इसलिए हार का मतलब भाजपा के लिए है कि वह अपनी विनाशकारी नीतियों पर बढ़ने से वह बाज आए। एक उसकी नीति राष्ट्र नागरिक रजिस्टर बनाने की है, जिसे अपने मन मुताबिक बनाने के लिए उसने एक नागरिकता संशोधन कानून भी बनाया है। असम चुनाव की कसौटी पर भाजपा यह देखेगी कि वह इन दोनों मामलों में जो नीति अपना रही है, वह सही है या गलत। सच कहा जाय, तो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने का मामला असम से ही शुरू हुआ है। और यह भी सच है कि मोदी सरकार द्वारा यह रजिस्टर बनाने के लिए जिस नागरिकता संशोधन कानून का निर्माण हुआ, उसका सबसे अधिक विरोध भी असम में ही हुआ है और असम के चुनाव की पृष्ठभूमि में मुख्य रूप से यही नागरिकता कानून है।

नागरिकता कानून का असम के लगभग सभी तबकों द्वारा विरोध हो रहा है। बांग्लाभाषी मुस्लिमों को लगता है कि इसके कारण वे विदेशी करार दिए जाएंगे और नागरिकता रजिस्टर में उनका नाम नहीं आ पाएगा। दूसरी तरफ असमी भाषियों को लगता है कि इसके कारण सिर्फ मुस्लिम बांग्लाभाषी ही बाहर होंगे, जबकि हिन्दू बांग्लाभाषियों को नागरिकता दे दी जाएगी और उनकी पुरानी मांग पूरी हो ही नहीं पाएगी, क्योंकि वे तो बांग्लादेश से आए सभी लोगों को, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान, बाहर करने की मांग कर रहे हैं।

बांग्लाभाषी हिन्दुओं का ही एकमात्र ऐसा समुदाय है, जो इस नागरिकता कानून से खौफजदा नहीं है, क्योंकि उनकी नागरिकता को इससे कोई खतरा नहीं है। उनके अलावा अन्य सारे समुदाय इस कानून का विरोध कर रहे हैं। बांग्लाभाषी हिन्दुओं की संख्या मुश्किल से 15 से 20 फीसदी की होगी, जो पश्चिम बंगाल या बांग्लादेश से आकर वहां रह रहे हैं। वैसे आंदोलन तो बांग्लादेशी शरणार्थियों के खिलाफ होते रहे हैं, लेकिन जब वास्तव में पहचान करने का समय आता है, तो गाज पश्चिम बंगाल से आए बांग्लाभाषियों पर भी गिर जाती है।

इस पृष्ठभूमि में असम का चुनाव जीतना भारतीय जनता पार्टी के लिए लगभग असंभव लग रहा है, क्योंकि उसकी विरोधी पार्टियां एक हो गई हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में 7 भाजपा विरोधी पार्टियों ने एक महाजुट बनाया है, जिसमें अजमल की यूनाइटेड डेमाक्रेटिक पार्टी, बोडो पीपल्स फ्रंट, सीपीआई, सीपीआई(एम), सीपीआई(एमएल) और राष्ट्रीय जनता दल है। एक और फ्रंट चुनाव मैदान में है, जिसका नेतृत्व रायजोर दल है। यह फ्रंट भी नागरिकता कानून के खिलाफ है और इसके नेता ने मतदाताओं से अपील की है कि भाजपा को हराना उनकी पहली प्राथमिकता है और ऐसा करने के लिए उसके समर्थक कांग्रेस के नेतृत्व वाले महाजुट का भी चाहें, तो समर्थन कर सकते हैं। उनकी इस घोषणा ने भाजपा का काम और भी कठिन कर दिया है।

असम में 25 फीसदी मुसलमान हैं। वे पिछले कुछ चुनावों में आपस में बंटे होते थे, लेकिन जिन लोगों के बीच वे बंटते थे, उन्होंने आपस में महाजुट बना लिया है, इसलिए उनके वोट इस बार बंटने वाले नहीं है। भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम एकजुटता के खिलाफ हिन्दुओं को एकजुट करके राजनीति करती है। सैद्धांतिक रूप से देखा जाय, तो शेष 65 फीसदी की गैर मुस्लिम आबादी भाजपा की जीत सुनिश्चित कर सकती है, लेकिन वैसा होना नहीं है, क्योंकि उनमें भी अनेक किस्म के विभाजन हैं। पहली बात तो सारे शेष 65 फीसदी हिन्दू नहीं हैं और हिन्दू भी बंगाली, असमी और आदिवासी में बंटे हुए है, जिनके मतदान करने की सोच अलग अलग होती है।

बांग्लाभाषी हिन्दू तो भाजपा के समर्थक है, लेकिन अब असमी हिन्दू आमतौर पर उसके समर्थक नहीं रहे, क्योंकि वे नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। बोडोलैंड के आदिवासियों का भी वोटिंग स्वभाव अलग है। उनकी दो मुख्य पार्टियां है। एक महाजुट मे है, तो दूसरा भाजपा के साथ है। इसके कारण यह मानकर चलें कि उनके मतों को दोनों तरफ विभाजन होगा, और वहां की जीत हार अन्य समुदाय करेंगे। बोडो लैंड के गैर आदिवासी समुदायों में मुस्लिमों की संख्या भी अच्छी खासी है, जिसका पहले तीन तरफा विभाजन होता रहा है। लेकिन अब वे तीनों पक्ष एक साथ हैं, इसलिए उनका एकतरफा वोट महाजुट के पक्ष में ही पड़ेगा। जाहिर है, बोडोलैंड की सभी 12 सीटें एक बार फिर बोडो पीपल्स फ्रंट जीत सकती है। पिछली बार भी उसी की जीत हुई थी, लेकिन तब वह भाजपा के साथ थी। पर अब वह कांग्रेस के साथ है।

भारतीय जनता पार्टी असम गण परिषद के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है, लेकिन असम गण परिषद पहले वाली परिषद नहीं रही है। उसमें बिखराव हो चुका है और उसका बांग्लादेशी शरणार्थी विरोधी जनाधार भाजपा में समा गया था। जिसके कारण ही उसे भाजपा की गोद में आना पड़ा। लेकिन अब वह आधार पूरा नहीं, तो आंशिक तौर पर ही नागरिकता संशोधन विधेयक के कारण भाजपा विरोधी हो चुका है। इसलिए उसका वोट भी महाजुट या तीसरे मोर्चे को पड़ने की संभावना है। जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है। सारी जमीनी हकीकत उसके खिलाफ हो चुकी है। 5 साल से सत्ता में होने के कारण उसे अपनी विफलताओं का जवाब भी जनता को देना पड़ रहा है। लिहाजा, भारतीय जनता पार्टी को अब कोई चमत्कार ही जिता सकता है। (संवाद)