दरअसल राज्य को प्रतिदिन इस मौसम में कामकाज के दिन 6100 मेगावाट बिजली चाहिए, लेकिन बिजली का उत्पादन औसतन 5100 मेगावाट का ही हो रहा है। इसलिए कामकाज वाले दिनों में बिजली की कमी 1000 मेगावाट तक की हो जाती है। छुट्टियों के दिन थोड़ी राहत होती है, क्योकि उस दिन बिजली की मांग कम रहती है। पर उस दिन भी बिजली की कमी 400 मेगावाट की होती है।

बिजली की एस कमी के लिए नौकरशाहों और खासकर बिजली प्रशायन को जिम्मेदार माना जा सकता है। वे बिजली के बारे में अग्रिम याजना ही नहीं बना पाते हैं। उत्पादन की क्षमता के करीब 60 फीसदी का ही उत्पादन हो पाता है,ए जबकि अन्य राज्यों में उत्पादन की क्षमता का ज्यादा इस्तेमाल होता है।

गौरतलब है कि राज्य में बिजली के कुल उत्पादन का 90 फीसदी उत्पादन कोयले से होता है। बिजली उत्पादन से जुड़े नौकरशाह कम बिजली उत्पादन के लिए भारतीय रेलवे और कोल इंडिया लिमिटेड को जिम्मेदार बताते हैं। वे कहते हैं कि रेलवे पर्याप्त मात्रा में सही समय पर कोयला नहीं पहंुचाता जिसके कारण उत्पादन क्षमता का बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पाता।

वे कहते हैं कि कोल इंडिया लिमिटेड घटिया कोयले की आपूर्ति कर रहा है। उसके कारण भी कम बिजली पैदा हो रही है। पर सवाल उठता है कि बिजली उत्पादन के अन्य संयंत्रों को भी तो वही कोयला दिया जा रहा है, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में कम बिजली उत्पादन के लिए कोल इंडिया लिमिटेड जिम्मेदार है।

गर्मी के दिनों में एक और समस्या हर साल आ जाती है। वह समस्या बिजली उत्पादन की इकाइयों के खराब हो जाने की है। इस समय हमेशा एक या दो इकाई खराब रहती है। आखिर इसके लिए किसको जिम्मेदार माना जाय?

नौकरशाह महाराष्ट्र का उदाहरण देकर पश्चिम बंगाल की स्थिति को बेहतर बताने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि महाराष्ट्र में बिजली की कमी 6000 मेगावाट है, जो पश्चिम बंगाल की 1000 मेगावाट से कहीं बहुत ज्यादा है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि वहां बिजली की मांग 16000 मेगावाट है। 10000 मंेगावाट की उपलब्धता पश्चिम बंगाल की उपलब्धता का दोगुना है।(संवाद)