फिलहाल प्रतिदिन कोरोना संक्रमितों की संख्या घटने से अब नये संक्रमित उस तरह की समस्या का सामना नहीं कर रहे हैं, लेकिन संक्रमितों की मौत की संख्या नहीं घट रही है, इसलिए मरने वालों की दुर्दशा बरकरार होगी, इसका हम सहज अनुमान लगा सकते हैं। सरकार जो मृतकों की संख्या जारी कर रही है, उसपर कोई विश्वास नहीं करता। दूसरे सरकारी आंकड़े ही उसे गलत साबित कर रहे हैं। जाहिर है, मरने वालों की संख्या सरकार द्वारा बताई जा रही संख्या से कई गुना ज्यादा है। कोरोना संकट ने पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की ही ऐसी तैसी कर डाली है, जिसके कारण कोरोना के अलावा दूसरे बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी सही समय पर सही तरीके से इलाज नहीं मिल पाता। इसके कारण वे भी भारी संख्या में मौत को प्राप्त कर रहे हैं।

आज ऐसी विचित्र स्थिति पैदा हो गई है, जो आजादी के बाद कम से कम भारत में तो पैदा नहीं हुई थी। बांग्लादेश और पाकिस्तान भी अंग्रेजों की गुलामी से भारत के साथ ही मुक्त हुए थे, लेकिन उन दोनों देशों में भारत जैसा संकट पैदा नहीं हुआ। पाकिस्तान में तो स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर भारत से बहुत ज्यादा खराब है, परंतु वहां भी भारत जैसी स्वास्थ्य अराजकता पैदा नहीं हुई। बांग्लादेश भी कोरोना संकट काल में भारत जैसी दुर्गति को प्राप्त नहीं हुआ। भारत की तरह बांग्लादेश और पाकिस्तान ने कोई कोरोना वैक्सिन नहीं विकसित किया और न ही वहां कोरोना वैक्सिन का उत्पादन हो रहा है, फिर भी वहां स्थिति इतनी खराब नहीं। लेकिन भारत में स्थिति भयावह है और इसकी भयावहता को दूर करने का एक ही तरीका है और वह है देश की आबादी का टीकाकरण।

लेकिन टीकाकरण की बात जब हम करते हैं, तो यहां भी उसका संकट दिख रहा है। इसकी गति धीमी पड़ चुकी है। पिछले कुछ दिनों में औसतन 17 लाख प्रतिदिन टीकाकरण हो रहा है, जबकि एक समय 34 लाख प्रति दिन इसकी रफ्तार थी। मांग की जा रही थी कि प्रतिदिन एक करोड़ के हिसाब से टीकाकरण हो। सरकार को लग रहा था कि लोग टीका लगाने के प्रति बहुत उत्साहित नहीं, इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी उत्सवी शैली में टीका उत्सव की घोषणा कर डाली। लेकिन उस घोषणा के पहले उन्होंने इसका ख्याल ही नहीं रखा कि टीका उत्सव के लिए उनके पास पर्याप्त टीका है भी या नहीं। यह बिल्कुल नोटबंदी जैसी निर्णय था, जब मोदीजी ने बिना नये नोट छापे ही पुराने नोटों का प्रचलन बंद कर दिया। उन्होंने यह देखने की जहमत उठाई ही नहीं कि यदि पुरानी करंसी बंद करते है, तो उसकी जगह लेने के लिए नई करंसी है भी या नहीं।

बहरहाल, भारत में वैक्सिन संकट बरकरार है, जबकि भारत वैक्सिन उत्पादन के मामले में दुनिया का नंबर वन देश है। चूंकि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा वैक्सिन का उत्पादन करता है, इसलिए मोदीजी ने बिल्कुल सही अनुमान लगाया था कि दुनिया के आधी आबादी को भारत में बने वैक्सिन से टीका किया जाएगा। लेकिन मोदीजी भूल गए कि सभी वैक्सिन अलग अलग किस्म का है और कोरोना का वैक्सिन भारत में पहले से बने रहे वैक्सिन से अलग है। उसका उत्पादन करने के लिए अलग किस्म की टेक्नालॉजी की जरूरत पड़ती है और वैक्सिन उत्पादन करने वाले कारखानों को उस टेक्नालॉजी के माफिक अपने को बनाने में समय लगता है, उसी तरह जैसे नये नोट को छापने में समय लगता है।

भारत ने अपना कोवैक्सिन बहुत पहले विकसित कर लिया था। उसके बूते खुद मोदीजी पिछले साल 15 अगस्त को ही लाल किले की प्राचीर से वह वैक्सिन लांच करने वाले थे। भारत सरकार के नेशनल इंस्टिच्यूट ऑफ वाइरोलॉजी नाम का संस्थान हैदराबाद के भारत बायोटेक नाम की निजी कंपनी के साथ मिलकर उसे विकसित कर चुका था और लोगों पर ट्रायल हो रहे थे। यानी ट्रायल के पहले ही टेक्नालॉजी विकसित हो चुकी थी। उस पर भारत सरकार का ही पेटेंट राइट था, क्योंकि भारत सरकार के वैज्ञानिकों ने उसे विकसित किया था।

नरेन्द्र मोदी भारत से वैक्सिन के एक्सपोर्ट करने के सपने देखने लगे और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी घोषणा भी करने लगे, लेकिन वे भूल गए कि किसी चीज को एक्सपोर्ट करने के लिए उसका उत्पादन करना भी जरूरी होता है और उन्होंने कोवैक्सिन के उत्पादन बढ़ाने के बारे में कुछ सोचा ही नहीं। सरकार के पास वैक्सिन उत्पादन की कुछ कंपनियां हैं, उन्हें भी कोवैक्सिन के उत्पादन की टेक्नालॉजी समय रहते नहीं दी गई। निजी क्षेत्र के अन्य वैक्सिन उत्पादकों को भी वह टेक्नालॉजी भारत सरकार दे सकती थी और कोवैक्सिन का इतना उत्पादन किया जा सकता था, जिससे मोदीजी का दुनिया को कोरोना मुक्त करने का सपना पूरा हो सकता था। लेकिन अपने वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए कोवैक्सिन के उत्पादन का जिम्मा मात्र एक कंपनी पर छोड़ दिया गया और पर्याप्त मात्रा में देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी आज हमारे पास वैक्सिन नहीं हैं, एक्सपोर्ट करने की बात तो भूल ही जाएं। उल्टे भारत ने वैक्सिन को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय कमिटमेंट कर रखा है, उस कमिटमेंट की पूर्ति हम नहीं कर रहे हैं। जाहिर है, इस परिस्थिति की जिम्मेदारी से मोदी बच नहीं सकते, भले ही इसे वे नहीं स्वीकारें। (संवाद)