गौरतलब है कि एक साल पहले मुंबई में गजब का खेल हुआ था। देर रात से लेकर सुबह सूरज निकलने तक चले नाटकीय घटनाक्रम में राष्ट्रपति ने राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश भी कर दी थी। इसके फौरन बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बहुमत के दावे का परीक्षण किए बगैर ही भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी के नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिला दी थी। हालांकि चंद घंटों के भीतर ही एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपने भतीजे की अगुवाई में हुई बगावत को फेल कर दिया था। एक-एक करके सारे विधायक शरद पवार के पास लौट आए थे और बाद में खुद अजित पवार की वापसी भी हो गई थी।
एक साल पुराने उसी नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम को याद करते हुए भाजपा के पूर्व श्सूबेदार’ देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि वे जल्द ही फिर सरकार बनाएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा है कि इस बार शपथ रात के अंधेरे में नहीं बल्कि सही समय पर होगी। जिस दिन फडणवीस का यह बयान आया, उसी दिन केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानवे ने भी ऐलान किया महाराष्ट्र में अगले दो-तीन महीने में भाजपा की सरकार बन जाएगी।
सूबे में भाजपा के दोनों शीर्ष नेताओं के बयान इस बात का संकेत हैं कि महाराष्ट्र में एक बार फिर श्ऑपरेशन कमल’ की तैयारी चल रही है, जिसकी कामयाबी को लेकर सूबे के भाजपा नेता आश्वस्त हैं। श्आपरेशन कमल’ का मतलब है किसी भी तरह से विपक्ष की सरकार नहीं रहने देना और भाजपा की सरकार बनाना।
हालांकि महाराष्ट्र में भाजपा के भीतर भी बहुत कलह मची हुई है। पिछले दिनों पार्टी के कद्दावर नेता एकनाथ खडसे के एनसीपी में शामिल हो जाने के बाद यह कलह खुल कर सामने आ गई है। दूसरी ओर महाविकास अघाडी में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कांग्रेस के कई नेता मंत्री न बन पाने की वजह से दुखी हैं तो जो मंत्री बने हुए हैं वे कुछ अन्य कारणों से असंतुष्ट हैं। इसलिए महाराष्ट्र के भाजपा नेता जिस उलटफेर के होने का दावा कर रहे हैं, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा में विभिन्न दलों का संख्याबल ऐसा है कि वहां मध्य प्रदेश या कर्नाटक की तरह खेल होना आसान नहीं है। 288 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकडा 145 होता है, जबकि भाजपा के पास अपने सिर्फ 1०5 विधायक हैं। अगर वह 13 निर्दलीय और कुछ अन्य छोटी पार्टियों के इक्का-दुक्का विधायकों का समर्थन भी हासिल कर लेती है तो उसकी यह संख्या 125 से आगे नहीं पहुंचती है। इस संख्याबल के सहारे वह तभी सरकार बना सकती है जबकि सत्तारूढ गठबंधन में शामिल दलों के 25-30 विधायक विधानसभा से इस्तीफा दे दे, जैसा कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हुआ था। ऐसा होना असंभव तो नहीं, मगर मुश्किल जरूर है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जिस तरह की राजनीति करते हैं, उसके चलते यह बहुत मुश्किल भी नहीं है। दूसरी सूरत में उलटफेर तब हो सकता है, जब गठबंधन ही बदल जाए। यानी शिवसेना और एनसीपी में से कोई एक पार्टी भाजपा के हो जाए।
जो भी हो, महाराष्ट्र के दो शीर्ष भाजपा नेताओं ने अगर उद्धव ठाकरे सरकार की बिदाई का गीत गुनगुनाया है तो उसे अनसुना नहीं किया जा सकता। इस गीत के मुखडे को दिल्ली में शीर्ष स्तर पर किसी ने लिख कर अपने सूबे के साजिंदों को थमाया है। इसे लिखने की प्रेरणा भी निश्चित ही मध्य प्रदेश के ‘ऑपरेशन कमल’ की ऐतिहासिक कामयाबी से ही मिली होगी। वहां भी 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से प्रादेशिक नेताओं तक ने कहना शुरू कर दिया था कि वे जिस दिन चाहेंगे, उस दिन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा देंगे। उन्होंने जो कहा था, उसे महज 15 महीने बाद ही सचमुच करके दिखा भी दिया।
गौरतलब है कि इसी साल मार्च महीने में एक चौंकाने वाले घटनाक्रम के तहत पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अपना 18 साल पुराना नाता तोड कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उनके समर्थन में कांग्रेस के 19 विधायकों ने भी कांग्रेस पार्टी और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था।
उसी दौरान तीन अन्य कांग्रेस विधायक भी पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे। कुल 22 विधायकों के पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा दे देने के कारण सूक्ष्म बहुमत के सहारे चल रही कांग्रेस की 15 महीने पुरानी सरकार अल्ममत में आ गई थी। सरकार को समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कुछ निर्दलीय विधायकों के लिए भी कांग्रेस पर आई यह ‘आपदा’ एक तरह से ‘अवसर’ साबित हुई थी। वे भी पाला बदल कर भाजपा के साथ चले गए थे।
