धर्म संसद की वीडियोज आज सार्वजनिक रूप से हर जगह प्राप्य हैं जिसमें वक्ताओं ने भारत के बीस करोड़ मुसलमानों को खत्म करने के लिये आवाज दी है। पूरी सभा, जो मुसलमानों के ही खिलाफ थी, और भारत की जनता के इस हिस्से को खून की नदी में डुबोने की गुहार लगा रही थी, पूरी तरह हमारे संविधान के विरूद्ध थी। यह तथ्य कि ऐसी सभा को खुली अनुमति मिली, उत्तर प्रदेश की कानून और व्यवस्था की विफलता का एक ज्वलंत उदाहरण है।

हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा आयोजित इस सभा में राजनैतिक प्रभाव भी साफ-साफ दिखाई दे रहा था, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इसमें सक्रिय सहयोग था। यह संगठन हिटलर के नाजीवाद को ही हिन्दुत्व के कलेवर में प्रस्तुत करता है। यह पूरी तरह राजसत्ता पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखता है। यह हमारे देश को पूरी तरह अपने सिद्धांतों के आधार पर निर्मित करना चाहता है, जिसमें हमारा इतिहास, हमारी विचारधारा और राजनीति भी शामिल है। धर्म संसद उसी का एक उदाहरण है। यह हमारी बहुआयामी संस्कृति का निषेध करता है और अंधराष्ट्रवाद का प्रचार करता है। यह हिन्दुत्ववाद की एकलता में विश्वास रखता है और इसमें अल्पसंख्यकों का मात्र आत्म-समर्पण ही नहीं, बल्कि देश की संपूर्ण जनता की चेतना पर काबू पाना चाहता है।

इसके स्वयंसेवकों को सांप्रदायिकता के जहर से ही प्रशिक्षित किया जाता है। आर.एस.एस. के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के दीर्घकालीन संपादक के.आर. मलकानी के अनुसार,‘‘वस्तुतः संघ (आर.एस.एस.) राजनैतिक संस्था के रूप में अपने को कभी नहीं देखता। इसकी दिलचस्पी मूलतः उन तथ्यों और शक्तियों में होती है जो देश की राजनीति का निर्माण करते हैं।’’

उन्होंने इसे स्पष्ट रूप से राजनैतिक नहीं बताने की कोशिश की, पर यह एक बचने की राह ही थी, क्योंकि इससे किसी भी दायित्व से मुक्ति मिल जाती है। इसलिये उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र सरकार की इस पूरी घटना पर चुप्पी रखना दायित्वहीनता को स्पष्ट करती है, जबकि इस सभा में खुले तौर पर नस्लवाद और अल्पसंख्यकों की हत्या की मांग की गई थी। हरिद्वार संसद ने देश में एक युग की शुरूआत का संकेत दिया है जिसमें धर्म और राजसत्ता एकसाथ मिलकर देश में शासन चला रहे हैं। यह जनता के समक्ष फासीवाद, जनवाद, आजादी और अंत में जीने के अधिकार को भी छीने जाने की अपनी नीयत को उचित ठहराने की कोशिश कर रही थी। लेकिन इन सबके बावजूद उम्मीद आज भी बाकी है। आज भी वे सारी ताकतें जिन्दा हैं जो जनता की आवाज को निडर होकर रखते हैं। इसका एक अहम उदाहरण है तेरह महीनों तक चलनेवाला किसानों का दिल्ली की सीमाओं पर धरना, जो बारिश और ठंड, तपती गर्मी और सरकारी दमन के बावजूद बेखौफ अपने इरादों पर कायम रही। जब धरना खत्म हुआ तो सफलता उनके सामने थी।

ये सभी जनता के जमीन से जुड़े नेता थे, किसी भी तरह के समझौते से इंकार करने वाले और फासीवाद के सामने मजबूत चुनौती रखने वाले। इन्हें इटली के जनप्रिय नेता ग्राम्शी ने ‘‘ऑर्गनिक’’ की संज्ञा दी थी। ग्राम्शी को इटली की फासीवादी सरकार ने जनता से दूर रखने के लिये आठ वर्षों तक जेल में रखा, लेकिन उस दौरान भी वे जनता के लिये लिखते रहे। इस दौरान हमारे देश में वी.डी. सावरकर ने अपना हिन्दुत्व का स्क्रिप्ट तैयार कर लिया था। उन्होंने इसके लिये उन्हीं दक्षिणपंथी ताकतों से सहायता मांगी जिनकी यहूदी विरोधी नीतियों की उन्होंने प्रशंसा की थी। उस पूरी नस्ल को बर्बरता से कुचलने की उनकी राजनीति की उन्होंने हिमायत की थी। इसे उन्होंने ‘‘होलोकास्ट’’, या भयानक घटना की संज्ञा दी। जो दो विषय सावरकर के लिये प्रमुखता रखते थे, वे थे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति और हिन्दू-मुस्लिम संबंध। पूना में एक बार भाषण देते समय उन्होंने कहा था कि देश की राजनैतिक व्यवस्था वहां की जनता की इच्छा और समर्थन का द्योतक है। जर्मनी का नाजीवाद और इटली का फासीवाद जनसमर्थन से ही सत्ता में आया था। वस्तुतः सावरकर वित्त पूंजी के ही पृष्ठपोषक थे और उसी के समर्थन में अपनी सारी गतिविधियां तय करने की कोशिश करते थे। उन्होंने इसी सिलसिले में चेकोस्लोवाकिया के अल्पसंख्यकों की भी चर्चा की। उनके भाषण दक्षिणपंथियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे। यहां तक कि जर्मनी के दक्षिणपंथी अखबारों में भी उनके लेख प्रकाशित होते थे। संघ के प्रिय नेता एम.एस. गोलवलकर ने भी जर्मनी के यहूदियों की पूरी नस्ल को खत्म कर देने की साजिश की बहुत तारीफ की थी और मुसलमानों के लिए कहा था कि भारत में अगर उन्हें रहना है तो पूरी तरह हिन्दू राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा। उन्हें कोई भी सुविधा मांगने का, यहां तक कि नागरिक अधिकार मांगने की भी इजाजत नहीं होगी। नफरत की यही धारा आजादी के बाद भी जिन्दा रही और आज वह सामने है और उसकी प्रतिध्वनि धर्म संसद में दिए गए भाषणों में मिलती है जिसमें भारत के 20 करोड़ मुस्लिम नागरिकों की हत्या के लिए आवाज उठाई थी।

सेवा-निवृत्त अफसरों ने भा.ज.पा. सरकार से मांग की है कि हमारे देश की धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाने वाले इन असंवैधानिक गतिविधियों पर तत्काल रोक लगाई जाय क्यांकि इस तथ्य से ही कि इस सम्मेलन की इजाजत दी, राज्य की कानून व्यवस्था का पता चलता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरजोर विरोध के बावजूद सिर्फ तीन व्यक्तियों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज किया गया है। (संवाद)