आंदोलनकारियों ने अब अपने आंदोलन को शासकों के और नजदीक लाने का फैसला किया है। अभी तक वे दिल्ली की सीमा के बाहर ही सीमा पर डटे हुए हैं। दिल्ली पुलिस उन्हें राजधानी में प्रवेश नहीं करने दे रही और वे अपनी तरफ से कोई जोर जबर्दस्ती भी नहीं कर रहे हैं। दिल्ली में प्रवेश करना उनकी अबतक प्राथमिकता नहीं रही है। लेकिन जब पंजाब के किसान दिल्ली की ओर बढ़ते हुए हरियाणा की सीमा पर पहुंचे थे, तो हरियाणा पुलिस ने उन्हें रोक दिया था। लेकिन उस समय वे रुके नहीं, बल्कि उन्हांने पुलिस द्वारा लगाए गए बैरकों को हटाना शुरू कर दिया था। दोनों तरफ से तनाव पैदा हो गया था। झड़पें हुई थीं। पानी की बौछारें की गईं थी। लाठी चार्ज भी हुए थे। आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए थे, लेकिन पंजाब के किसानों ने अपना इरादा नहीं बदला। जब हरियाणा सरकार को लगा कि किसानों को रोक पाना संभव नहीं है, तो उन्होंने उन्हें रास्ता दे दिया और वे हरियाणा में प्रवेश कर दिल्ली की ओर चल दिए।
अभी तो वे शांतिपूर्वक दिल्ली की सीमा के बाहर डेरा डाले हुए हैं। लेकिन कुछ दिनों में वे केन्द्र सरकार को एक नई चुनौती पेश कर रहे हैं। उन्होंने आगामी 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड करने का फैसला किया है। उस दिन राजधानी में 26 जनवरी का परेड सरकार की ओर से आयोजित किया जाता है, जिसमें हमारा सैन्य बल अपनी सैन्यशक्ति का प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय झंडे को सलामी देते हैं। देश के अनेक राज्यों की सांस्कृतिक झांकियां भी निकाली जाती हैं। एक निश्चित मार्ग से वह परेड गुजरता है और चक्कर लगाकर उसी विजय चौक के पास वापस आ जाता है, जहा से वह निकलता है। जिस दिन 26 जनवरी का सरकार का प्रायोजित परेड निकलना हो, उसी दिन किसान दिल्ली में अपना अलग से परेड निकालें, यह देश के लिए पहली घटना होगी। सुनने में आ रहा है कि उस किसान परेड में भी देश के तमाम राज्यों की सांस्कृतिक झांकियां भी दिखाई जाएगी। दिल्ली में परेड का उनका क्या रूट होगा, अभी यह स्पष्ट नहीं है। इस तरह के आयोजन के लिए दिल्ली पुलिस की पहले से इजाजत लेनी होती है। यदि दिल्ली पुलिस की अनुमति से उनकी वह रैली होती है, तब तो कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि पुलिस से मिलकर वे अपना रूट निर्धारित करेंगे और पुलिस की देखरेख में ही वह रैली होगी। तब गणतंत्र दिवस पर होने वाले सरकारी आयोजन के रूट से उनका रूट अलग ही रहेगा और शायद समय भी अलग हो। पर दिल्ली पुलिस, जिसका नियंत्रण मोदी सरकार के हाथ में ही है, किसान की ट्रैक्टर रैली की इजाजत देने के मूड में नहीं है। और यही कारण है कि उस रोज कुछ अप्रिय घटना की आशंका अभी से सता रही है।
अच्छा तो यही होगा कि पुलिस उन्हें रैली की इजाजत दे दे और रूट भी बता दे। किसान अबतक अनुशासित तरीके से आंदोलन चला रहे हैं और उन्हांने अपनी तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं किया है, जिसे भड़काऊ कहा जाए। उलटे उन्हें पुलिस की कठोरता का सामना करना पड़ा है। इसलिए यदि दिल्ली पुलिस उन्हें ट्रैक्टर रैली की इजाजत दे दे, तो पुलिस द्वारा निर्धारित रूट और समय पर वे रैली निकालकर ट्रैक्टर चलाते हुए दिल्ली से फिर बाहर चले जाएंगे, लेकिन यदि दिल्ली पुलिस ने इजाजत नहीं दी, तो टकराव बढ़ सकता है और गणतंत्र दिवस के अवसर पर कोई अप्रिय दृश्य बन जाएगा, जिसके कारण दुनिया भर में हमारे देश की बदनामी होगी।
इसलिए मोदी सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह किसानों को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की इजाजत दे दे और अगर वह चाहती है कि वह परेड नहीं हो, तो तीनों विवादास्पद किसान कानूनों को वापस ले लें। वैसे भी वे कानून बहुत हड़बड़ी में पास किए गए थे और पास करने के लिए जो उचित संसदीय प्रक्रिया तय की गई है, उसका भी उसमें पालन नहीं किया गया। राज्यसभा में उपसभापति ने विपक्ष द्वारा मत विभाजन की मांग के बावजूद उन्हें घ्वनिमत से पारित घोषित कर दिया, जबकि वहां उपस्थित कई सांसदों का कहना है कि ‘नो’ की आवाज ‘यस’ की आवाज से तेज थी। वैसे जब सत्तापक्ष सदन में अल्पमत में हो, और विपक्ष मत विभाजन की मांग कर रहा हो, तो फिर घ्वनिमत से किसी कानून को पास घोषित करना अनैतिक और शायद असंवैधानिक भी है।
इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार इन कानूनों को वापस ले ले और व्यापक विचार विमर्श के बाद फिर से कानून बनाए। लेकिन यदि सरकार किसानों के घैर्य की परीक्षा थोड़ा और लेना चाहती है, तो उसे किसानों के ट्रैक्टर परेड की इजाजत दे दे। गणतंत्र दिवस के दिन आंदोलनकारियों से टकराव लेना न तो देश के लिए अच्छा है और न ही सरकार के हित में है। वह मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गई है। यह बहुत हास्यास्पद निर्णय है, क्योंकि आंदोलन से सरकार को निबटना है, न कि सुप्रीम कोर्ट को निबटना है। सुप्रीम कोर्ट का काम सरकार की तरफ से पुलिस की भूमिका अदा करना नहीं होता। (संवाद)
26 जनवरी का ट्रैक्टर मार्च
सरकार को इस समस्या का हल निकालना है, सुप्रीम कोर्ट को नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-01-19 09:37
उधर किसान अड़े हुए हैं कि तीनों काले कानूनों को वापस करवाए बिना वे अपना आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे। इधर केन्द्र सरकार कह रही है कि वह उन कानूनों को समाप्त नहीं करेगी और किसान अपनी जिद छोड़ दें व समाधान को कोई रास्ता अपनाएं। लेकिन किसान टस से मस होने को तैयार नहीं। उनके आंदोलन को देश व्यापी समर्थन मिल रहा है और लगभग सभी राज्यों में उनके पक्ष में समर्थन में जुलूस और प्रदर्शन निकाले जा रहे हैं। अभी गनीमत है कि कोरोना संकट के कारण रेलें नियमित रूप से नहीं चल पा रही हैं, इसलिए देश के अन्य हिस्सों से किसान दिल्ली कूच नहीं कर पा रहे हैं। फिलहाल, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ही दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं, क्योंकि वे दिल्ली के काफी निकट हैं और उन्हें यहां आने के लिए ट्रेन की जरूरत भी नहीं पड़ती है।