भाजपा को दोबारा सत्ता हासिल करने का सपना सिर्फ 15 महीने बाद ही साकार हो गया। कांग्रेस सत्ता से रुखसत हो गई। विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या के आधार पर भाजपा बहुमत में आ गई और इसी के साथ एक बार फिर सूबे की सत्ता के सूत्र भी उसके हाथों में आ गए। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों में से कई को उनके मनचाहे विभाग का मंत्री बनाया दिया गया तो कई को निगम-मंडलों का अध्यक्ष। इसी बीच तीन विधायकों के निधन की वजह से विधानसभा की तीन और सीटें खाली हो गईं और कांग्रेस के तीन अन्य विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। इस प्रकार विधानसभा की कुल 28 सीटें खाली हो गईं, जिन पर पिछले दिनों उपचुनाव हुए। भाजपा को 230 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत के लिए महज आठ विधायकों की जरूरत थी, लेकिन वह उपचुनाव वाली 28 में से 19 सीटें जीतने में कामयाब रही।
‘ऑपरेशन कमल’ के भविष्य के लिहाज से मध्य प्रदेश के उपचुनाव नतीजे बेहद महत्वपूर्ण हैं। अब तक भाजपा ने ‘ऑपरेशन कमल’ के तहत विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के विधायकों और सांसदों के इस्तीफे कराए हैं। फिर उन्हें अपनी पार्टी से चुनाव लडा कर विधायक या सांसद बनाया है। इसी रणनीति के सहारे उसने कर्नाटक, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर आदि राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें गिराकर या उन्हें सरकार बनाने से रोक कर अपनी सरकारें बनाई हैं। इसी रणनीति से उसने राज्यसभा में भी अपनी ताकत में जबरदस्त इजाफा किया है।
मध्य प्रदेश में भी उसने इसी ‘ऑपरेशन कमल’ के जरिए अपनी सरकार बनाई थी, लेकिन इस ऑपरेशन की असल परीक्षा उपचुनाव में ही होनी थी, जो हो चुकी है। कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में आए ज्यादातर पूर्व विधायक उपचुनाव जीत गए हैं, लिहाजा माना जा सकता है कि उसका ऑपरेशन बहुत हद तक कामयाब रहा। हालांकि राजस्थान और महाराष्ट्र में भी भाजपा एक-एक बार तो इस सिलसिले में कोशिश कर चुकी है, लेकिन उसमें उसे कामयाबी नहीं मिली। लेकिन अब मध्य प्रदेश की कामयाबी से दूसरे राज्यों में इसे आजमाने का रास्ता खुल गया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ‘विपक्ष-मुक्त भारत’ अभियान के तहत ऐसा होना स्वाभाविक भी है। महाराष्ट्र में तो इसे जल्द आजमाने का संकेत वहां के शीर्ष भाजपा नेता दे ही चुके हैं।
महाराष्ट्र के अलावा झारखंड, हरियाणा तथा एक बार फिर राजस्थान में भी भाजपा इस फार्मूले को आजमा सकती है। खबर है कि हरियाणा में कांग्रेस के कुछ विधायकों को मध्य प्रदेश की तर्ज पर विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने और उपचुनाव लडने का प्रस्ताव मिल चुका है। झारखंड में भी कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायकों के सामने यह प्रस्ताव लंबित है।
इन राज्यों में तमाम दूसरी पार्टियों के विधायकों की नजर भी मध्य प्रदेश के उपचुनावों पर टिकी हुई थी। अगर कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा आए ज्यादातर पूर्व विधायक चुनाव नहीं जीत पाते तो ऐसी स्थिति मे श्ऑपरेशन कमल’ पर ब्रेक लग सकता था। क्योंकि कोई भी विधायक अपनी विधानसभा की सदस्यता को खतरे में डालने का जोखिम मोल नहीं ले सकता, खासकर ऐसे राज्यों में जहां विधान परिषद नहीं है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में विधान परिषद है। वहां अगर भाजपा ‘ऑपरेशन कमल’ के जरिए अपनी सरकार बना लेती है तो वह विधानसभा चुनाव हारने वाले को उच्च सदन यानी विधान परिषद मे भेज सकती है। लेकिन राजस्थान, हरियाणा और झारखंड में यह सुविधा यानी विधान परिषद नहीं है।
बहरहाल आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र में भाजपा ‘ऑपरेशन कमल’ को किस तरह अंजाम देती है और वहां अपनी सरकार बनाती है। (संवाद)
तो अब ‘ऑपरेशन कमल’ के लिए फिर महाराष्ट्र की बारी है!
क्या महाराष्ट्र में भी मध्यप्रदेश दुहराया जाएगा?
अनिल जैन - 2020-12-03 09:45
महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी यानी शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार का एक साल पूरा हो गया है। एक साल पूरा होने के साथ यह सवाल खडा हो गया है कि यह सरकार अब आगे कितने दिन तक रह पाएगी? यह सवाल महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं के उस बयान से खडा हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आने वाले कुछ दिनों में भाजपा महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी। दूसरी ओर इस मौके पर बेहद तल्ख अंदाज में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों को शिवसेना की ओर से जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है।