लेकिन वह कथित कालीभक्त गांघी पर हमला करने वाला अकेला व्यक्ति नहीं है। अनेक सिरफिरे हैं, जो गांधी को तो जानते ही नहीं, लेकिन गांधी का विरोध करते हैं और उनके लिए न केवल आपत्तिजनक बातें करते हैं, बल्कि झूठी कहानियां भी गढ़ देते हैं। ऐसे लोगों को न तो इतिहास का ज्ञान होता है और न ही समाज की समझ, लेकिन वे गांधी विशेषज्ञ बनने लगते है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में इस तरह के झूठ फैलाने के खिलाफ कोई कानून नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सबकुछ माफ है। लेकिन 2015 में दिए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जैसे ही आप झूठ और भ्रामक बातों का प्रचार करते हैं, आपकी अभिव्यक्ति की आजादी उसी समय समाप्त हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला गांधी की निंदा के मामले में ही आया था।

सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद सरकार को कानून बनाना चाहिए था कि देश के महापुरुषों के खिलाफ झूठी आपत्तिजनक बातें करना अपराध है और उसके लिए सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। लेकिन अभी तो सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थक ही देश के महापुरुषों के खिलाफ झूठ फैलाने में लगे हुए हैं, तो फिर सत्तारूढ़ दल इस तरह का कानून बनाने में क्यों दिलचस्पी लेगा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए उस सरकार ने उसके खिलाफ कार्रवाई की है और वह अभी जेल में है। अगर किसी भाजपा शासित प्रदेश में उसने वैसा काम किया होता, तो पता नहीं उसके खिलाफ कोई कार्रवाई हो भी पाती या नहीं।

गौरतलब हो कि अमेरिका में वाशिंगटन को वही स्थान मिला हुआ है, जो भारत में महात्मा गांधी का। अमेरिका में वाशिंगटन के खिलाफ कोई टिप्पणी करना कानूनी अपराध है और वैसा करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। सवाल उठता है कि जब वहां ऐसा किया गया है, तो भारत में भी उस तरह का कानून क्यों नहीं बनाया जा सकता? कानून बनाने की बात तो अपनी जगह है, गांधी के बारे में लोगों को सही तरह से शिक्षित करने की कोशिश भी यहां नहीं होती, हालांकि गांधीजी के बारे में बहुत कुछ पढ़ाया जाता है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि लोग गांधी पर हमला क्यों करते हैं। इसका एक कारण तो यह है कि हमला करने वाले अधिकांश लोग गांधी के बारे में सही सही जानते ही नहीं। उन्हें गुमराह किया जाता है और वे गुमराह हो जाते हैं। जिस कथित महाराज को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया है, वे महाराज भी गांधीजी के बारे में सही सही जानता भी होगा या नहीं, हम दावे से कुछ नहीं कह सकते। गांधी पर हमला करने वाले दूसरे किस्म के लोग वे हैं, जो भारत की अवधारणा को ही नहीं स्वीकार कर पाए हैं। उन्हें भारतीयता से ही चिढ़ है। और चूंकि उन्हें भारतीयता से चिढ़ है, इसलिए उन्हें गांधी से भी चिढ़ है। वे भारतीयता को मिटाना चाहते हैं और इसके लिए गांधी को मिटाना आवश्यक समझते हैं, क्योंकि भारतीयता को मिटाने के लिए गांधी को मिटाना जरूरी है।

वे सुभाषचन्द्र बोस और गांधी के परस्पर विरोध की चर्चा करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया जाता कि जब देश आजाद भी नहीं हुआ था, तो सुभाषचन्द्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहा था। जब वे आजाद हिन्द फौज के विजयी अभियान पर भारत की ओर बढ़ रहे थे, तो एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि भारत को अंग्रेजों से जीतकर आप भारत का क्या करेंगे, तो उनका जवाब था कि मैं इसे राष्ट्रपिता गांधी की गोद में डाल दूंगा। इस तरह गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले पहले व्यक्ति सुभाषचन्द्र बोस ही थे। आजाद हिन्द फौज की स्थापना भी उन्होंने महात्मा गांधी जिन्दाबाद के नारे से की थी और आजाद हिन्द फौज के एक ब्रिगेड का नाम उन्होंने गांधी ब्रिगेड भी रखा था। वे जवाहरलाल नेहरू के भी कायल थे और एक ब्रिगेड का नाम नेहरू ब्रिगेड भी रखा था, लेकिन इस तरह की जानकारी लोगों को नहीं दी जाती और जो भारतीयता के खिलाफ हैं, वे सुभाषचन्द्र बोस के नाम का इस्तेमाल भी गांधी के खिलाफ करते हैं।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत के एक राष्ट्र के रूप में उदय के पीछे गांधीजी का बड़ा योगदान था। आजादी की लड़ाई का आंदोलन जन आंदोलन का रूप गांधी के कारण ही ले सका। उसके पहले भारत के कुछ पढ़े लिखे तबकों में ही यह आंदोलन धीमी गति से चल रहा था। हमारे सांवैधानिक मूल्य आमतौर पर गांधीवादी मूल्यों से ओतप्रोत हैं, हालांकि गांधीजी खुद संविधान निर्माण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं थे, लेकिन संविधान के निर्माण में सबसे ज्यादा भूमिका निभाने वाले जवाहरलाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद ने गांधीवादी मूल्यों का ख्याल रखा। उन्हीं मूल्यों से भारतीयता बनी है। जो उन मूल्यों के खिलाफ हैं, वे गांधी के भी खिलाफ हैं। (संवाद)