जाहिर है, एक तरफ आशाएं हैं, तो दूसरी तरफ आशंकाएं भी। आशा है कि हम कोरोनासुर का बध करने में सफल होंगे और आशंका है कि कोरोनासुर बध कर दिए जाने के बाद भी नये नये अवतार लेकर हमारे सामने आ जाएगा। हमारे पौराणिक गाथाओं में ऐसे असुरों का वर्णन है, जो मारे जाने के बाद फिर जिंदा हो जाते थे। रक्तबीज नाम का एक असुर ऐसा था, जिसके रक्त जमीन पर गिरने पर एक और रक्तबीज पैदा हो जाता था। जमीन पर गिरा उसका रक्त ही बीज का काम करता था और उससे एक नये असुर का जन्म हो जाता है। तक कहते हैं कि शक्ति ने काली का रूप धारण कर रक्तबीज से पैदा असुरों का खून जमीन पर गिरने से पहले ही पीना शुरू कर दिया था। लेकिन सवाल उठता है कि अब काली कहां से आएगी?
2021 में कोरोना के नये स्ट्रेन आना ही एक चुनौती नहीं है, बल्कि 2020 में जो सामाजिक, व्यापारिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय संबंध छिन्न भिन्न हुए हैं, वे क्या पहले की तरह फिर तैयार हो पाएंगे? कोरोना द्वारा जो विनाश होना था, वह तो होना ही था, लेकिन अनेक देशों की मूर्ख सरकारों ने उस समस्या से निबटने के लिए जो मूर्खता दिखाई, उसका खामियाजा भी दुनिया को बहुत भोगना पड़ा है। हमारे देश में भी कोरोना से ज्यादा नुकसान कोरोना के बाद सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों से ही हुआ है। गलत निर्णय का वह सिलसिला अभी भी जारी है। जब इंग्लैंड में कोरोना का ज्यादा संक्रामक नया स्ट्रेन सामने आया, तो हमारी सरकार ने एक बार फिर निर्णय लेने में देरी कर दी और नया स्ट्रेन भी भारत में आयातित हो गया। भारत में बढ़ती शीतलहरी के बीच भी प्रतिदिन हो रहे कोरोना सक्रमणों की संख्या घट रही थी और लग रहा था कि जाड़ा समाप्त होते होते हम इस संक्रमण से लगभग मुक्त हो जाएंगे, क्योंकि लोगों के बीच में हर्ड इम्युनिटी बढ़ती जा रही है, लेकिन इंग्लैंड से आयातित नये स्ट्रेन ने आशंका पैदा कर दी है कि कहीं देश में कोरोना की दूसरी लहर न पैदा हो जाए। वैसे पश्चिमी वैज्ञानिकों के इस निष्कर्ष से आशा भी बंधती है कि जिन्हें पहले कोरोना हो चुका है, उन्हें इससे डरने की जरूरत नहीं। यानी भारत के जितने ज्ञात और अज्ञात लोग कोरोना से संक्रमित होकर उबर चुके हैं और उनमें इस वायरस की एटी बॉडी बन चुकी है, वे इस नये कोरोना स्ट्रेन के शिकार नहीं होंगे।
कोरोना के कारण अब दुनिया वैसी नहीं रहेगी, जैसी पहले थी। लेकिन सवाल उठता है कि कैसी होगी? यह सवाल हमारे देश में भी उठ रहा है और जो तस्वीर दिखाई दे रही है, वह बेहद निराशाजनक है। उसका कारण यह है कि मोदी सरकार ने इस आपदा को भी अपनी पूंजीवादी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए अवसर के रूप में प्रयोग किया है। जब पूरा देश लॉकडाउन में बंद था। लोग अपने घरों से नहीं निकल रहे थे, उसी बीच कुछ ऐसे कानून चुपचाप बिना किसी विचार विमर्श के बना दिए गए, जो देश के लोगों के लिए नये युग में बहुत घातक होंगे। दुनिया भर में कोराना संकट के बीच सरकारों की भूमिका बढ़ रही है, लेकिन अपने देश की सरकार ने वह रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है, जिसमें