन जाति आधारित छोटी पार्टियों में आज सबसे खराब दशा रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी की चल रही है। उसके सुप्रीमो रामविलास खुद अस्वस्थ होकर दिल्ली के एक पंचसितारा अस्पताल में भर्त्ती हैं। भर्त्ती हुए तीन सप्ताह से भी ज्यादा हो चुके हैं। उनके बेटे, जिसे उन्होंने पार्टी का अध्यक्ष बना दिया है, गठबंधन की राजनीति में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए बयानबाजी कर रहे थे। रणनीति के तहत वे नीतीश कुमार की आलोचना पर आलोचना किए जा रहे थे। इस बीच वे ध्यान रखते थे कि कहीं गलती से भी उनके मुह से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कुछ निकल न जाय।