इस शरारतपूर्ण कोशिश के साथ ही भागवत के बयान से यह भी साफ है कि वे न केवल सिर्फ देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त अपने संगठन के लोगों के देश भक्त होने का अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी कर रहे हैं, बल्कि परोक्ष रूप से देश के अन्य सभी गैर हिंदू समुदायों की देशभक्ति पर सवाल उठा कर उन्हें लांछित कर रहे हैं। उनके कथन का निहितार्थ है कि कोई हिंदू तो भारत विरोधी नहीं हो सकता, लेकिन कोई गैर हिंदू जरूर भारत विरोधी हो सकता है।
इसे व्यंग्य की स्थिति कहें या स्थिति का व्यंग्य कि यह बात वह व्यक्ति कह रहा है, जिसके 95 वर्षीय संगठन ने अपने आपको देश की आजादी के संघर्ष से बिल्कुल अलग रखा था। इतना ही नहीं, स्वाधीनता संग्राम के दौर में ही उसके वैचारिक पुरखों ने धर्म पर आधारित दो राष्ट्र (हिंदू और मुस्लिम) का सिद्धांत पेश किया था। यह और बात है कि इस सिद्धांत को बाद में मुस्लिम लीग ने अपनाकर अपने लिए धर्म के आधार पर अलग देश ले लिया, जो महज 24 साल बाद ही भाषा के आधार पर टूट गया। पाकिस्तान के विभाजन ने मुहम्मद अली जिन्नाह को ही नहीं बल्कि सावरकर-गोलवलकर के दो राष्ट्र के सिद्धांत को भी गलत साबित किया।
बहरहाल, सवाल है कि अगर हिंदू भारत विरोधी नहीं हो सकता है तो फिर कौन भारत विरोधी हो सकता है? प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा और आरएसएस के तमाम नेता और सोशल मीडिया पर उनके अपढ-कुपढ समर्थकों की फौज सरकार का विरोध करने वाले जिन लोगों को टुकडे़-टुकडे़ गैंग का बताते हैं, वे कौन लोग हैं?
भागवत खुद कहते हैं कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। उनकी पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन वे अगर भारत में जन्मे हैं और भारत में ही रहते हैं तो वे हिंदू हैं। इस बात को भागवत के ताजा बयान के साथ देखा जाए तो भारत के सभी 135 करोड़ लोग हिंदू हैं और इसलिए वे भारत विरोधी नहीं हो सकते। ऐसे में भाजपा और आरएसएस के तमाम छोटे-बडे़ नेता ‘हम और वे’ या ‘देशभक्त और देश विरोधी’ का नैरेटिव बना रहे हैं और प्रचार कर रहे हैं, उसका क्या मतलब है?
जब भागवत कहते हैं कि कोई हिंदू देश विरोधी या आतंकवादी नहीं हो सकता तो यह सवाल पूछना लाजिमी है कि जब कोई हिंदू किसी स्त्री के साथ बलात्कार कर सकता है, किसी निर्दोष की हत्या कर सकता है, लोगों को जिंदा जला सकता है, उनके घरों को आग के हवाले कर सकता है, डाका डाल सकता है, लूटपाट कर सकता है, देश के वित्तीय संस्थानों के साथ धोखाधडी कर देश से भाग सकता है और इसके अलावा भी ऐसे तमाम तरह के संगीन आपराधिक कृत्यों में लिप्त हो सकता है, जो समाज विरोधी माने जाते हैं, तो फिर वह देश विरोधी क्यों नहीं हो सकता?
