टीकाकरण अभियान को भी मोदी की नजर लग गई है। अपनी छवि चमकाने के चक्कर में उन्होंने अपने देश की जरूरतों का ख्याल किए बिना साढ़े 6 करोड़ वैक्सिन डोज विदेशों में निर्यात करवा दिए। करोड़ से ज्यादा डोज तो उन्होंने दान में ही दे दिया और व्यावसायिक निर्यात भी उन्होंने होने दिया और इसके कारण भारत में न केवल वैक्सिन की किल्लत हो गई है, बल्कि उन साढ़े 6 करोड़ वैक्सिन डोजों का उस समय महाराष्ट्र, केरल और पंजाब जैसे संक्रमित राज्यों में टीकाकरण के लिए इस्तेमाल होता, तो दूसरी लहर को इतना मारक होने से बचाया जा सकता था।
अब मोदी सरकार ने टीकाकरण के मामले में एक और नया घपला कर दिया है। वह कोविशील्ड के दो डोज के अंतराल से संबंधित है। कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अस्त्राजेनेका द्वारा विकसित किया गया वैक्सिन है। भारत का सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया, जो दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सिन निर्माता कंपनी है, ने इस वैक्सिन के भारत में उत्पादन का करार शुरू से ही कर रखा था। वैक्सिन बना भी और टीकाकरण के लिए भारत में सबसे ज्यादा उपलब्ध वैक्सिन यही है। भारत बॉयोटेक की कोवैक्सिन का उत्पादन सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड से बहुत कम है। जाहिर है, ज्यादा लोगों को कोविशील्ड का टीका ही दिया जा रहा है। यह दो डोज का वैक्सिन है और दोनों के बीच गैप 28 से 42 दिनों का रखा गया था। कुछ दिनों के बाद इस गैप को बढ़ाकर 42 से 56 दिन का कर दिया गया, हालांकि 28 दिनों के गैप पर भी लोगों को टीके लग रहे थे, क्योंकि कोविन एैप में जरूरी बदलाव नहीं किए गए थे। अब एकाएक केन्द्र सरकार ने फैसला किया कि 84 से 112 दिनों के बीच में दूसरा डोज दिया जाएगा। इंग्लैंड में शरू से ही 90 दिनों के अंतराल पर दूसरा डोज दिया जा रहा था, इसलिए यह समझ में आने की बात थी कि इसका अंतराल कुछ बढ़ाया जाएगा। उम्मीद की जा रही थी कि अंतराल बढ़ाकर 56 और 82 दिनों के बीच का होगा, लेकिन सरकार ने सीधे 28 दिन से 84 दिन न्यूनतम गैप बढ़ा दिया। इसके कारण जिन लोगों ने पहला डोज ले रखा था, उनकी बेचैनी बढ़ गई। दोनों डोज लेकर कुछ ज्यादा निश्चिंत होने वाले लोगों की चिंता और बढ़ गई। इधर कोरोना की तेज लहर उन्हें और परेशान कर रही थी।
सरकार ने तर्क दिया कि ज्यादा अंतराल रखने से वैक्सिन की प्रभावशीलता बढ़ जाती है। उसने इंग्लैंड के एक शोध का उदाहरण दिया, जो कोई नया शोध नहीं था, बल्कि तीन महीना पुराना शोध था। अब सवाल उठता है कि तीन महीने पुराने शोध को आधार बनाकर यदि सरकार को अंतराल बढ़ाना ही था, तो यह अंतराल 3 महीने पहले ही क्यों नहीं बढ़ाया गया? यह सवाल अपनी जगह महत्वपूर्ण है ही, इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि जिन लोगों ने 28 दिनों के बाद ही दूसरा डोज ले लिया था, वे भी आशंकित होने लगे कि उन्हें मिले दोनों डोज ज्यादा प्रभावी नहीं है। कहा जाने लगा कि 42 दिन के पहले जिन्होंने डोज लिया है, उनके डोज की प्रभावशीलता मात्र 55 फीसदी है और 84 दिनों के बाद जो दूसरा डोज लेंगे, उनके वैक्सिन की प्रभावशीलता 82 फीसदी होगी। किसी किसी के लिए तो यह प्रभावशीलता 90 फीसदी तक हो जाएगी। यह सोच सोच कर वे लोग अपने को ठगा महसूस करने लगे, जिन्होंने 42 दिनों के पहले ही दूसरा डोज भी ले लिया था।
