ऊपर की पंक्तियां ‘‘कोविड-19 और हमलोग’’ नाम की एक पुस्तक के निष्कर्ष को पेश करती हैं। यह पुस्तक लिखी है डॉक्टर अरुण कुमार अरुण ने, जो पेशे से एक डॉक्टर हैं और जिन्होंने कोरोना मरीजों के बीच में रहकर उनका उपचार भी किया है। वे होम्योपैथी के डॉक्टर हैं। उन्होंने न केवल मरीजों और उनके परिवार के लोगों को नजदीक से देखा और समझा भी है, बल्कि कोरोना संकट काल में हो रहे सामाजिक सांस्कृतिक संक्रमण को भी महसूस किया है और उन्हें अपने शब्दों में इस पुस्तक में व्यक्त किया है। उन्होंने कुछ होम्योपैथी दवा का इस वायरस से बचने में सहायक पाया है। फिलहाल उन्होंने दिल्ली सरकार से उस दबाव के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति भी मांगी है। पुस्तक को प्रकाशित किया है युवा संवाद प्रकाशन ने।

यह पुस्तक कोबिड महामारी के काल में लिखी गई है। जाहिर है, इस काल में घट रही अन्य सारी घटनाओं पर भी लेखक की पैनी नजर है। इसके अध्याय संकटकाल के अलग अलग महीनों में लिखे गए हैं। जाहिर है, यह कोरोना संकट के शरू होने से अबतक के पूरे कालखंड का ब्यौरा प्रस्तुत करती है। चीन में यह शुरू हुआ। कोविड-19 मानव निर्मित वायरस है या यह प्रकृति से आया, इस विवाद को आगे बढ़ाते हुए लेखक का कहना है कि अभी तक मानव विज्ञान ने उस स्तर तक तरक्की नहीं की है कि जीवन को प्रयोगशाला में पैदा किया जा सके। यानी यह कृत्रिम वायरस नहीं है। लेकिन हमारे लिए यह नया वायरस तो है ही।

लेखक एक जगह कहते हैं हमारी जो जीवन शैली है और जिस तरह से देश और दुनिया के लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना जाना हो रहा है, वैसे माहौल में इस तरह की महामारियों की संभावना बनी रहेगी और हम प्रकृति के साथ जो अनावश्यक छेड़छाड़ कर रहे हैं, उसके कारण नये नये वायरस भी पैदा होते रहेंगे और वे हमारे लिए खतरा बनते रहेंगे। मनुष्य समझता है कि इस दुनिया में सभी जीव जन्तुओं को उसने अपने कब्जे में कर लिया है और अब इस पृथ्वी पर उसका प्रभुत्व है। लेखक कहता है कि मानव का नहीं इस दुनिया में वायरसों का प्रभुत्व है, जिनकी संख्या आसमान में जितने तारे हैं, उससे भी अधिक है। और गनीमत यह कि वायरस जीव भी नहीं है। अपने आपमें उसकी कोई सत्ता नहीं होती। जब वह अकेले होता है, तो निर्जीव ही रहता है, लेकिन जैसे ही वह किसी मनुष्य या अन्य जंतु के अंदर घुसता है, तो सजीव हो जाता है और अपनी संख्या बढ़ाने लगता है। पुस्तक में लेखक ने वायरस के वैज्ञानिक चरित्र का भी वर्णन किया है और बताया है कि वह मानव शरीर में घुसकर उसकी कोशिकाओं के साथ क्या क्या खेल करता है। यदि मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है और शरीर उसकी बराबर की ताकत का अंटी बॉडी पैदा कर देता है, तब तो ठीक है, अन्यथा यह वायरस जानलेवा हो जाता है। अबतक ज्ञात वायरसों में यह कोरोनावायरस जिसे कोविड-19 का नाम दिया गया है, इस मामले में अलग है कि मानव के लिए नया होने के कारण एक पहेली बना हुआ है।

कोरोना लूट की चर्चा भी इस पुस्तक में की गई है। एक वर्ग जो आपदा में अवसर तलाशते रहता है इसकी दवा बनाने का दावा कर लूट में व्यस्त है। कुछ दवा कंपनियां दवाएं बना रही हैं और बेच भी रही हैं, लेकिन वे कितनी प्रभावी साबित हो रही हैं, इसका दावा खुद नहीं कर पा रहीं। वैक्सिन बनाने के काम में भी कंपनियां जुटी हुई हैं और एक दूसरे से होड़ कर रही है कि कौन पहले बनाये और कौन ज्यादा लूट सके। इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस महामारी को मानवता के संकट के रूप में देख रहे हैं और इसके निदान के लिए विश्व व्यापी सहयोग के हिमायती हैं। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप उनमें शामिल नहीं।

पुस्तक में एक ऐसी बात का जिक्र है, जिसकी चर्चा नहीं या बहुत कम हुई है। वह यह है कि जिन देशों का शासन महिलाओं के हाथ में है, वहां कोविड- 19 से हुआ नुकसान अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम हुआ है। भारत के पड़ोसी बांग्लादेश और म्यान्मार के उदाहरण के साथ न्यूजीलैंड जैसे अन्य देशों के आंकड़े दिए गए हैं, जो निश्चय ही यह साबित करते हैं कि महिला शासकों ने इस समस्या का कुछ बेहतर तरीके से सामना किया है। जहां तक कोरोना से संक्रमित होने वाली महिलाओं का सवाल है तो कुल संक्रमितों में महिलाओं की संख्या 30 प्रतिशत ही है, शेष पुरुष हैं। जाहिर है, बीमारी की मार से महिलाएं कम प्रभावित हुई हैं, लेकिन इस महामारी से पैदा हुए माहौल का सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को ही हो रहा है। उनकी नौकरियां पुरुषों की नौकरियों से ज्यादा असुरक्षित हैं और लॉकडाउन काल में वे घरेलू और यौन हिंसा की भी बहुत शिकार हुई हैं।

कोरोना पर हिन्दी में लिखी गई शायद यह पहली पुस्तक है, जिसमें इस बीमारी के विभिन्न आयामों का ही वर्णन नहीं है, बल्कि उससे पैदा हुई आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनयिक और राजनैतिक समस्याओं का भी वर्णन है। भारत सरकार द्वारा उठाए गए लॉकडाउन और अनलॉक के बारे में भी जिक्र है, तो यह भी बताया गया है कि आने वाले समय में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। (संवाद)