कहा गया कि बसपा ने केन्द्र सरकार को बचाने की कीमत भी वसूल की। बसपा नेता के खिलाफ आय के ज्ञात स्रोत से ज्यादा संपत्ति के मामले की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई मायावती के खिलाफ इस मसले पर मुकदमा चलाने का प्रयास भी कर रही है, लेकिन एकाएक सीबीआई ने मायावती के वकील की बात को तरजीह देनी शुरू कर दी। यानी मामले को रफा दफा करने का काम शुरू हो गया।
जाहिर है केन्द्र सरकार ने मायावती और उनकी पार्टी का समर्थन हासिल करने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया और मायावती ने समर्थन देने के बदले सीबीआई जांच की आंच से अपने को मुक्त रखने की सौदेबाजी की। लेकिन कांग्रेस और मायावती के बीच मामला इा लेन देन तक ही सीमित नहीं है। इसका असर कांग्रेस के उत्तर प्रदेश में फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने के प्रयासों पर भी पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को फिर से पुराना रुतबा दिलाने के लिए राहुल गांधी दिन रात एक किए हुए हैं। उनकी नजर दलितों पर है, जो कभी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आधार हुआ करते थे। अब दलित मरयावती की ओर चले गए हैं। उन्हें फिर से कांग्रेस के पाले में लाने के लिए राहुल गांधी उनके बीच अपनी रातें गुजारते हैं। उनके साथ खाना खाते हैं। इसका असर दलित मतदाताओं पर पड़ा है और पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को दलित मत मिले भी हैं।
लेकिन कांग्रेस और मायावती के बीच पक रही खिचड़ी का असर राहुल गांधी के अभियान पर भी पड़ रहा है। लगता है कि मायावती ने केन्द्र सरकार को बचाने के लिए न केवल सीबीआई की जांच से राहत पाने की सौदेबाजी की हैख् बल्कि उन्होंने कांग्रेस की उत्तर प्रदेश राजनीति को प्रभावित करने वाला कोई गुप्त समझौता भी कर रखा है। तभी तो राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश में अभियान भी कमजोर पड़ गया है।
राहुल के अभियान के कमजोर पड़ने से कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में राजनीति खराब हो रही है। दलितो के बीच में राहुल गांधी के अभियान का अच्छा असर पड़ रहा है। लंेकिन अभियान रुक जाने के बाद फिर कांग्रेस के दलितों को अपने साथ जोड़ना मुश्किल हो जाएगा। हो सकता है राहुल एक अंतराल के बाद अपना दलित अभियान फिर से शुरू करें, लेकिन तब उनके अभियान में वह धार नहीं रह पाएगी, जो दलितों के बीच उसे विश्वसनीयता प्रदान करती है।
कांग्रेस की समस्या यह नहीं है कि उसने मायावती के साथ सौदेबाजी की राजनीति अपना रही है, बल्कि वह समाजवादी पार्टी के साथ भी सौदेबाजी कर रही है। समाजवादी पार्टी ने कटौती प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहकर सरकार का काम आसान किया। दरअसल कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा के बीच संतुलन बनाकर चलने की राजनीति कर रही है। समाजवादी पार्टी से पहले भी उसका संबध रहा है और उसने मुलायम सरकार का समर्थन भी कभी कर रखा था, लेकिन उसके बावजूद मुलायम सिंह यादव की वामपंथी दलों के साथ दोस्ती बनी रही। अमेरिका के साथ परमाणु करार के मसले पर यूपीए सरकार को बचाने के बाद मुलायम की दोस्ती और पक्की हो गई थी और पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर साझा उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश भी की थी। लेकिन सीटों की संख्या को लेकर सहमति नहीं बनी। कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़कर काफी अच्छा प्रदर्शन किया और फिर उसने अपने आपको उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी राजनैतिक ताकत बनाने का प्रयास तेज कर दिया।
लेकिन अब केन्द्र सरकार को बचाने और चलाने के लिए वह उत्तर प्रदेश की अपनी दो प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के साथ सौदेबाजी करने पर उतर आई है। इसका असर उसकी प्रदेश की राजनीति पर पड़ बिना नहीं रह सकता। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति
राहुल गांधी के दलित अभियान को करारा झटका
अमूल्य गांगुली - 2010-05-13 08:16
केन्द्र की मनमोहन सिंह सरकार बचाने की कीमत कांग्रेस का उत्तर प्रदेश की अपनी राजनीति से चुकानी पड़ रही है। बजट सत्र के दौरान विपक्ष के कटौती प्रस्ताव को पराजित करने के लिए कांग्रेस को बसपा की सहायता लेनी पड़ी। बहुजन समाज पार्टी ने केन्द्र सरकार के पक्ष में मतदान भी किया और सरकार को गिरने से बचा भी लिया, लेकिन उसके साथ अफवाहों का दौर भी शुरू हो गया।