राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि हिन्दुत्व की राजनीति के सहारे वह वहां की सरकार पर कब्जा करना चाहती है। हिन्दुत्व की राजनीति भारतीय जनता पार्टी की धोषित रणनीति रही है, लेकिन उसकी सफलता का असली उसके द्वारा की जाने वाली जाति की राजनीति है। सच कहा जाय, तो जाति की राजनीति की समझ भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक को जितनी है, उतनी किसी भी कथित मंडलवादी नेता की नहीं रही है। बिहार हो या उत्तर प्रदेश- वहां के समाज के जातीय अंतर्विरोध का इस्तेमाल कर ही भारतीय जनता पार्टी ने दोनों राज्यों में अपने आपको मजबूत कर लिया है। उत्तर प्रदेश में तो वह भारी बहुमत से सत्ता में है और बिहार में नीतीश की उपस्थिति उसके वहां एकछत्र राज करने के अरमानों को तार तार कर रही है।
उत्तर प्रदेश और बिहार ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में उसकी सफलता का मुख्य राज भी उसके द्वारा की गई जाति की राजनीति ही है। पूरे हिन्दी प्रदेश और महाराष्ट्र में ओबीसी मतदाताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग उसे वोट देता है और उसे या तो जिता ही देता है या जीत के पास पहुंचा देता है। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा उसी जाति की राजनीति के द्वारा ममता बनर्जी को पटकनी देने की कोशिश कर रही है। उसे हिन्दुत्व और सांप्रदायिकता पर उतना भरोसा नहीं, जितना जाति आधारित शोसल इंजीनियरिंग पर है।
पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में उसकी सफलता का राज भी उसके द्वारा की गई जातिवादी राजनीति ही है। उसके थिंक टैंक को पता है कि कौन सी जातियां वर्तमान राजनीति में अपने आपको बेगाना पा रही हैं और किसकी क्या आकांक्षा और महत्वाकांक्षा है। वह सांप्रदायिकता के साथ जाति की राजनीति का जबर्दस्त मिश्रण भी बना देती है। पश्चिम बंगाल में उसने ऐसा किया है। वह ओबीसी कार्ड खेल रही है और ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे दावों का ऐसा इस्तेमाल कर रही है, जिसे देखकर अच्छे अच्छे मंडलवादी नेता विस्मित हो सकते हैं।
ममता बनर्जी बहुत जोर शोर से कहती हैं कि उन्होंने 97 फीसदी मुसलमानों को ओबीसी श्रेणी में डाल दिया है और वे ओबीसी का लाभ उठा रहे हैं। तो भाजपा कह रही है कि यह तो हिन्दुओं की पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय है। उनका हिस्सा मुसलमानों को दिया जा रहा है। पश्चिम बंगाल की कुछ हिन्दू जातियां, जो ब्राह्मण, वैद्य और कायस्थ नहीं हैं, उन्हें ओबीसी लिस्ट में डालने का वह वायदा कर रही है और जो पहले से ओबीसी लिस्ट में डले हुए है, उन्हें याद दिला रही है कि देखिए आपका हिस्सा मुसलमान खा रहे हैं और इसकी घोषणा खुद ममता बनर्जी कर रही हैं।
महिष्य नाम की जाति पश्चिम बंगाल की सबसे अधिक संख्या वाली जाति है। यह कुल आबादी की 15 से 20 फीसदी होगी। यह ओबीसी नहीं है, लेकिन उसकी बराबर हैसियत वाले यादव और कुर्मी बिहार में ओबीसी हैं। महिष्य को ओबीसी श्रेणी में डालने का भाजपा लालच दे रही है। हालांकि ममता बनर्जी भी कह रही हैं कि वह भी वैसा कर देगी। उसी तरह तिल्ली नाम की एक जाति है, वह भी ओबीसी नहीं है। उसे भी ओबीसी सूची में लाने का वायदा बीजेपी कर रही है और इन दोनों जातियों का समर्थन पाने की उम्मीद कर रही है। अपनी उम्मीद में वह कितना सफल होगी, यह तो बाद में ही पता चलेगा। लेकिन फिलहाल यह कह सकते हैं कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में जातीय चेतना लाने का काम तो भाजपा ने कर ही दिया है।
महिष्य और तिल्ली के अलावा एक अन्य जाति है, जिसे कुड़मी महतो कहा जाता है। जंगल महल के इलाके में इसकी संख्या बहुत है। कहीं कहीं तो यह 40 फीसदी तक है। जंगल महल इलाके की 6 में 5 लोकसभा सीटों पर भाजपा द्वारा कब्जा किए जाने में महतो लोगों का बड़ा हाथ है। महतो अभी ओबीसी में है। लेकिन वे अपने ओबीसी स्टैटस से खुश नहीं हैं और अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं और पूरी तरह से आदिवासी ही हैं। इसलिए उन्हें अनुसूचित जनजाति माना जाय। भाजपा ने उनकी इस मांग के प्रति सहानुभूति दिखाई और अनुसूचित जाति बनने के लोभ में उन्होंने पिछले 2019 के चुनाव में भाजपा को जबर्दस्त वोट डाले और भाजपा को अपने इलाके में भारी जीत दिला दी। 2021 के चुनाव में भाजपा के प्रति बहुत उत्साहित नहीं हैं, क्योंकि 2019 के बाद जीतकर भाजपा ने इस दिशा में कुछ नहीं किया, लेकिन इसी आधार पर भाजपा उनसे एक बार फिर समर्थन पाने की कोशिश कर रही है।
दलित नमोशूद्रों का समर्थन पाने के लिए प्रधनमंत्री मोदी ने हद कर दी। उनकी जाति भावना का इस्तेमाल कर भारतीय जनता पार्टी ने उसे अपनी ओर कर रखा है। नागरिकता संशोधन कानून का इस्तेमाल कर भी उसे अपनी ओर किया जा रहा है। उतना से मन नहीं भरा तो मोदी ने चुनाव के बीच ही बांग्लादेश का दौरा कर लिया और जिस दिन पश्चिम बंगाल मे पहले चरण का मतदान हो रहा था, उसी दिन नमोशूद्रा के मतुआ समुदाय के मुख्य पीठ में जाकर पूजा- पाठ और दंडवत करने लगे। बांग्लादेश के कटु अनुभव के कारण नमोशूद्र पहले से ही हिन्दुत्व के प्रभाव में हैं, लेकिन मोदी को पता है कि जाति का रंग धर्म के रंग से गाढ़ा होता है, इसलिए बांग्लादेश जाकर उनकी जाति भावना पर अपना मक्खन लगा रहे थे। इस तरह से भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि वह जाति की राजनीति का खेल जिस बेहतर तरीके से कर सकती है, वैसा कोई और नहीं कर सकता। (संवाद)
पश्चिम बंगाल के चुनाव
जाति की राजनीति के भरोसे भाजपा
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-03-31 13:32
पश्चिम बंगाल में चुनाव की प्रक्रिया जारी है। आठ चरणों में मतदान के बाद 2 मई को नजीजे आ जाएंगे। ममता बनर्जी के फिर सरकार में आ जाने की संभावना है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपनी तरफ से वे सारी कोशिशें कर रही है, जिनकी सहायता से वे सत्ता पर काबिज हो जाए। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे कुल 42 सीटों में 18 सीटें हासिल हुई थीं, जो तृणमूल कांगेस की 22 सीटों से कुछ ही कम थी। जाहिर है, उससे उत्साहित होकर वह वहां की सत्ता पर कब्जा करने की न केवल सपने देख रही है, बल्कि उसके लिए अपने सारे संसाधनों को वहां झोंक रखा है।