चूंकि समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी है, अन्य सभी छोटे दल और समूह जो भाजपा के विरोध में हैं, वे पहल के लिए अखिलेश यादव की ओर देख रहे हैं।

अखिलेश यादव गठबंधन के लिए छोटे आधार वाले दलों को पसंद करेंगे क्योंकि उन्हें बड़े दलों के साथ बुरा अनुभव रहा है।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि समाजवादी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था।

‘‘यूपी को यह साथ पसंद है’’ के नारे पर अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ आए और विधानसभा चुनाव लड़ा।

लेकिन यह गठबंधन काम नहीं आया और दोनों दलों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और 2012 के चुनावों में सत्ता में आई समाजवादी पार्टी को सीटों का बड़ा नुकसान हुआ।

2019 लोकसभा चुनावों में, समाजवादी पार्टी ने 1995 से कट्टर प्रतिद्वंद्वी रही बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया।

इतना ही नहीं, बल्कि बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अधिक सीटों के लिए सौदेबाजी की और राज्य के गेस्ट हाउस की घटना में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ केस वापस ले लिया।

उस समय कई संयुक्त बैठकें हुईं और अखिलेश और मायावती के बीच गठबंधन लंबी अवधि तक रही दोनों दलों के बीच दुश्मनी के कारण जमीनी स्तर पर नहीं उतर सका।

इस गठबंधन ने मायावती को सपा के कारण मुस्लिम समर्थन का लाभ पाने में मदद की, जबकि वह समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने मूल वोटों को हस्तांतरित करने में विफल रहीं।

नतीजतन, बीएसपी के लिए लाभ था जो पिछले चुनावों में खाता नहीं खोल सकी थी।

नतीजे घोषित होने के बाद, बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सीएम मायावती ने अखिलेश यादव पर चुनावी विफलता का दोष मढ़ते हुए गठबंधन समाप्त करने का एकतरफा एलान कर दिया।

अखिलेश यादव जो अधिक सीटें देकर बसपा को समायोजित करने के लिए जरूरत से ज्यादा आगे चले गए। वे पिछले लोकसभा चुनावों में जीती पांच सीटों के आंकड़े को ही बरकरार रख सकें।

अखिलेश यादव को बसपा के साथ गठबंधन करने के अपने फैसले के लिए पार्टी के भीतर और बाहर आलोचना का सामना करना पड़ा।

स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में यूपी परिषद के चुनावों के दौरान, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया।

पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए यह बड़ा झटका था जब बीजेपी के उम्मीदवार वाराणसी और गोरखपुर में हार गए।

इन सफलताओं से उत्साहित, अखिलेश यादव ने केंद्र और राज्य सरकारों पर हमला किया है।

उन्होंने न केवल चल रहे किसान आंदोलन के लिए अपने समर्थन की घोषणा की, बल्कि ट्रैक्टर पर गणतंत्र दिवस पर अपने गांव में किसानों का नेतृत्व किया।

गौरतलब है कि अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ गठबंधन करने का भी संकेत दिया है।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के साथ समाजवादी पार्टी संगठन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अखिलेश यादव को जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में अपने चाचा की पकड़ के कारण लाभ होने की उम्मीद है।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अन्य छोटे दलों और जाति समूहों के साथ भी संपर्क में हैं ताकि बीजेपी से लड़ने के लिए इंद्रधनुषी गठबंधन बनाया जा सके।

छोटे दलों और समूहों में यह अहसास है कि अगर वे असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम के साथ हाथ मिलाते हैं, तो इससे न केवल मुस्लिम समुदाय में विभाजन होगा, बल्कि बहुसंख्यक समुदाय में ध्रुवीकरण में मदद मिलेगी, जिससे अंततः भाजपा को फायदा होगा।

इन दिनों छोटे दल और समूह अखिलेश यादव के कार्यों और गठबंधन के लिए उनकी ईमानदारी और उनके साथ सीटें साझा करने की इच्छा को परख रहे हैं।

यह उल्लेख किया जा सकता है कि जब समाजवादी पार्टी का गठन मुलायम सिंह यादव ने किया था तो उन्हें विभिन्न पिछड़ी जातियों का समर्थन प्राप्त था और उन्होंने पार्टी और मंत्रालय में महत्वपूर्ण पद देकर उनके नेताओं के साथ सत्ता साझा की। (संवाद)