सबसे आश्चर्य की बात है कि यह दूसरी लहर उस समय शुरू हुई, जब भारत में टीकाकरण का काम शुरू हो चुका था। टीकाकरण के ठीक पहले भारत में कोरोना वायरस अपने आप नियंत्रित होता दिख रहा था और कुछ लोग तो यह कह रहे थे कि जब कोरोना ही समाप्त हो रहा है, तो वे टीका लगाएंगे ही क्यों? कोरोना संक्रमितों की घटती संख्या को सरकार के कुछ लोग टीकाकरण अभियान की उपलब्धि भी बताने लग गए थे। लेकिन उसी समय इसकी संख्या बढ़ने लगी और बढ़ते-बढ़त ेअब ऐसी स्थिति में पहुंच गई है कि एक बार फिर पूरा देश लॉकडाउन की आशंका से कांप रहा है, हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने शुरू भी कर दिए हैं।
आखिर ऐसा हुआ क्यों? क्या जो हुआ, वह अवश्यंभावी था? क्या इसे रोका नहीं जा सकता था? ये सवाल कुछ लोगों के जेहन में उठने स्वाभाविक हैं। यूरोपीय देशों में उधर तबाही मची हुई थी और इधर भारत के लोग सक्रिय कोरोना संक्रमितों की संख्या घटते जाने से राहत की सांस ले रहे थे। जाड़े के मौसम में यह महामारी विकराल रूप धारण करेगी। यह आशंका भी गलत साबित हो चुकी थी, क्योंकि जाड़े के मौसम में ही यह बीमारी नियंत्रण में आ रही थी। प्रतिबंध एक के बाद एक हटाए जो रहे थे और प्रतिदिन संक्रमण की रफ्तार घटती जा रही थी। प्रतिदिन संक्रमण का आंकड़ा 8 हजार तक आ गया था और सक्रिय कोरोना संक्रमितों की संख्या भी बहुत कम हो गई थी।
लेकिन यह बढ़ी, तो इसके लिए फिर मोदी सरकार की कमजोरियां ही सामने आईं। यह नहीं मानने का कोई कारण नहीं कि कोरोना के नये स्ट्रेंस को हमने एक बार फिर विदेशों से आयातित किया। केन्द्र सरकार ने पिछले साल कोरोना संकट शरू होने के समय बहुत भारी गलती कर दी थी। विदेशों से लोगों को बेरोकटोक 18 मार्च, 2020 तक आने दिया गया, जबकि कोरोना ने भारत में जनवरी महीने के अंतिम दिनों में ही दस्तक दे दी थी और दुनिया भर में उसका विस्तार हो रहा था। फरवरी महीने में नमस्ते ट्रंप का आयोजन कर उसे भारती मात्रा में आयात कर लिया गया। सरकार ने यदि बाहर से आने वालों को रोका होता और भारत से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया होता, तो देश में बहुत हद तक कोरोना के प्रकोप को कम किया जा सकता था, लेकिन सरकार की नींद बहुत देर से टूटी और टूटी भी तो मध्यप्रदेश में कांग्रेसी विधायकों को दलबदल कराकर भाजपा सरकार बनाने में मोदी सरकार ने 10 दिन और बर्बाद कर दिए। फिर एकाएक पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। लॉकडाउन करने के पहले किसी तरह की कोई तैयारी नहीं की गई और उसके बाद पैदा होने वाली स्थितियों पर पहले से कोई विचार ही नहीं किया गया। यह सबकुछ देश के राजनैतिक नेतृत्व की विफलता का परिणाम था।
