मोदी सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को अंधाधुंध तरीके से लागू करती जा रही है और विपक्ष परिदृश्य से लगभग नदारद है। वैसी स्थिति में किसान आंदोलन आशा की एक किरण देश को दे रहा है, लेकिन किसान आंदोलन की परवाह करने को भी मोदी सरकार तैयार नहीं है। उसका अपना एक एजेंडा है और उस एजेंडे से पीछे जाने को वह कतई तैयार नहीं है। वैसी हालत में उसकी लगातार चुनावी हार ही उसे अपने हठ से पीछे हटने को विवश कर सकती है। दूसरी ओर, आने वाले चुनावों में मिली जीत सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने के उसके संकल्प को और भी मजबूत करेगा। इस क्रम में वह प्रतिरोध करने वाली ताकतों को क्रूरता से कुचलने में भी गुरेज नहीं करेगी।
गुजरात को छोड़कर अन्य राज्यों के चुनावों में पिछले कुछ दिनों से लगातार हार मिल रही है, लेकिन वे चुनाव स्थानीय निकायों के हैं। इसलिए वह इसकी ज्यादा परवाह नहीं कर रही है, लेकिन विधानसभा के चुनावों की रोशनी में उसे अपने फैसले पर फिर से विचार करना पड़ सकता है। हार के बाद वह पीछे हट सकती है ओर जीत के बाद वह और भी कृतसंकल्प होकर आगे बढ़ेगी।
जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से एक में, यानी असम में, भाजपा की सरकार है। उसके खिलाफ कांग्रेस और अजमल की पार्टी का गठबंधन खड़ा है। वहां से आ रही खबरों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी अभी भी मजबूत स्थिति में है, क्योंकि गठबंधन के सामने नेतृत्व का संकट है। इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि अन्य पार्टियों की अपेक्षा कांग्रेस को हराना भाजपा के लिए आसान है और वहां उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस ही है। अब चूंकि वहां पहले से ही भाजपा की सरकार है, इसलिए वहां भाजपा की जीत कोई खास मायने नहीं रखेगी।
लेकिन पश्चिम बंगाल के लिए यह सच नहीं है। यदि भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल का चुनाव जीत जाती है, तो यह जीत उसके लिए 2019 की लोकसभा चुनाव जीत के बराबर होगी। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने वहां अपनी सारी ताकत झोंक रखी है। चुनाव 5 राज्यों में है, लेकिन अपनी ताकत का 80 फीसदी तो भाजपा ने पश्चिम बंगाल में ही लगा रखा है और शेष 4 राज्यों में शेष 20 फीसदी ताकत से ही वह काम चला रही है।
वैसे दक्षिण के तीन प्रदेशों में उसके पास करने के लिए विशेष कुछ है भी नहीं। केरल में मुकाबला सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच है। भाजपा का जोर वहां दो- तीन सीटें निकालने पर ही होगा। यदि उसका वोट प्रतिशत बढ़ा, तो इसका फायदा एलडीएफ को ही होगा, क्योंकि देश भर में यह देखा जा रहा है कि कांग्रेस की कीमत पर ही भाजपा आगे बढ़ती है। कांग्रेस के जनाधार ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के विधायकों में भी कांग्रेस की ओर खिसकने की प्रवृति है।
तमिलनाडु और पुदुचेरी में कांग्रेस एआइएडीएमके की जूनियर पार्टनर है और वहां जीत दिलाने की मुख्य जिम्मेदारी दक्षिण की उस द्रविड़ पार्टी के पास ही है। तमिलनाडु में उसके गठबंधन की जीत तो लगभग असंभव लग रही है, क्योंकि स्टालीन अपने पिता करुणानिधि का स्थान तमिलनाडु की राजनीति में लगभग ले चुके हैं और शशिकला के अपनी सजा काटकर जेल से बाहर आ जाने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी की हालत और भी पतली हो जाना स्वाभाविक ही है। पुदुचेरी में शायद भाजपा के पक्ष में सत्ता का परिवर्तन हो जाए और उसे वह अपनी जीत के रूप में खूब प्रचारित करेगी, हालांकि वहां की आबादी मात्र 15 लाख है, जो बंगाल और बिहार की किसी भी एक संसदीय क्षेत्र की आबादी से भी बहुत कम है।
भारतीय जनता पार्टी की असली परीक्षा पश्चिम बंगाल में ही हो रही है। सच कहा जाय, तो सिर्फ बंगाल के नतीजे ही यह तय करेंगे कि देश के भविष्य में क्या लिखा हुआ है। किसान आंदोलन के आगे झुकना है या नहीं, इसका फैसला मोदी बंगाल के चुनाव के नतीजे देख कर ही तय करेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को शानदार सफलता मिली थी और उसने 18 सीटें हासिल कर ली थीं। अब वह अपना प्रदर्शन और बेहतर करने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है। भारी पैमाने पर लोभ, भय या दोनों दिखाकर दल बदल कराया जा रहा है, उसे प्रचारित कर अपने पक्ष में वह वातावरण तैयार कर रही है, लेकिन लेफ्ट- कांग्रेस की एक रैली में उमड़ी अपार भीड़ ने उसके पैरों में कंपकंपी भी पैदा कर दी है। इसका कारण यह है कि लेफ्ट-कांग्रेस के आधार को अपनी ओर खींचकर ही भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटों पर जीतने में सफल हुई थी। यदि उस जनाधार का एक हिस्सा लेफ्ट-भाजपा की ओर वापस जाता है, तो फिर भाजपा की स्थिति दयनीय हो जाएगी और वैसी हालत में सत्ता में आना तो दूर, विधानसभा में मुख्य विपक्ष बनने की भूमिका को भी तरस जाएगी। यह स्थिति भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद असंतोषजनक होगा, लेकिन इसके कारण शायद देश का ‘सबकुछ’ बेच देने के अपने जुनून से वह बाज आ जाए।
जाहिर है, पांच राज्यों के चुनावों में पश्चिम बंगाल का चुनाव ही वह चुनाव है, जो देश के भविष्य को बनाने या बिगाड़ने की क्षमता रखता है। (संवाद)
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव
देश के राजनैतिक भविष्य के लिए ये निर्णायक होंगे
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-03-02 09:47
पांच राज्यों में हो रहे चुनाव न केवल उन राज्यों की सरकारों का गठन करेंगे, बल्कि वह देश के राजनैतिक भविष्य के भी नियंता होंगे। इसका कारण यह है कि वे चुनाव इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रहे हैं। केन्द्र की सरकार अंधाधुध सार्वजनिक संपत्तियों को ही नहीं बेच रही है, बल्कि उसने ऐसी नीतियां अपनानी शुरू की हैं, जिनसे निजी संपत्तियों का केन्द्रीकरण भी कुछ निजी हाथों में ही होता चला जाएगा और देश में भयंकर आर्थिक विषमता का राज हो जाएगा। इस तरह का राज लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक होगा। इसके कारण देश के लोकतंत्र के समाप्त हो जाने या सिर्फ नाममात्र के रह जाने का खतरा है।