यानी 18 से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी। यह कानूनन जुर्म है, पर इस जुर्म की परवाह कितने लोग करते हैं, इसका पता हजारों की संख्या में हो रहे बाल विवाह से चल जाता है। अक्षय तृतीया के दिन हजारों की संख्या में सामूहिक विवाह का आयोजन भी किया जाता है। ऐसे आयोजनों में वरिष्ठ नेता एवं समाजसेवी भी शामिल होते हैं, और कई बार यह देखने में आया है कि उनकी उपस्थिति में भी बालक-बालिकाएं सात फेरे लेते हैं। प्रशासन सामान्य तौर सामूहिक विवाह समारोहों पर निगरानी रखने का प्रयास करता है, इसके बावजूद कई जगहों पर बाल विवाह हो ही जाते हैं, पर प्रभावी लोगों की संलिप्तता एवं समय पर सूचना नहीं मिल पाने और उपस्थित परिवार एवं समाज की मौन सहमति के कारण ऐसी शादियों को रोक पाना संभव नहीं होता।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार मध्यप्रदेश में बाल विवाह कानून के तहत 2005 में 18, 2006 में 4, 2007 में 5 और 2008 में दो केस दर्ज हुए। यह राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज केस 2005 में 122, 2006 में 99, 2007 में 96 एवं 2008 में 103 के मुकाबले काफी कम है, जबकि हम जानते हैं कि मध्यप्रदेश बाल विवाह के मामले में अग्रणी राज्यों में से एक है। 2005 की तुलना में बाद के वर्षों में केस कम दर्ज होने का मतलब ही यह है कि बाल विवाह के मामले को लेकर लोगों में चुप्पी है। मध्यप्रदेश में बाल विवाह की घटनाएं सिर्फ ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में ही नहीं होती है, बल्कि राजधानी भोपाल की झुग्गी बस्तियों में भी बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते रहते हैं। शहरी क्षेत्र होने के कारण प्रशासन यहां ज्यादा सचेत नहीं रहता, जिसकी वजह से बाल विवाह की घटनाएं यहां अक्सर होती रहती है। भोपाल की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली निशा (परिवर्तित नाम) का कहना है, ’’पिछले साल ही मेरी चचेरी बहन की शादी कर दी गई, जबकि वह मुझसे भी छोटी है। चाचा अब उससे छोटी वाली लड़की की शादी की तैयारी में लगे हैं।‘‘ निशा ने इस साल 10 वीं की परीक्षा दी है और उसकी उम्र 16 साल है। यानी उसके चाचा ने अपनी बेटी की शादी 14 साल में कर दी और दूसरी लड़की शादी भी कमोबेश इसी उम्र में करने के लिए तैयार हैं। निशा ने यह भी बताया कि उसकी शादी के लिए रिश्तेदारों का दबाव उसके मां-बाप पर रहता है। निशा का कहना है, ’’मैंने घर में साफ-साफ कह दिया है कि मैं जबतक पढ़ाई करूंगी, तबतक मेरी शादी की बात नहीं होगी। इस पर मेरे पिता का कहना है कि जबतक फेल नहीं होगी, तबतक तेरी पढ़ाई जारी रहेगी और शादी भी नहीं करेंगे। मेरे लिए पढ़ाई में पास होना ही विवाह से बचने का जरिया है।‘‘
मध्यप्रदेश में औसतन 16 से 17 की उम्र में बालिकाओं की शादी बड़ी संख्या में होती है। यहीं वजह है कि जिला स्तरीय परिवार सर्वेक्षण हो या फिर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण या फिर कोई अन्य सर्वेक्षण, सभी में कम उम्र में शादी का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा है। यही वजह है कि प्रदेश में मातृ मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है। महिलाओं में खून की कमी सामान्य बीमारी के रूप में देखा जाता है। यूनिसेफ के अनुसार, ’’शिक्षित लड़कियों की शादी में जाहिर तौर पर देरी होगी, पर इस तरह कम उम्र में मां बनने की संभावना भी कम होती है, इससे बच्चे को जन्म देते वक्त उसकी मौत की संभावना भी कम हो जाती है। और जब लड़की पढ़ी-लिखी होती है, तो उसकी आय अर्जित करने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे वे उस गरीबी से उबर जाती है, जो उनका पीछा पीढ़ी दर पीढ़ी करती आई है।‘‘ निश्चय ही यह इस बात को दर्शाता है कि विवाह में देरी कई समस्याओं का समाधान करता है, तो दूसरी ओर बाल विवाह कई समस्याओं को जन्म देता है। यूनिसेफ के अनुसार, ’’कम उम्र में शादी गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के समय अतिरिक्त खतरे के अलावा कम उम्र की पत्नियों पर हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण के खतरे को बढ़ा देता है।‘‘
बाल विवाह रोकने के लिए नीचले स्तर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा, ए.एन.एम. एवं स्कूल के शिक्षक उपयोगी माध्यम हो सकते हैं। इसके लिए उन्हें बस्ती के लोगों को अपने साथ जोड़ने, इसकी सूचना देने वालों को सुरक्षा देने एवं पुरस्कृत करने और दोषियों को सजा देने के तत्वरित उपाय करने होंगे। एक सबसे महत्वपूर्ण काम यह किया जा सकता है कि इस मुहिम में उन लड़कियों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जिन्होंने बाल विवाह का विरोध किया है, या फिर अपने घर में बाल विवाह को रोकने के लिए आवाज उठाई हो। (संवाद)
कब होगा अंत बाल विवाह का?
अक्षय तृतीया के दिन फिर बाल विवाहों की बहार
राजु कुमार - 2010-05-14 09:17
हर साल की तरह इस बार फिर अक्षय तृतीया यानी आखा तीज 16 मई को मनाया जा रहा है। यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसके साथ अनचाहे रूप से एक गंभीर बुराई का चस्पा लगा हुआ है। अक्षय तृतीया को विवाह के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विवाह होने से दुल्हा-दुल्हन की जोड़ी सात जन्मों तक बनी रहेगी। इस मान्यता के कारण इस दिन विवाह की होड़ लगी होती है। और इस होड़ में वैसे हजारों बालक-बालिकाएं एवं किशोर-किशोरियों की शादी कर दी जाती है, जो विवाह के योग्य नहीं होते।