न्यूयॉंर्क टाईम्स के लेख में आगे स्पष्ट किया गया कि एनएसओ पर अमेरिका के साथ इजरायल की इस नजदीकी से यह भी उजागर होता है कि जासूसी के इन तकनीकों को दुनिया के शक्तिशाली देश उसी नजर से देखते हैं जिससे वे कभी सैन्य अस्त्र-शस्त्रों को देखते थे। यह तकनीक सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ही नहीं बल्कि एक ऐसी मुद्रा की भूमिका भी अदा करता था जिससे दुनिया में प्रभाव की खरीदारी की जा सकती थी। यह आई.टी. के उन नियमों से भी साफ होता है जिनमें जासूसी की तो अनुमति है पर तोड़फोड़ की नहीं। इस नियम का कोई भी अपवाद नहीं हो सकता। एक दिलचस्प तथ्य यह भी इस लेख में सामने आता है जिसके अनुसार अमेरिका ने पेगासस के ऊपर काफी लेखा-जोखा किया है और गुप्त रूप से इस तकनीक का उपयोग भी विभिन्न रूप से करता रहा, लेकिन सार्वजनिक रूप से इस तकनीक की आलोचना भी करता रहा है और इस तक पहुंचने से रोक भी रहा है, अपने ही सुरक्षा सौदे के व्यापारियों को।
वस्तुतः यह तकनीक एक ऐसी समस्या का निदान देता है जिससे इक्कीसवीं सदी में विभिन्न देशों की कानून व्यवस्था को एक नया मोड़ मिलता है। अब तक अपराध की दुनिया से आनेवाले संकेतों की गुत्थी खोलना प्रायः असंभव ही होता था, जबकि व्यवस्था द्वारा भेजा गया हर संकेत अपराधियों के लिये खोलना आसान था। अब अपराध की दुनिया विश्व स्तर पर फैलती तो जा रही है लेकिन वह काफी हद तक कमजोर भी पड़ रहा है। जब तक एन.एस.ओ. के इंजीनियर अमेरिका के न्यूजर्सी में 2019 में प्रविष्ट हुए, पेगासस का दुरुपयोग विशाल पैमाने पर शुरू हो चुका था। मैक्सिको में अपराधियों के खिलाफ तो इसका उपयोग हुआ, पर पत्रकारों और राजनैतिक विरोधियों पर भी हुआ। युनाइटेड अरब अमीरात ने मानव अधिकारों के यो(ा का फोन तो टेपरिकॉर्ड कर लिया, उन्हें जेल में भी डाल दिया। एक दीर्घकालीन व्यवस्था भी अमेरिका के दूतावासों में चलती रही है कि इनके अधिकारी अपने कार्यस्थल के देशों में अमेरिकी अस्त्रशस्त्रों का भी सौदा करते रहे हैं। यह विकीलीक्स के हजारों पृष्ठों के शोध में स्पष्ट हो चुका है।
जब भी अमेरिका के सुरक्षा अधिकारी किसी देश में अन्य अधिकारियों से मिलते हैं, हथियारों के सौदे का ही ऐलान होता है, वह चाहे लॉकहीड का हो, या रेथियान का। एटम बम से भी अधिक प्रभावशाली रहा है साइबर हथियार, विशेषकर अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के सिलसिले में। यह तुलना में सस्ता होता है, उपयोग में आसान होता है, और वार करने वालों पर किसी प्रकार का खतरा नहीं होता है। इन हथियारों की घुसपैठ से देशों के संबंधों में भी बदलाव आता रहा है और इजरायल को इसका आभास है।
जासूसी एक ऐसा दीमक है जो विश्वभर में जनवाद की बुनियाद को खोखला करता जा रहा है। इसके आक्रामक उपयोग को आज भी खुली स्वीकृति मिली नहीं है, लेकिन देशों के विकास और जनवादी व्यवस्था के लिये बाधाएं लाने में यह सफल जरूर रहा है। इसलिये अमेरिका ने अपने देश के आंतरिक मामलों में इसे काली सूची में ही रखा है। अमेरिकी तकनीकी व्यवस्था में डेल के कम्प्यूटर का विशेष स्थान है, उसमें इसे जाने की इजाजत नहीं है। आमेजन के भंडारण में भी इसे अनुमति नहीं है। अमेरिका ने सफाई में कहा है कि इन कदमों का इजरायल से उसके संबंधों का कोई लेना-देना नहीं है, वह तो एक खतरनाक कंपनी को काबू में रखने के लिये इन निषेधों को लागू करता है। पेगासस अमेरिका में एक परिचित नाम है। अमेरिकी संघीय ब्यूरो ने अपनी जांच पड़ताल में दो साल लगाए और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसका देश में प्रवेश रोक दिया जाय। न्यूयॉंर्क टाईम्स ने स्पष्ट शब्दों में उन ऐतिहासिक परिवर्तनों का भी उल्लेख किया जो इजरायल और अमेरिकी शासनतंत्र में सरकारों के बदलने से आए।
