जिस समय स्पुतनिक वी टीकाकरण के लिए पंजीकृत किया गया था, उस समय तक उसका तीसरा ट्रायल भी पूरा नहीं किया जा सका था, इसलिए उस पर आलोचक तरह तरह के सवाल खड़े कर रहे थे। आलोचकों का मुह बंद करने के लिए ही पुतिन की बेटी ने खुद इंजेक्शन ले लिया था। क्या पता, यह दूसरे चरण में 60 साल से ऊपर वाले व्यक्तियों पर भी उसका परीक्षण होता, तो पुतिन खुद भी वह टीका ले लेते और उसके खिलाफ दुष्प्रचार करने वालों का मुह बंद कर देते।
आज भारत में भी दोनों वैक्सिन पर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं। ऑक्सफॉर्ड विश्वविद्यालय में विकसित की गई कोविशिल्ड वैक्सिन का तीसरे चरण का ट्रायल भारत में चल रहा है। उसका परीक्षण का परिणाम अभी भारत में नहीं आया है। दूसरे देशों में उसके परीक्षण के जो नतीजे आए, वे भ्रमित करने वाले हैं। वह कितना प्रभावी है, इसे लेकर तरह के दावे किए गए, जो परस्पर विरोधी थे। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकांश देश उस टीका को लेकर संशयवादी हो गए हैं। खुद इंग्लैंड में, जहां वह टीका विकसित किया गया, उसे लेकर बहुत उत्साह नहीं था और अमेरिका में विकसित दो टीके इंग्लैंड की सरकार की पहली पसंद थी। लेकिन इंग्लैंड में कोरोना संक्रमण की दर बहुत तेज हो रही थी, इसलिए झिझकते हुए ही सही, कोविशील्ड को मंजूरी दे दी गई। इधर भारत के पुणे में उस टीके के 4 से 5 करोड़ डोज तैयार थे, जिनका जल्द इस्तेमाल जरूरी था, क्योंकि वे लंबे समय तक स्टोर करके नहीं रखे जा सकते। उधर इंग्लैंड ने जैसे ही कोविशील्ड के इस्तेमाल की इजाजत दी, भारत ने भी उसके तुरंत बाद उसे इस्तेमाल के लिए स्वीकृत कर डाला। जाहिर है, भारत इंग्लैंड सरकार के निर्णय का इंतजार कर रहा था।
यही कारण है कि कुछ लोग कोविशील्ड पर सवाल खड़े करने लगे। सवाल खड़ा करने वालों में देशी वैक्सिन कोवैक्सिन के निर्माता भी शामिल हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि यदि वह टीका कोई भारतीय कंपनी तैयार करती, तो यहां की सरकार उसे इजाजत नहीं देती। चूंकि वह एक विदेशी वैक्सिन है, इसलिए उसे इजाजत मिल गई। कोवैक्सिन के मालिक ने कोविशील्ड की आलोचना इसलिए कर डाली, क्योंकि खुद उसके द्वारा विकसित की गई वैक्सिन की आलोचना हो रही थी और उन आलोचकों में से एक आलोचक अदार पूनावाला भी थे, जिसकी कंपनी ने कोविशील्ड का भारत में उत्पादन किया था। पूनावाला ने तो देशी कोवैक्सिन की तुलना शुद्ध जल से कर दी। ऐसा कर उन्होंने उसकी प्रभावशीलता पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उनके कहने का मतलब था कि हैदराबाद में विकसित वह देशी वैक्सिन शुद्ध जल जैसा हानिरहित और कोरोना के लिए प्रभावहीन है। अदार पूनावाला के अतिरिक्त अन्य कुछ अन्य लोग भी कोवैक्सिन की इसी लिए आलोचना कर रहे थे कि उसकी प्रभावशीलता को लेकर चल रहा तीसरे चरण का ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ है। जब ट्रायल पूरा ही नहीं हुआ है, तो फिर उसकी प्रभावशीलता का पता भी नहीं है।
