Fri 06 of Jul, 2007

पिछले लगभग एक दशक से भारत की पूरी राष्ट्रीय सोच की दिशा बदल गयी लगती है। किसी भी कीमत पर धन कमाना और सेक्स के पीछे भागना ही सर्वत्र दिखायी देने लगा है। हमारे समाचार माध्यम और सरकारें इसमें जनता की भरपूर मदद कर रही हैं। अब केन्द्र सरकार इस बात पर अड़ गयी है कि जनता को सेक्स के लिए खिलौनों और मशीनों की सख्त जरुरत है वरना, उनके अनुसार देश को बीमार होने से बचाना मुश्किल हो जायेगा। इसके लिए भारत सरकार के एक उपक्रम हिन्दुस्तान लेटेक्स ने पूरी तैयारी कर ली है। वह निरोध के अपने पुराने ब्रांड के स्थान पर नया ब्रांड क्रेसेन्डो के साथ एक रिंग या स्प्रिंग भी देगी जिसमें कंपन होगा और सेक्स का ज्यादा मजा देगा। मध्य प्रदेश में प्रायोगिक तौर पर इसे बेचा भी गया और बताते हैं कि देखते-देखते सभी सेक्स खिलौने और कंडोम बिक गये। खबरें यह भी आयीं कि अनेक लोगों ने इसे खिलौने की तरह इस्तेमाल किया, और वह भी बिना सहवास के।

भारत सरकार के लिए और उसकी कंपनी के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी। साबित हो गया कि भारत में सेक्स खिलौनों का भी बड़ा बाजार है और इनकी खूब बिक्री होगी। सरकार को खूब कमाई होगी। सरकारी कंपनी भी खूब कमायेगी। वैसे हमारे प्रधान मंत्री तो कमाई पर ही जोर देते हैं। किस कीमत पर कमाना है इससे उनको क्या लेना देना। धन आना चाहिए। धन नहीं आयेगा तो देश कैसे तरक्की करेगा। वह जनता को कह रहे हैं कि किसी भी तरह से धन कमाओ। वे देश में नीतियां भी ऐसी बनाते रहे हैं कि धन सरकार के पास या चंद लोगों के पास ही एकत्रित हो। ऐसा हुआ भी। आम लोग गरीब होते चले गये। वे लगातार आंकड़े दे रहे हैं कि किस तरह भारत विकास कर रहा है और धनवान बन रहा है। उन्हें इस बात से क्या मतलब कि कितने लोग इस चक्कर में धन कमाने वालों के शिकार बने और गरीबी रेखा के नीचे आ गये।

अब सेक्स खिलौने बेचने के लिए तर्क दिया गया कि इससे एड्स की बीमारी रोकने में मदद मिलेगी। सरकार सही फरमाती है। यदि लोग सहवास करने के बदले सेक्स खिलौनों का इस्तेमाल करें तो, उन्हें मजा भी ज्यादा आयेगा, (सरकार के अनुसार सहवास में भी ज्यादा मजा आयेगा), आबादी भी नहीं बढ़ेगी और एड्स का भी खतरा नहीं होगा।

लेकिन मध्य प्रदेश सरकार को सरकार की इस योजना पर आपत्ति है। राज्य से स्वास्थ्य मंत्री ने केन्द्र को लिखित आपत्ति भेजकर कहा है कि सेक्स खिलौने बेचना अनुचित है। यहां इस लेखक ने केन्द्र में शासन करने वाले और उनका सहयोग करने वाले नेताओं में से कइयों से पूछा तो उन्होंने बताया कि भाजपा वाले बेमतलब विरोध कर रहे हैं। ध्यान रहे कि केन्द्र में वाम समर्थित कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है। यहां यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक ही होगा कि केन्द्र के एक बड़े कांग्रेसी नेता इस बात के लिए जनता में चर्चित हैं कि वे पूर्वोत्तर भारत में सेक्स खिलौनों के साथ पकड़े गये थे।

वैसे हमारे पत्रकार बंधु भी इस मुहिम में सरकार को काफी मदद देते रहे हैं और मदद लेते भी रहे हैं। किसी भी कीमत पर धन कमाने की नीतियों का भी समर्थन करते रहे हैं और खुलेआम सेक्स का मजा लेने की तकनीक बताते रहे हैं। संकोची युवाओं को निर्लज्ज बनाने के लिए इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। समाचार माध्यमों में तो यह भी सिखाया जा रहा है कि लड़का या लड़की कैसे पटायें।

राष्ट्रीय सोच में आये इस परिवर्तन के खिलाफ बोलने वालों को दकियानूस, मोरल (नैतिक) पुलिस, पुरानपंथी आदि कहकर बेइज्जत किया जाने लगा है। यह सब किया जा रहा है धन कमाने के लिए और कहा जा रहा है कि जनता को ज्यादा जानकारी देने, उनकी सेहत ठीक रखने और दिमाग ठीक रखने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं और देश इसी से तरक्की करेगा।