पहले से सरकार द्वारा निभाई जा रही भूमिका भी निजी क्षेत्र के हवाले किया जा रहा है। निजी क्षेत्र के स्कूलों और अस्पतालों का नंगा नाच हम देखते रहे हैं। कोरोना काल में ही निजी स्कूलों और अस्पतालों ने लोगों को जमकर लूटा। अस्पतालों ने जमकर कमाई की और स्कूल तो लॉकडाउन और स्कूलबंदी के दौरान भी छात्रों से उनके स्कूल आने जाने के लिए परिवहन पर लगाए जाने वाले चार्ज वसूल कर रहे थे।
अब मोदी सरकार रेलवे को बेच रही है। स्टेशनों को बेचा जा रहा है। गाडियों के रूट को बेचा जा रहा है। हाई वे को बेचा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में तो सरकार ने बस स्टैंड को ही बेचने का फैसला कर लिया। थानों के जो कुछ काम होते हैं, उन्हें भी निजी क्षेत्र को सौंपने का फैसला कर दिया। एक ऐसा बिजली कानून लाया गया है, जो बिजली की रेट तय करने का अधिकार राज्य सरकारों से छीन लेता है और यह अधिकार केन्द्र अपने पास रख लेता है। यानी अर्थव्यवस्था को नियंत्रण करने वाले सभी ऊंचाइयां निजी क्षेत्र को दी जा रही है। निजी क्षेत्र में भी पूर्ण प्रतिस्पर्धा को नहीं बढ़ावा दिया जा रहा, बल्कि एकाधिकारवादी शक्तियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। कुछ कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में बिजली, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, रेलवे, सड़कें, संचार माध्यम ओर अब खाद्यान्न भी सौंपे जा रहे हैं। पूरा देश कुछ घरानों के रहमोकरम पर छोड़ने का इंतजाम किया जा रहा है। और सरकार जनता के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहती है। एक नया टर्म इजाद किया गया है ‘आत्मनिर्भर’ भारत, जिसका मतलब है कि लोग सरकार से कुछ उम्मीद न करें। अपने बूते जिएं और अपने कारण से मरें। यह पूंजीवाद का सबसे विशुद्ध रूप है, जिसमें बाजार की शक्तियों को खुला खेल दे दिया जाता है और सरकार अपनी लगभग सारी भूमिका त्याग देती है। 2021 यह तय करेगा कि क्या भारत ‘आत्मनिर्भरता के फेज में पहुंचता है या लोककल्याणकारी राज्य बना रहता है। (संवाद)
आशाओं और आशंकाओं का नया साल
हमें कहां ले जाएगा 2021?
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-01-01 10:06
दुनिया नये साल में प्रवेश कर चुकी है। 2020 एक ऐसा साल साबित हुआ है, जिसे कोई याद नहीं रखना चाहेगा। लेकिन क्या नया साल हमें पिछले साल के घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएगा? यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब हमारे पास नहीं है। कोरोना वायरस से बचाव के लिए हो रहे वैक्सिन के इजाद के बीच उस वायरस का एक नया स्ट्रेन आ जाना हमें वैक्सिन के निर्माण के उपलक्ष्य में उत्सव मनाने की इजाजत नहीं देता। एक नया स्ट्रेन आया है। इसका अध्ययन जारी है और वैज्ञानिक कह रहे हैं कि नवविकसित वैक्सिन इसके खिलाफ भी कारगर होगा, लेकिन डर कुछ और है और डर यह है कि कोरोना के कितने नये स्ट्रेन और आएंगे और क्या सबके उपचार के लिए वैक्सिन और दवाई जुटाने में हमारे वैज्ञानिक सफल हो पाएंगे?