लेकिन वहां अब आतंक का माहौल कमजोर पड़ा है और अपनी आर्थिक मांगों को लेकर भी लोग अंादोलन करन ेलगे हैं। एक आंदोलन अभी कुछ दिन पहले राज्य सरकार के कर्मचारियों ने अपनी तनख्वाह बढ़ाने के लिए किया था। लंकिन चिता का कारण यह है कि अभी भी सीमा पार से आतंकवादियों का आना जारी है। पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को कमजोर करना नहीं चाहता है और उसकी ओर से कश्मीर समस्या को और भी भड़काने का प्रयास जारी है।

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पाकिस्तान के पक्ष में फैसला लेना शुरू कर दिया है। जिस तरह की तरफदारी ओबामा प्रशायन आज पाकिस्तान की कर रहा है, वैसर बहुत दिनो के बाद देखने को मिल रहा है। वह न सिर्फ पाकिस्तान की सहायता राशि बढ़ा रहा है, बल्कि भारत को भी बाध्य कर रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ बिना किसी शर्त की बातचीत करे और इसकी भी फिक्र न करे कि पाकिस्तान उसके खिलाफ चल रही आतंकवादी गतिविधियों पर कैसा रुख अपनाता है।

अमेरिका के बदले रुख के बाद पाकिस्तान भारत को लेकर ज्यादा आक्रामक हो गया है। उसकी आक्रामकता कश्मीर में आंतंकवाद की आंच को तेज करने के लिए उसे प्रोत्साहित कर रहा है। जाहिर है कश्मीर समस्या पर कोई रणनीति तैयार करने के पहले भारत को पाकिस्तान के रवैये में आ रहे इस बदलाव को महत्व देना होगा।

पिछले एक दशक में दो बार ऐसे मौके आएए जब भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर समझौता होते होते रह गया। एक मौका 1999 में आया था, जब अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा हुई थी। दूसरा मौका 2007 का है, जब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ के बीच भी समस्या के हल के लिए सहमति बनी थी और उस सहमति को अमली जामा पहनाया जाना बाकी था।

भारत के राजदूत रहे पाकिस्तानी राजनयिक नियाज के अनुसार कश्मीर समस्या के लिए एक फार्मूला भारत और पाकिस्तान के बीच तैयार हो गया था। यह 1999 का बाकया है, लेकिन उसके बाद जनरल मुशर्रफ ने कारगिल आपरेशन को अंजाम दे दिया। सारा फार्मूला धरा का धरा रह गया। आगे कुछ कार्रवार्इ्र होती उसके पहले ही मुशर्रफ ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर दिया और खुद सैनिक तानाशाह बन गए।

दूसरे मौके के बारे में पाकिस्तान के एक पूर्व विदेशमंत्री का कहना है कि 2007 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच सहमति बन गई थी और उस सहमति को अमल में लाने के लिए 10 महीने का एक टाइमफ्रेम भी तैयार कर लिया गया था। लेकिन उस पर काम आगे बढ़ता उसके पहले ही पाकिस्तान में राजनैतिक अस्थिरता प्रारंभ हो गई। राष्ट्रपति मुशर्रफ पे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को बर्खारूत कर दिया था और उसके बाद उनकी सत्ता पर ही ग्रहण लगने लग गया था। उस अस्थिरता का अंत उनके शासन की समाप्ति में हुआ।

इस तरह 10 साल में दो बार कश्मीर समस्या का हल होते होते रह गया। अब कश्मीर में माहौल कुछ बेहतर होने लगा है, हालांकि अभी भी समस्या पैदा करने वाले सक्रिय हैं। उन्होंने 23 अप्रैल को घाटी बंद का आयोजन किया था। बंद दिल्ली के लाजपत नगर विस्फोट कांड में 2 कश्मीरियों को फांसी की सजा सुनाने के विरोध में किया गया था।(संवाद)