इन पत्रकारों ने भारत की सरकार और उसके मंत्रियों के व्यवहार और बयानों का जिक्र भी किया। उनके अनुसार, इन बयानों में अब सफेद झूठ के रूप में पेगासस के उपयोग से स्पष्ट इंकार की जगह आधे सच को रखने लगे हैं। नवंबर, 2019 में सूचना और तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने घोषणा की थी कि कोई भी अनधिकृत घुसपैठ नहीं की गई थी। अब जुलाई, 2021 में, अश्विनी वैष्णव ने बयान दिया कि ‘‘हमारी मजबूत नियंत्रण व्यवस्था में किसी भी गैरकानूनी घुसपैठ की कोई संभावना नहीं हो सकती।’’ यह बयान इतना स्पष्ट था कि इसमें कोई भी अस्पष्टता निकालना असंभव था। स्पष्ट तो यह था कि वैष्णव यह कहना चाहते थे कि यह साइबर हथियार किसी अलग सरकारी संस्था से खरीदा गया था। जब कई पी.आई.एल सुप्रीम कोर्ट मे दाखिल हुए तो अगस्त 16, 2021 में इस पर सुनवाई में पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने पेगासस पर लगे इस आरोप पर, कि वह अब ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बन चुका है’’, सफाई देते हुए कहा इस सॉंफ्टवेयर का उपयोग देश में आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिये होता है, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इसलिये उसकी खरीद के कारणों को भी सामने नहीं लाया जा सकता। सितंबर 13, 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट में पेगासस के उपयोग के मामले में कोई स्पष्ट अस्वीकृति नहीं आई। इस सबमें एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि सॉलिसीटर जेनरल ने जासूसी की वैधता के नियमों का तो उल्लेख किया, लेकिन आई.टी. के नियमों में जहां जासूसी की अनुमति तो है, पर तोड़-फोड़ की नहीं, इसके ऊपर उन्होंने मौन ही रहना ठीक समझा।
वास्तव में वैधता को लागू करने की भी एक सीमा है, वह असीमित तो हर्गिज नहीं है। (संवाद)
मोदी सरकार और पेगासस का भूत
न्यूयॉर्क टाइम्स का नया खुलासा
कृष्णा झा - 2022-02-05 11:16
‘‘.....इजरायल की सरकार की समझदारी थी कि इस सशक्त गुप्तशस्त्र को दमन में नहीं उपयोग किया जाय पर पेगासस को पोलैंड, हंगरी और भारत जैसे देशों को ही बेचा गया जिन्हें मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के लिये जाना जाता था.....’’ न्यूयार्क टाइम्स के दो पत्रकार, रोनेन बर्गमैन और मार्क मैजेट्टी अपने अखबार में इसी तथ्य को उजागर करते हैं। वे भारत सरकार के पेगासस, जो जासूसी का एक अन्यतम साधन है, को इजरायल की सरकार से 2017 में खरीदने के सौदे को प्रकाश में ला रहे हैं। यह सुरक्षा का सबसे बड़ा सौदा था जिसमें सरफेस टू सरफेस मिसाइल लॉन्चर्स और संचार के लिये इजरायल से आधुनिकतम तकनीक की खरीदारी पर अप्रैल, 2017 में मुहर लगाई गईं। इस सौदे के बाद जुलाई 4-6, 2017 में भारत के प्रधानमंत्री कई वर्षों में पहली बार मैत्रीपूर्ण यात्रा पर इजरायल आए। न्यूयॉंर्क टाइम्स के इन दोनों पत्रकारों के अनुसार इजरायल के लिये पेगासस एक कूटनीतिक शहद के समान था, जिसका उपयोग उन देशों को एकसाथ इकट्ठा करने में किया जाना था जो किसी भी नैतिकता के बंधन से मुक्त थे, दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद को मानते थे, अल्पसंख्यकों को कुचलकर बहुसंख्यकों की बुनियाद पर देश की सरकार चलाते थे और जनवाद की ताकत को तोड़ने की कोशिश में लगे रहते थे।