उसके नतीजे भी सामने आ गए हैं, जिनका आशा के अनुरूप देश के कथित राष्ट्रीय चैनल पर्याप्त कवरेज नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उसमें भाजपा की भयानक हार हुई है। भाजपा के मात्र 23 फीसदी उम्मीदवार ही जीत पाए हैं। मतलब कि उनके 77 फीसदी उम्मीदवार चुनाव हार चुके हैं। हर चुनाव को भारतीय जनता पार्टी एक बड़े युद्ध की तरह लेती है। उत्तर प्रदेश में भी वैसा ही था। सारे मंत्री और सांसद भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में लगे हुए थे। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली और उन्हें हार का मुह देखना पड़ा।
वैसे कोरोना के इस संकट काल में वहां पंचायत का चुनाव कराया ही नहीं जाना चाहिए था। पड़ोस के हरियाणा में भी पिछले पंचायत का कार्यकाल पिछले फरवरी में ही समाप्त हो गया था, लेकिन वहां कोरोना का हवाला देकर चुनाव नहीं करवाए गए। हालांकि अधिकांश लोगां का मानना है कि भाजपा ने हार के डर से वहां चुनाव नहीं करवाए, क्योंकि किसान आंदोलन वहां सबसे ज्यादा तेज है और पंचायत के सारे चुनाव दलीय आधार पर ही होते हैं। भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में हार का सामना नहीं करना चाहती थी, इसलिए कोरोना का बहाना करके उसने वहां चुनाव कराया ही नहीं।
लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनाव कराया, क्योंकि उसे लग रहा था कि वह यहां चुनाव जीत जाएगी। इसका कारण है कि किसान आंदोलन पश्चिम उत्तर प्रदेश के छोड़कर अन्य अन्य हिस्सों में उग्र नहीं दिख रही थी। इसलिए भाजपा को लगा कि यहां चुनाव करवा दिया और जिला पंचायत परिषदों में जीत का पताका लहराकर किसान आंदोलन को ही जनविरोधी करार कर दिया जाय। यह कहा जाय कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीत दिलाकर किसानों ने साबित कर दिया है कि वे आंदोलनकारियों के साथ नहीं है।
पर भारतीय जनता पार्टी के मंसूबे पूरे नहीं हो सके। वह पूरब से पश्चिम तक हारी। वह सभी जिलों मे हारी। प्रदेश को कोई एक ऐसा जिला नहीं है, जिसकी विकास परिषद में उसे बहुमत हासिल हुआ हो। यदि जीते हुए उम्मीदवारों की संख्या की बात की जाय, तो समाजवादी पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर जीती है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन भी था। इस गठबंधन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में बहुमत हासिल हो चुके हैं। यदि पूरे प्रदेश स्तर की बात की जाय, तो समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन को प्रदेश की सभी जिला विकास परिषद की सीटों का करीब 30 फीसदी प्राप्त हुआ है। बहुजन समाज पार्टी को करीब 10 सीटें प्राप्त हुई हैं।
वैसे यदि उत्तर प्रदेश में यह चुनाव नहीं होता, तो यहां के लोगों के लिए बेहतर होता। पंचायत चुनावों के कारण देश की सबसे बड़ा आबादी वाले राज्य में कोरोना का महाविस्फोट हो चुका है। शिक्षकों को जबर्दस्ती चुनाव कार्य में शामिल करवाया गया और उनमें से सैंकड़ों तो कोरोना के कारण मौत के शिकार हो गए और हजारों कोरोना संक्रमित हो गए। प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या भी लाखों में पहुंच गई है। यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी यह दिखाना चाहती थी कि किसान आंदोलन नाम की कोई चीज यूपी में है ही नहीं और राकेश टिकैत जैसे कुछ सनकी किसान दिल्ली बोर्डर पर बेकार के पड़े हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में इस हार का भारतीय जनता पार्टी के भविष्य के लिए बहुत मायने रखता है। यह प्रदेश गुजरात के बाद उसका सबसे बड़ा गढ़ रहा है। अयोध्या ही नहीं, काशी और मथुरा भी उत्तर प्रदेश में ही है और इन तीन स्थानों से जुड़ी हिन्दुओं की घार्मिक भावनाओं को भड़काकर वह आगे की राजनीति का सपना भी देख रही है। लेकिन इन तीनों स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी हार गई है। अयोध्या में जहां वह भव्य मंदिर बना रही है, हारी ही, मथुरा और अयोध्या में भी वह पराजित हो गई है। उसकी इस पराजय को उसके अंत की शुरूआत माना जाय या नहीं, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि मायावती और अखिलेश दो ऐसे फैक्टर हैं, जो भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाते हैं। इन दोनों के खिलाफ उत्तर प्रदेश की आबादी के बहुत बड़े हिस्से में आक्रोश है और उसका फायदा भाजपा को मिलता रहता है।
लेकिन फिर भी मानना पड़ेगा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है। उसकी हार सर्वव्यापी है। मुजफ्फर नगर दंगे के बाद खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश की हिन्दू किसान जातियां उसके पाले में आ गई थीं। लेकिन तीन कृषक कानून के बाद वे अब पूरी तरह उसके खिलाफ हो चुके हैं और यदि इन कानूनों को वापस नहीं लिया गया, तो उनका भाजपा के पाले में फिर से आना निहायत ही असंभव है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नहीं, पूरे प्रदेश में किसान आंदोलन एक बड़ा मसला है, जिसे हल्का दिखाने की कोशिश में भाजपा विफल हो चुकी है।
किसान आंदोलन के अलावा कोरोना भी भारतीय जनता पार्टी का पीछा नहीं छोड़ने वाली है। इसके कारण लोग मोदी और योगी दोनों से ही नाराज हैं। कोरोना से मरने वालो की संख्या बताए जा रहे आंकड़े से कई गुना ज्यादा हैं। बीमारी को तो प्रकृति का प्रकोप बताकर भाजपा अपने को निर्दोष ठहरा सकती है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा की बदइंतजामी और ऑक्सीजन की कमी के दाग जो उसके दामन पर पड़ रहे हैं, उससे वह कैसे मुक्ति पाएगी? (संवाद)
भाजपा की असली हार बंगाल में नहीं, यूपी में हुई है
किसान आंदोलन ने बीजपी के पैरों के नीचे की मिट्टी खिसका दी है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-05-07 06:00
बंगाल की अपनी हार को भी भाजपा जीत बता सकती है, क्योंकि उसने अपना आंकड़ा 3 से बढ़ाकर 77 कर लिया। लेकिन उत्तर प्रदेश के पंचायती राज चुनावों में भाजपा अपनी हार का विश्लेषण किस प्रकार करेगी? वहां ग्राम पंचायतों के प्रधानों और ब्लॉक विकास समितियों के सदस्यों का चुनाव पार्टी सिंबॉल पर नहीं होते, लेकिन जिला विकास परिषद के सदस्यों के चुनाव पार्टी के सिंबॉल पर ही होते हैं और भारतीय जनता पार्टी समेत सभी राजनैतिक दल जिला पंचायतों के चुनाव पार्टी के स्तर पर ही लड़ रहे थे।