अब वही गलती सरकार टीकाकरण के मामले में भी दुहरा रही है। भारत पिछले कई दशकों से वैक्सिन का एक बड़ा उत्पादक देश है। सच कहा जाय तो यह दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सिन उत्पादक देश है। पुणे स्थित एसएसई दुनिया की वैक्सिन उत्पादक सबसे बड़ी कंपनी है। उसने रिस्क लेकर करोड़ों कोरोना वैक्सिन डोज समय से पहले ही तैयार कर रखे थे। यदि वह वैक्सिन सफल नहीं होता, तो उस वैक्सिन भंडार के नष्ट करना पड़ता। अच्छी बात है कि अस्त्राजेनिका की वह वैक्सिन जिसे पुणे की वह कंपनी तैयार कर चुकी थी, सफल रही और वह भारत में बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए उपलब्ध भी था। सरकार ने 16 जनवरी से टीकाकरण अभियान शुरू भी कर दिया, लेकिन टीकाकरण की उसकी नीति गलत थी, जिसके कारण टीकाकरण की मांग टीकों की आपूर्ति से बहुत कम थी। हेल्थवर्क और फ्रंटलाइन वर्कर तक उसने पहले फेज में टीकाकरण को सीमित रखा।
सही नीति तो यह होती कि हेल्थ वर्कर और फ्रंटलाइ वर्कर के साथ साथ उन राज्यों में सबको वैक्सिन लगाया जाता, जहां कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक थी। वहीं से अन्य स्थानों पर ही कोरोना फैलना था। कायदे से महाराष्ट्र और केरल को सबसे पहले टीका दे दिया जाना चाहिए था और वह भी 18 साल की उम्र और उसके ऊपर के सभी लोगों को, लेकिन जिस तरह लॉकडाउन में मोदी ने पूरे देश को एक नजर से देखते हुए वहां भी इसकी घोषणा कर दी, जहां कोई भी कोरोना संक्रमित नहीं था, उसी तरह टीकाकरण में भी पूरे देश के लिए एक ही नीति अपनाई गई, जो गलत थी। यह सामान्य समझ की बात है कि जहां संकट ज्यादा होता है, वहां राहत सामग्री ज्यादा पहुंचाई जाती है और कोरोना के मामले में तो एक जगह का संकट दूसरी जगह पहुंचता है। महाराष्ट्र के लिए मोदी सरकार ने अलग नीति नहीं अपनाई उसका असर यह है कि उससे सटे अन्य प्रदेश आज बुरी हालत में हैं। गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और कनार्टक महाराष्ट्र के पड़ोसी प्रदेश हैं और वहीं से इन राज्यों में संक्रमण तेजी से पहुंचा है। तमिलनाडु में केरल से संक्रमण आए। महाराष्ट्र से मजदूर पलायन कर उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल वापस आ रहे हैं और अपने साथ कोरोना वायरस लाकर वहां भी फैला रहे हैं। इस तरह मोदी सरकार की दृष्टिहीनता और वैक्सिनेशन की गलत नीति के कारण सारा देश कोरोना की भयंकर मार से ग्रस्त हो रहा है। काश मोदी सरकार ने अपनी पुरानी विफलताओ से सीख ली होती!! (संवाद)
कोरोना का महाविस्फोटः सरकार अपनी गलतियों से सीख नहीं ले रही
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-04-07 11:04
भारत में कोरोना का महाविस्फोट हो चुका है। दुनिया में यह प्रतिदिन सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित होने वाले देशों की सूची में यह पहले स्थान पर पहुंच चुका है। इन वाक्यों के लिखते समय भारत में प्रतिदिन कोरोना संक्रमण की रफ्तार एक लाख पन्द्रह हजार से भी ज्यादा थी। इसे इस महामारी की दूसरी लहर भी कहा जा रहा है। पहली लहर में प्रतिदिन संक्रमण की रफ्तार 97 हजार थी। जाहिर है, यह दूसरी लहर पहली लहर से बड़ी है और लहर के फैलाव की गति भी बढ़ रही है। यदि अगले एक सप्ताह तक यह गति बनी रही, तो प्रतिदिन संक्रमण की संख्या दो लाख से भी ऊपर पहुंच जाएगी।