सवाल यह भी है कि आखिर भागवत और उनका संगठन किन कामों को देश विरोधी मानता है? दरअसल धरती के किसी टुकडे़ का नाम ही देश नहीं होता है। देश बनता है उस भू भाग पर रहने वाले लोगों से, उनकी उदात्त जीवनशैली, संस्कारों और परंपराओं से। इसलिए देश विरोधी काम सिर्फ किसी दुश्मन देश से मिलकर अपने देश के सामरिक हितों को नुकसान पहुंचाना ही नहीं होता, बल्कि देश को आर्थिक और सामाजिक तौर पर नुकसान पहुंचाना, देश के संसाधनों का आपराधिक दुरुपयोग करना, किसी के उपासना स्थल को नष्ट कर देना, किसी नाजायज मकसद के लिए किसी व्यक्ति या समुदाय को आर्थिक, शारीरिक या मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचाना और समाज में भय तथा तनाव का वातारण बनाना भी देश विरोधी कामों की श्रेणी में आता है।
महात्मा गांधी की हत्या आजाद भारत की सबसे बड़ी देश विरोधी वारदात थी, जिसे अंजाम देने वाला व्यक्ति पाकिस्तान या चीन से नहीं आया था। वह भारत में रहने वाला कोई मुस्लिम, ईसाई, सिख, यहूदी, जैन या पारसी भी नहीं था। वह हिंदू ही था। वह हिंदू में भी उस वर्ण का था, जिसे देश की सबसे बडी हिंदू राष्ट्रवादी संस्था के संगठनात्मक ढांचे में हमेशा से सर्वोच्च स्थान हासिल रहता आया है, जैसा कि अभी मोहन भागवत को प्राप्त है।
यही नहीं, महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल रहे विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, मदनलाल पाहवा, विष्णु करकरे, दिगंबर बडगे आदि नाथूराम के सभी सहयोगी भी हिंदू ही थे। नाथूराम गोडसे तो ऐसा हिंदू था कि गांधीजी पर गोलियां दागने के पहले हुई धक्का-मुक्की में उनकी पोती मनु के हाथ से जमीन पर गिरी पूजा वाली माला और आश्रम की भजनावाली को भी वह अपने पैरों तले रौंदता हुआ आगे बढ गया था 20वीं सदी का जघन्यतम अपराध करने- एक निहत्थे बूढे, परम सनातनी हिंदू, राम के अनन्य-आजीवन आराधक और राष्ट्रपिता का सीना गोलियों से छलनी करने।
यह और बात है कि नाथूराम ने गांधी जी की हत्या के तुरंत बाद पकडे़ जाने पर खुद को मुसलमान बताने की कोशिश की थी। उसने पुलिस को अपना जो नाम बताया था वह मुस्लिम नाम था। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसा करने के पीछे उसका कितना कुत्सित और घृणित इरादा रहा होगा? वह तो उसके हाथ पर उसका वास्तविक नाम गुदा हुआ था, इसलिए उसकी मक्कारी और झूठ ने तत्काल ही दम तोड़ दिया और गांधीजी की हत्या के बाद का उसका अगला इरादा पूरा नहीं हो सका।
क्या मोहन भागवत और उनकी राष्ट्रवादी जमात के अन्य लोग इस हकीकत को नकार सकते हैं कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में हुई सिख विरोधी हिंसा, देश के बंटवारे के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी थी। उस त्रासदी के दौरान भी असंख्य सिखों को जिंदा जलाने वालों और सिख महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों में ज्यादातर आरोपी हिंदू ही तो थे। वह पूरा घटनाक्रम क्या देश विरोधी नहीं था? क्या सुप्रीम कोर्ट और संविधान को ठेंगा दिखा कर बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर देना देश विरोधी कार्रवाई नहीं थी? (संवाद)
भागवत की नजर में हिन्दू देश विरोधी नहीं हो सकता
आखिर देश विरोध है क्या?
अनिल जैन - 2021-01-09 11:07
आरएसएस के मुखिया मोहन राव भागवत ने फरमाया है कि अगर कोई हिंदू है तो वह देशभक्त ही होगा, क्योंकि देशभक्ति उसके बुनियादी चरित्र और संस्कार का अभिन्न हिस्सा है। यह बात उन्होंने महात्मा गांधी को हिंदू राष्ट्रवादी बताने वाली एक किताब ‘मेकिंग ऑफ ए हिंदू पैट्रियटः बैक ग्राउंड ऑफ गांधीजी हिंद स्वराज’ का विमोचन करते हुए कही। किताब के नाम और मोहन भागवत के हाथों उसके विमोचन किए जाने से ही स्पष्ट है कि यह महात्मा गांधी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है।