जिस तरह देशी वैक्सिन कोवैक्सिन की आलोचना हुई, वह बहुत ही हैरतअंगेज थी। उसपर तरह तरह के सवाले उठाए जाने लगे। लेकिन कोविशील्ड पर कोई सवाल नहीं उठा रहा था। भारत में उसके द्वारा किए जा रहे तीसरे चरण के ट्रायल का भी नतीजा नहीं आया था, लेकिन यह सवाल कोई नहीं खड़ा कर रहा था। विदेशों में उसका जो तीसरे चरण का ट्रायल हुआ था और जिसके भ्रामक नतीजे आए थे, उसे लेकर भी कोई कोविशील्ड पर सवाल नहीं खड़ा कर रहा था। जाहिर है, हैदराबाद में विकसित देशी कोवैक्सिन व्यापार युद्ध का शिकार हो रहा था। और उसके बारे में उस समय तक नकारात्मक बातें होती रहीं, जब खुद कोवैक्सिन के मालिक ने कोविशील्ड पर हमला कर डाला।
इन चर्चाओं ने दोनों वैक्सिन पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वैसे इस लेखक का मानना है कि उन सवालों में दम नहीं है और हमें उनकी प्रभावशीलता को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। फिर भी भारत के लोग इस अभियान के प्रति वह उत्साह नहीं दिखाएं, जो उत्साह उन्होंने प्रधानमंत्री के कहने पर ताली और थाली बजाने में दिखाया था। यही कारण है कि सोशल मीडिया पर यह मांग बहुत जोरों से हो रही थी कि देश के लोगों को आश्वस्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वैक्सिन का पहला टीका लेना चाहिए। प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की अवधि में जब ताली और थाली बजाने को कहा था, तो देश के लोगों ने बड़े उत्साह के साथ तालियां बजाई थीं और थालियां पीटी थीं। घंटी, घंटे और शंख भी बजाए गए थे। अब यदि प्रधानमंत्री खुद ही टीका लेकर इस अभियान की शुरूआत करते तो इस अभियान की सफलता देखते बनती।
जाहिर है, प्रधानमंत्री ने बहुत बड़ी चूक कर दी। प्रधानमंत्री ने तो निराश किया ही, स्वास्थ्य मंत्री ने भी टीका नहीं लिया, जबकि वे खुद भी डॉक्टर हैं। अभियान की शुरुआत स्वास्थ्यकर्मियों के टीकाकरण से हुई है। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन डॉक्टर होने के कारण खुद भी एक स्वास्थ्यकर्मी हैं, भले ही वे अभी कोई क्लिनिक नहीं चलाते हैं। पर डॉक्टर तो आखिरकार डॉक्टर ही होता है। यदि प्रधानमंत्री यह कहकर टीकाकरण में हिस्सा नहीं ले रहे हैं कि यह स्वास्थ्यकर्मियों के टीकाकरण का चरण है और वह स्वास्थ्यकर्मी नहीं हैं, तो कम से कम स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्द्धन को तो टीका लेना ही चाहिए था, जो खुद स्वास्थ्यकर्मी भी हैं। (संवाद)
मोदी ने टीकाकरण अभियान में एक गलती कर दी
पहला टीका उन्हें ही लेना चाहिए था
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-01-16 08:54
भारत में भी कोराना वायरस के खिलाफ टीकाकरण का अभियान शुरू हो गया। अनेक देशों में यह पहले ही चल रहा था। सबसे पहले शुरुआत रूस में ही हो गई थी, जब पिछले साल अगस्त महीने में स्पुतनिक वी वैक्सिन को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों ने खुद वह टीका लगवाया था। चूंकि उस टीका का परीक्षण 60 साल से कम उम्र के लोगों पर ही किया गया था, इसलिए 60 साल से ऊपर की उम्र वाले प्रधानमंत्री पुतिन खुद यह टीका नहीं ले सकते थे, लेकिन रूस और दुनिया के लोगों का उस वैक्सिन में विश्वास पैदा करने के लिए पुतिन ने अपनी बेटी को वह टीका दिलवाया।