सेक्स का खिलौना बेचने का तर्क देते हुए केन्द्र सरकार ने कहा है कि उसे जनता की सेहत की चिंता है। लेकिन यह बात मानने में आम लोगों को दिक्कत होगी क्योंकि वह जानती है कि 1992 से (जबसे वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने नयी अर्थव्यवस्था की ओर भारत को धकेला है) ही चिकिस्सा लगातार महंगी होती गयी है। अधिकांश दवाएं गरीबों की पहुंच से बाहर चली गयी हैं।

अभी हाल में ही गुजरात सरकार ने केन्द्र सरकार को एक पत्र लिखकर सूचित किया है कि वहां दवा विक्रेता 700 प्रति शत तक का मुनाफा कमा रहे हैं। दवा निर्माता भी दवाओं की कीमतें दो-तीन महीनों में ही बढ़ा देते हैं। स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार को इस बात की कोई चिंता नहीं है। जनता को चिकित्सा सुविधाएं लगातार नीतियों के तहत महंगी की गयी हैं और चिकित्सा संबंधी जनसुविधाएं लगातार घटायी गयी हैं।

अभी हाल में एक सर्वेक्षण विश्व स्वास्थ्य संगठन का आया है जिसमें देश के कुछ चुनिंदे राज्यों का सर्वेक्षण किया गया। रपट में बताया गया कि परिवारों का चिकित्सा खर्च बढ़ने के कारण 16 प्रति शत वैसे लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गये हैं जो गरीबी रेखा से ऊपर थे। ऐसी स्थिति में सरकार के इस दावे को कैसे माना जा सकता है कि देश में गरीबी घटी है और घट रही है। यदि अन्य महंगायी को भी जोड़ें तो साफ हो जायेगा कि देश में जहां एक और विकास दर बढ़ रही है वहीं गरीबी की दर भी बढ़ रही है। आखिर कैसे माना जाये कि सरकार को वास्तव में हम जनता की चिंता है?

हमें आंकड़े बता बताकर और उसकी गलत व्याख्या या अपूर्ण व्याख्या कर ठगा और धोखे में रखा जा रहा है। जब भी सरकार से कोई ठोस काम करने को कहा जाता है तो वह बहाना बना देती है कि उसके पास धन नहीं है। इसी धन के लिए सरकार शराब और मादक पदार्थ तक बेच रही है, और अब वह सेक्स खिलौने बेचना चाहती है।

सरकार के इरादे में शक की गुंजाइश है। सरकार ने अनेक तरह के उत्पादन करने से पल्ला झाड़ लिया है। देश में जनता को सस्ती दवाओं की सख्त जरुरत है, लेकिन वह स्वयं अपनी कंपनियों से पर्याप्त मात्रा में दवाएं नहीं बनवाना चाहती। हमें चिकित्सा उपकरणों की जरुरत है, लेकिन सरकार सस्ती दरों पर हमें ये उपलब्ध कराने में रुचि नहीं रखती। जरुरी उत्पादन करने वाली अनेक सरकारी कंपनियों को सरकार ने बेच दिया इस आधार पर कि देश के विकास के लिए निजीकरण जरुरी है और वह भी उनके चहेते लोगों को सौंपकर ही ऐसा किया जा सकता है। लेकिन जब सेक्स खिलौनों की बात आयी तो उसे सरकार और उसकी कंपनी बेचेगी। खबर यह है कि इस उपकरण के लिए चीन से आयात भी किया जायेगा। सरकार यह पुनीत कार्य अपने हाथों में ही रखने पर तुली हुई है। ध्यान रहे कि भारत में सेक्स खिलौनों की खरीद बिक्री उतनी खुलेआम नहीं है जितनी की अन्य रोजमर्रा की चीजों की। यदि सरकार ने इसे शुरु कर लोकप्रिय बना दिया तो उस व्यक्ति को भारी लाभ हो जायेगा जिसे निजीकरण के तहत हिंदुस्तान लेटेक्स कौड़ी के भाव बेचा जायेगा। ऐसी स्थिति आना कोई असम्भव बात नहीं होगी, क्योंकि हमारे बुद्धिजीवी चंद कौड़ियों के लिए ऐसी स्थिति लाने के लिए सारे तर्क उपलब्ध करायेंगे और प्रचारतंत्र की फौज खड़ी कर देंगे। ऐसा अतीत में अनेक मामलों में हो चुका है।

साफ है कि राष्ट्रीय चिंतन की दिशा खिसक गयी है। धन कमाओ, शराब पीयो और सेक्स करो। सरकार इस कार्य में आपके साथ सदैव। क्या राष्ट्र के लिए इससे बेहतर परिकल्पना कोई नहीं हो सकती ? #