लेकिन इस बीच एक और घटना घट गई, जिससे भारत के वैज्ञानिकों पर अंगुलियां उठने लगीं कि वे वैज्ञानिक शोध के आधार पर निर्णय नहीं देते, बल्कि सरकारी आदेश पर अपने मत देते हैं। जिस इंग्लैंड के लंबे अंतराल का हवाला देकर भारत ने यहां अंतराल बढ़ाया था, उस इंग्लैंड ने अगले ही दिन भारत के नये स्ट्रेन का हवाला देकर अंतराल 82 दिन से 56 दिन कर दिया। इसके बाद तो वे लोग खुश हो गए, जिन्होंने कम अंतराल में ही दोनों डोज ले लिए थे, लेकिन जिन्होंने दूसरा डोज नहीं लिया है, वे तनाव में आ गए हैं। अब उन्हें लग रहा है कि सरकार उसके साथ छल कर रही है। सरकार के पास वैक्सिन नहीं है, क्योंकि उसने पर्याप्त वैक्सिन उत्पादन के लिए अपनी तरफ से कोई कोशिश ही नहीं की थी और अब वह अपनी गलती का दंड लोगों को दे रही है।
गौरतलब हो कि इंग्लैंड ने जब दो वैक्सिन के बीच 90 दिन का फासला रखने का फैसला किया था, तो उसने स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम एक वैक्सिन डोज दे देने का है। अंतराल उसने न केवल अस्त्राजेनेका वैक्सिन, जिसे भारत में कोविशील्ड कहा जाता है, बल्कि फाइजर वैक्सिन में भी 90 दिनों का दिया था और इसका फायदा वहां दिखाई देने लगा था। प्रभावशीलता के आंकड़े तो वहां भी बाद में आए थे, जिसकी सत्यता अब संदिग्ध हो गई है, क्योंकि खुद इंग्लैंड ने अंतराल घटाकर 82 से 56 दिनों का कर दिया है। इसलिए भारत सरकार के लिए नैतिकता का तकाजा यही है कि वह यह स्वीकार कर ले कि वैक्सिन की कमी के कारण उसने यह अंतराल बढ़ाए हैं। लेकिन क्या इतना दम सरकार में है? (संवाद)
कोविशील्ड पर असमंजस में लोग
सरकार की सफाई ने भ्रम और भी बढ़ाया है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-05-18 09:57
मोदी सरकार कोरोना संकट शुरू होने के साथ ही बहुत ही गैरजिम्मेदारान तरीके से इसे हैंडल कर रही है। शुरू में ही लॉकडाउन का जिम्मा उसे राज्य सरकारों को देना चाहिए था और जहां जरूरत थी, वहीं लॉकडाउन लगाना चाहिए था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने एक साथ ही पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया और उसके साथ जो समस्याएं आने वाली थी, उसके बारे में कुछ भी सोचना जरूरी नहीं समझा। केन्द्र सरकार ने गड़बड़ियों का एक लंबा सिलसिला शुरू किया, जो अभी भी जारी है। पांच राज्यों में चुनाव को लंबा खींचवाना और कुम्भ की इजाजत देना केन्द्र सरकार के ऐसे दो कदम हैं, जिनके कारण देश में कोरोना की दूसरी बहुत ही भयानक लहर उठी और उसमें करोड़ों परिवार तबाह हो गए। इसके लिए दुनिया भर में नरेन्द्र मोदी निंदा हो रही है। लापरवाही और गैरजिम्मेदारी यही तक सीमित नहीं है।