लेकिन मोदी की सबसे कटु आलोचना इंडियन मेडिकल एसोशियेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नवजोत सिंह दहिया ने की है। उन्होंने तो नरेन्द्र मोदी को कोरोना का सुपर स्प्रेडर तक बता दिया है। कुछ दिन पहले तक कोई हरिद्वारा कुंभ को सुपर स्प्रेडर बता रहा था, तो कोई चुनाव में होने वाली बड़ी बड़ी रैलियों को सुपर स्प्रेडर बता रहा था, पर यह पहली बार है कि किसी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही सुपर स्प्रेडर घोषित कर दिया है।

मोदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत की बात यह है कि उन्हें सुपर स्प्रेडर उनके किसी राजनैतिक आलोचन ने नहीं कहा है और न ही किसी राजनैतिक टिप्पणीकार ने, बल्कि एक डॉक्टर ने कहा है, डॉक्टरों के संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। इसमें दो राय नहीं कि हरिद्वार कुंभ ने कोरोना को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही थी। इन पंक्तियों के लेखक ने भी मांग की थी कुम्भ के आयोजन पर रोक लगाई जाए, क्योंकि इससे कोरोना विस्फोट महाविस्फोट का रूप ले लेगा। उस पर प्रतिबंध लगाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही थी, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी उस जिम्मेदारी का निबाह नहीं किया। मोदी को सुपर स्प्रेडर बताने का एक कारण डॉक्टर दहिया हरिद्वार कुंभ पर रोक नहीं लगाने के उनके निर्णय को बता दिया है।

हरिद्वार कुम्भ को रोका क्यों नहीं गया, इस सवाल का जवाब मोदी को देना इसलिए भी जरूरी हो गया है कि सामान्य अंकगणित के अनुसार इस कुम्भ का वर्ष 2022 होना चाहिए था। पिछला हरिद्वार कुम्भ 2010 में हुआ था और यह प्रत्येक हिन्दू को पता है कि किसी स्थान पर अगला कुम्भ 12 साल के बाद आयोजित किया जाता है। अब यदि पिछला 2010 में हुआ, तो अगला 2022 में होना चाहिए, लेकिन अभीत तो 2021 ही चल रहा है। अभी तो 11 साल ही हुए हैं, फिर एक साल पहले यह क्यों आयोजित कर लिया गया? कुछ लोग कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्रियों की गणना के अनुसार ऐसा किया गया, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जा कहते हैं कि ऐसा राजनैतिक कारणों से किया गया। उनका कहना है कि अगले साल उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में विधानसभा का आमचुनाव है। आम चुनाव में उत्तराखंड की सरकारी मशीनरी लगी रहेगी और सारे साधु संत भी वहां पहुंचे रहेंगे। इसलिए एक ओर तो कुम्भ का आयोजन मुश्किल हो जाएगा और दूसरे, आजकल चुनावों में साधु संतों का भी इस्तेमाल होता है और वे साधु संत उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगे। यदि साधु संतां की बात छोड़ भी दिया जाय, तो भाजपा और आरएएस के सक्रिय नेता और कार्यकर्त्ता भी कुम्भ मेले में जाकर अपनी राजनैतिक पहुच संतों तक बनाए रखना चाहते हैं और वैसे नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के लिए यह निर्णय करना कठिन हो जाएगा कि वे कुम्भ में शिरकत करें या चुनाव में।

जाहिर है, मोदीजी का स्पष्टीकरण तो बनता है कि कुम्भ मेला का अपने तय समय से एक साल पहले किया गया आयोजन राजनैतिक कारणों से था या वास्तव में ज्योतिष गणितज्ञ कारणों से। कारण चाहे जो भी रहा हो, जब महामारी फैली हुई हो, तो इस आयोजन पर रोक लगानी ही चाहिए थी। उसका पूरा अधिकार केन्द्र सरकार के पास हैं। लेकिन मोदी सरकार ने अपने दायित्व का पालन नहीं किया। हरिद्वारा कुम्भ आयोजित हुआ। लाखों लोग वहां इकट्ठा हुए और वे अपने अपने गांवों, कस्बों और शहरों में जाकर कोरोना फैलाने का कारण बने।

कुम्भ के अलावा डॉक्टर दहिया ने मोदी को चुनावी रैलियों के कारण भी सुपर स्प्रेडर का खिताब दिया है। चुनावी राज्यों में बड़ी बड़ी रैलियां हुईं और उनके कारण भी कोरोना का सक्रमण बढ़ा। उन रैलियों का प्रभाव उन राज्यों तक ही सीमित नहीं रहा, जहां चुनाव हो रहे थे। उदाहरण के बंगाल की रैलियों में बिहार, झारखंड, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश तक से लोगों को ले जाया गया, ताकि उनमें भीड़ ज्यादा दिखाई पड़े। बीजेपी के पास सबसे ज्यादा संसाधन हैं, इसलिए उसने सबसे ज्यादा बंगाल के नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को वहां लगा रखा था। भारी संख्या में रैली में शामिल होने वालों की बसों, टम्पुओं और ट्रकों में ढुलाई हो रही थी और उसमें न तो मास्क का और न ही डिस्टेंस के नॉर्म्स का पालन हो रहा था। अन्य नेताओं की सभाओं में भी ये नार्म्स गायब थे। जाहिर है, कोरोना तेजी से फैला। बंगाल चुनाव के कारण कोरोना का फैलाव सिर्फ बंगाल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा झारखंड और दिल्ली भी उससे प्रभावित हुए। खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोरोना के शिकार बने।

चुनावी तिथियां निर्वाचन आयोग तय करता है, लेकिन वे केन्द्र और राज्य सरकारों औ अन्य राजनैतिक दलों की राय पर विचार करने के बाद ही निर्णय लेता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जल्द से जल्द चुनाव चाहती थीं, ताकि कोरोना का प्रकोप ज्यादा नहीं हो, लेकिन निर्वाचन आयोग ने उनकी नहीं सुनी। कहते हैं कि भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए 8 फेज में मतदान कराने का फैसला लिया गया। एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी को पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी चुनाव प्रक्रिया जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए निर्चाचन आयोग को तैयार करना चाहिए था, क्योंकि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ दूसरी लहर की चेतावनी से पहले से ही दे रहे थे। यदि फरवरी और मार्च में ही सारे चुनाव करवा लिए जाते तो यह विस्फोटक स्थिति नहीं पैदा होती। (संवाद)