वैसे सच यह भी है कि कांग्रेस और एनसीपी के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे। जब से कांग्रेस से टूटकर एनसीपी का गठन हुआ है, उसी समय से दोनो ंपार्टियों के शिखर नेताओं के बीच नफरत का माहौल है। शरद पवार यह भूल नहीं सकते कि कैसे 1999 में उन्हें कांग्रेस से सोनिया गांधी ने निकाल दिया था। सोनिया गांधी भी यह नहीं भूल सकती कि कैसे पवार ने विदेशी मूल का मसला उठाकर उनपर व्यक्तिगत आक्षेप लगाए थे।
एनसीपी का जन्म ही सोनिया गांधी से नफरत का परिणाम है। इस बात को सोनिया गांधी कभी भूल नहीं सकती। दोनों पार्टियों के बीच नफरत का माहौल दोनों के अघ्यक्षों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि निचले और राज्य स्तर के नंताओं के बीच भी संबंध अच्छे नहीं हैं। जब कभी भी चुनाव आता है तो दोनेा के बीच नफरत की तलवारें खिंच जाती हैं, लेकिन दोनो को एक दूसरे की जरूरत का अहसास होता है और नफरत के साथ भी दोनो एक दूसरे के साथ हाथ मिलाने के लिए बाघ्य हो जाते हैं।
कांग्रेस और एनसीपी का यह संबंध अनोखा है। नफरत और मोहब्बत का यह खेल 10 साल से भी ज्यादा समय से चल रहा है। जब कभी भी मौका आता है कांग्रेस के नेता एनसीपी नेताओं की आलोचना पर उतारू हो जाते हैं। एनसीपी के नेता भी पीछे नहीं हटते। इस बार आइपीएल के मसले पर भी कांग्रेस और एनसीपी ने दूसरे के साथ प्यार और नफरत का अपना 10 साल पुराना रिश्ता दुहराया।
जब थरूर अपने आपको बचाने के लिए नरेन्द्र मोदी को बीच में ला रहे थेख् तो शरद पवार ने उनके प्रयास पर पानी फेर दिया। नरेन्द्र मोदी ने तो इस विवाद पर अपना मुह कभी खोला ही नहीं, लेकिन शरद पवार ने बयान देकर नरेन्द्र मोदी का बचाव कर दिया। उन्होंने शुरू शुरू में ललित मोदी का भी बचाव किया।
थरूर के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ललित मोदी को किसी भी तरह आइपीएल से हटाना चाहती थी और उसने ललित मोदी का बचाव करते दिख रहे शरद पवार पर भी हमला बोलना शुरू कर दिया। उन्हें और उनकी पार्टी के ही प्रफुल्ल पटेल को विवाद मे ंघसीटा जाने लगा। आयकर विभाग और प्रवर्त्तन निदेशालय की जांच के कुछ निष्कर्षों के साथ प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम जब शरद पवार से मिले तो उन्होंने ललित मोदी का साथ छोड़ दिया और इा तरह कांग्रेस श्री मोदी को आइपीएल से हटाने मे सफल रही।
लेकिन दूसरी तरफ शरद पवार को भी कुछ नहीं हुआ। शुरुआती हंगामें के साथ आयकर और आइपीएल द्वारा की जा रही जांच की कार्रवाई का शोर भी थम गया है। पूरे आइपीएल विवाद में ललित मोदी को बलि का बकरा बना दिया गया। थरूर को तो पहले ही मंत्रिपद से हटा दिया गया था। इसके अलावा अब और किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई की कोई संभावना दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही है।
कुछ लोग तो यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि शायद 6 महीने या साल भर ूमें ललित मोदी फिर आइपीएल में वापस आ जाएं। शशि थरूर के भी मनमोहन सरकार मे फिर से वापस आने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। चूंकि क्रिकेट से सभी पार्टियों के नेता जुड़े हुए हैं, इसीलिए जांच कार्योंं के आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं है। समय बीतने के साथ ही सबकुछ के बिल्कुल पहले की तरह ही हो जाने की पूरी संभावना है। (संवाद)
कांग्रेस, एनसीपी और आइपीएल विवाद
दोनो दलों ने समझ से काम लिया
कल्याणी शंकर - 2010-04-30 10:01
आइपीएल विवाद के बीच कांग्रेस और एनसीपी के संबंधों में तल्खी आ गई थी और लगने लगा था कि इस विवाद के कारण दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते कुछ ज्यादा ही खराब हो जाएंगे। लेकिन दोनो पार्टियों के नेताओं ने समझ दिखाई और विवाद कोई अप्रिय आयाम नहीं ले सका। शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल दोनो सरकार में सुरक्षित हैं और मनमोहन सिंह की सरकार भी सुरक्षित है।