अब दोनों ही एजेंसियां सरकार के हाथ में हैं। यह कदम इन एजेंसियों की निरपेक्षता और जांच की आजादी को प्रभावित करता है। निर्णय की जल्दी इसलिए भी थी कि ई.डी. के डायरेक्टर एस.के. मिश्रा की कार्य अवधि सत्रह नवंबर तक खत्म हो जानी थी।
यह कदम इन एजेंसियों की जांच करने की आजादी को नष्ट करता है, किसी पक्ष के हितों का इसे ध्यान रखते हुए ही जांच करने को मजबूर होना पड़ता है। सरकार ने इन एजेंसियों को अपनी मुट्ठी में कर लिया है क्यांकि निर्देशकों की कार्यावधि पर उसका ही अधिकार है। पहले के नियमानुसार सरकार मात्र तीन सालों तक, लेकिन हर बार मात्र सालभर के लिए ही, निर्देशक का कार्यकाल बढ़ा सकती थी।अब सरकार ने पूरी तरह इसपर अपना नियंत्रण कर लिया है। इन ऑर्डिनेन्सेज के अनुसार सरकार ने दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टाबल्शिमेंट एक्ट में भी परिवर्तन का अधिकार अपने हाथ में ले लिया है। दोनों जांच एजेंसियां इसी एक्ट के अधीन हैं। यह सी.बी.आई. और सेन्ट्रल विजिलेन्स एक्ट का भी जन्मदाता है, और ई.डी. के डायरेक्टर की नियुक्ति का अधिकार रखता है। ऑर्डिनेन्स को वैधता देते हुए इसमें कहा गया है, ‘‘जब संसद का सत्र नहीं चल रहा है, और राष्ट्रपति सारी परिस्थितियों को देखते हुए, जो इस ऑर्डिनेन्स को स्वीकृति देने के लिए उन्हें अधिकार देती है और तत्काल कदम उठाने के लिए उन्हें मजबूर करती है’’, उसे पारित करना चाहिए।
एस.के. मिश्रा का कार्यकाल 2020 में ही समाप्त हो रहा था, लेकिन उसे साल भर के लिए बढ़ा दिया गया। इस कदम को ‘‘असाधारण’’ और इतिहास में ‘‘पहली बार’’ की संज्ञा दी गई है इस ऑर्डिनेन्स के द्वारा। जब कार्य की अवधि बढ़ाई जा रही थी, सरकार ने अपने इस कदम की वैधता को साबित करने के लिए ऑर्डिनेन्स में ही कहा, ‘‘पूर्व के लिए गये निर्णय जो 14 नवंबर 2018 को लिए गये थे, संजय कुमार मिश्रा को एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ई.डी.) के निर्देशक पद पर नियुक्ति दी जाती है।’
1984 बैच के इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज के अफसर और इनकम टैक्स कैडर, संजय मिश्रा की कार्य अवधि को बढ़ाना एक असाधारण और असामान्य कदम है। न्यायपालिका इस कदम पर चुप नहीं बैठने वाली है। संसद में इन ऑर्डिनेन्सेज का विरोध होगा और मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी जाएगा। ऑर्डिनेन्स या कानूनों में कोई सुधार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को प्रभावित नहीं कर सकता। धारा 141 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में लिये गये निर्णय को कानून का ही दर्जा है।
कानून और न्याय मंत्रालय ने घोषणा की है कि दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंटद् ऑर्डिनेन्स, 2021, और सेन्ट्रल विजिलेन्स कमिशन संशोधनद्ध विधेयक, 2021, दोनों ही तत्काल ही सक्रिय हो जायेंगे। दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंट ऑर्डिनेन्स में भी एक संशोधन है, यह दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंट कानून, 1946 में किया गया है। इसमें डाले गए एक नुक्ते के अनुसार ‘‘जिसअवधि के लिये डायरेक्टर की अवधि को मूल नियुक्ति पत्र में चिन्हित किया गया है, उसे आवश्यकता पड़नेपर, जन कल्याण को नजर में रखते हुए सेक्शन 4ए के सेक्शन 1 के तहत कमिटी द्वारा किए गये सुधारों के सुझावों, जिनके कारण लिखित रूप से दिये गए हों, के अनुसार एक साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसमें कार्यकाल की समयावधि नियुक्ति पत्र में लिखित अवधि के साथ इस एक को जोड़ते हुए पूरी अवधि पांच साल से अधिक की नहीं होनी चाहिये।
इसी संदर्भ में एक और कदम सुझाव देता है कि सेन्ट्रल विजिलेन्स कमीशन संशोधन ऑर्डिनेन्स, 2021, सेन्ट्रल विजिलेन्स कमीशन कानून, 2003 में एक नयी धारा जोड़ती है, ‘‘यह तभी हो सकता है जब डॉयरेक्टर एनफोर्समेन्ट अपने पद पर मूल नियुक्ति पत्र में दिये काल के अनुसार कार्यरत तो रहता है, पर जनकल्याण को नजर में रखते हुए, कमिटी की धारा 9 और उन सब लिखित कारणों के आधार पर एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, जो एक बार में किया जायगा। मूल नियुक्ति पत्र में दिये गये कार्यकाल में इस एक साल को भी जोड़कर यह पांच वर्षों से अधिक नहीं होना चाहिए। ऑर्डिनेन्सेज आज आम हो चुके हैं। केंद्र ऐसे कदम पहले भी उठा चुका है। सी.बी.आई डायरेक्टर की नियुक्ति के विपरीत ईडी के डायरेक्टर प्रधानमंत्री की कमिटी द्वारा नहीं नियुक्त होते।
इस कमिटी में विरोधी पक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी नहीं होते। ई.डी. डायरेक्टर की कार्यअवधि को बढ़ाने का सुझाव जो कमिटी दे सकती है, उसके सदस्यों में प्रमुख विजिलेन्स कमिश्नर, विजिलेन्स कमिश्नर, गृह सचिव और साथ ही पर्सोनेल ट्रेनिंग और रेवेन्यू विभाग के सचिव गण होते हैं। केंद्र ने ई.डी. डायरेक्टर की कार्यअवधि को बढ़ाने से सब अर्डिनेन्स को पारित करने के क्रम में इस कमिटी को भी विश्वास में नहीं लिया है। (संवाद)
सीबीआई और ईडी के कार्यकाल को बढ़ानेवाला अध्यादेश
हो सकता है यह सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिके
कृष्णा झा - 2021-11-20 09:51
साल पूरा होने को है। गणतंत्र दिवस एक बार फिर जनवाद का उत्सव हमारे चौखट पर लाएगा। हम 26 जनवरी को अपने वचन को दुहराएंगे। यह वचन हमें प्रतिबद्ध करता है अपने संविधान के प्रति, उसकी सुरक्षा और विकासगामी कदमों के प्रति। लेकिन देश की सरकार तो ऐसे निर्णय और ऑर्डिनेन्स पारित करने में लगी है जो जनवाद की नींव पर ही आघात है। देश की सबसे प्रमुख दो खोज एजेंसियों के डायरेक्टर की कार्य अवधि बढ़ाने में लगी है। दो वर्ष की नियत अवधि से इसे पांच वर्ष कर दिया गया है ताकि सरकार अपनी इच्छानुसार निर्णयों को देश पर लागू कर सके। राष्ट्रपति की स्वीकृति की मुहर भी इसपर लग चुकी है। मात्र कुछ दिन बचे हैं संसद के शुरू होने में, और जल्दी ही इसी की है कि विरोधी पक्ष का सामना न करना पड़े।