लेकिन उत्तर प्रदेश का विचार एक अलग दिशा में घूम रहा है। वहॉं लोगों का मन मोदी खेमे की इच्छाओं के खिलाफ है। ऐसे हालात में, उत्तर प्रदेश की सीमा पार के भी राजनीतिक खेल खेलने वाले योगी आदित्यनाथ के बौखलाने के ठीक-ठाक कारण हैं। आदित्यनाथ का अपने चुनाव प्रचार में बार-बार केरल का नाम लेना अकारण नहीं है। उनके जहरीले भाषण में केरल को दोष देना एक सोची-समझी चाल है। संघ परिवार चुनाव प्रचार से जनता के मुद्दे को भटकाकर दूसरी ओर ले जाना चाहता है।

योगी के संग्राम कक्ष के चालबाजों ने सोचा कि केरल को कोसने से चुनाव की लहर को अपनी ओर मोड़ने में मदद मिलेगी। वर्ष 2017 में राजनीतिक सत्ता पर काबिज होने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे फैलाये। पिछले पांच सालों में सत्ता में रहते हुए अब 2022 में वे नए अस्त्र-शस्त्रों से लैस है। योगी सरकार नफरत के बीज बो रही हैं। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढहाने के पद-चिन्हों पर चलते हुए उन्होंने वाराणसी और मथुरा के मंदिरों के आसपास अपने प्रचार बढ़ाए हैं। यहां भी उन्होंने मुसलमानों के धार्मिक स्थलों के खिलाफ शोर मचाया हुआ है। अंध, अतार्किक ढंग की राजनीति से ‘बांॅटो’ और ‘राज‘ करो के मकसद से यह उन्माद शुरु किया गया है। जैसे ही चुनाव प्रचार तेज हुआ उन्हें पता लग गया कि इस बार केवल मंदिर-मस्जिद विवाद से उनका बचाव नहीं हो सकता। रात-दिन संघ परिवार के विद्वानों को धारा विरूद्ध तैरने के तरीकों को ढूंढने के लिए लगाया गया।

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के विरूद्ध जनता का रोष इनके कुशासन का नतीजा है। किसानों के सालभर चले संघर्षों से झुक कर सरकार ने अपने किए हुए वायदों को पूरा नहीं किया। कामगारों को अनदेखी कठिनाइयों में डाल दिया है। दलितों और आदिवासियों को सदैव ही उनके मूलभूत मानव अधिकारों से वंचित रखा है। कॉरपोरेट घरानों ने आदिवासियों की ‘जल-जंगल-जमीन’ सभी को भाजपा शासन की मिलीभगत से ले लिया है। महिलाओं की स्थिति दयनीय हो गई है। बेरोजगारी युवाओं को घूर रही है। चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। उनके सोचे-समझे विकास के पथ पर अमीरों और गरीबों के बीच विभाजन तेजी से बढ़ रहा है। निःसंदेह, योगी सरकार के पास पर्याप्त कारण हैं इस सोच के लिए कि उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है। असुरक्षा का यह भाव उन्हें डरपोक और आक्रामक बना रहा है।

भाजपा का केरल पर जहर थूकने की कोशिश उनके वैचारिक और राजनीतिक रुख का अनिवार्य अंग है। इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ महाराष्ट्र और बंगाल पर अपने विषवमन को अलग स्वाद देने के लिए केरल के खिलाफ बोल रहे हैं। स्वाभाविक है कि कई कारणों से यह उन पर पलटवार हो गया। उत्तर प्रदेश क पदासीन मुख्यमंत्री ने प्रदेश की जनता से निवेदन किया कि केरल के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर गहराई से ध्यान दें। इसने वाम और जनतांत्रिक ताकतों को, इन दोनों राज्यों के बीच शासन के तरीकों में फर्क को समझाने का एक अवसर दिया। जहां तक उत्तर प्रदेश की आम जनता का केरल से सरोकार है वह केवल उतना ही है जितना कि आरएसएस के प्रचार कोष्ठ से प्रशिक्षित घृणा के धर्मरक्षकों द्वारा बताया गया है। स्वाभाविक है कि यह तथ्यों से दूर है। योगी की राजनीतिक पाठशाला में सभी तरह का झूठ पवित्र है जब तक कि यह उनके हित को पूरा करे। मूलतः इस तरह के झूठ प्रचार को सच से ‘सुरक्षित’ दूरी रखनी होती है। योगी के उत्तर प्रदेश में जहां मिथ्या के सि(ांत सरकार का मार्ग प्रशस्त करते है, सत्य और मिथ्या की इस दूरी को सरकार ने बहुत बुद्धिमानी से बना कर रखा है। उत्तर प्रदेश के लोगों को केरल का परिचय देते हुए बताया गया कि वह सर्वाधिक अविकसित भूखंड है जहां आदिम लोग रहते हैं! इसलिए योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में अपने वोटरों को यह कहते हुए धमका रहे थे कि यदि उसे सत्ता से हटा दिया जाएगा तो उत्तर प्रदेश केरल बन जाएगा।

केरल और उत्तर प्रदेश में जीवन की वास्तविकता क्या है? चलिए, स्वयं केरल के विकास सूचकांक को जनता को देखने दें और केरल के विकास की तुलना उत्तर प्रदेश से करने दें। नीति आयोग ने स्वयं वर्ष 2021 में स्वयं बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट निकाली थी। इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की आबादी के 37.39 प्रतिशत भाग को गरीबी के रूप में चिन्हित किया जबकि केरल की गरीबी दर 0.71 प्रतिशत है। यह बहुआयामी गरीबी सूचकांक शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका स्तर जैसी चीजों को इंगित करता है। इसमें स्वास्थ्य सूचकांक में पोषण, शिशु मृत्यु दर और मातृत्व स्थिति शामिल है। शिक्षा के सूचकांक के लिए स्कूली शिक्षा काल और स्कूल में उपस्थिति का उल्लेख है।

आजीविका स्तर-शौचालय, पेयजल, बिजली, आवास, जलाऊ ईंधन तक की उपलब्धता, संपत्ति, स्वामित्व और बैंक खाताधारकों की संख्या के आधार पर निर्धारित की गई है। उत्तर प्रदेश के खाद्य उत्पादन में शीर्ष पर होने के बावजूद बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार उत्तर प्रदेश में पोषण स्तर सबसे निम्न है। योगी सरकार जिस केरल राज्य को नीचा दिखाना चाहती है वह नीति आयोग के टिकाऊ विकास लक्ष्य सूचकांक 2020-21 के अनुसार देश में प्रथम स्थान पर है। केरल में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्र के समग्र विकास पर दुनिया ने लिखा है। यदि उत्तर प्रदेश की जनता को स्वतंत्र और निष्पक्ष वोट डालने को मिलेगा तो जनता केरल के रास्ते को ही चुनेगी। हो सकता है कि योगी आदित्यनाथ ने अपनी कही बात पर दोबारा मनन करते हुए उस चर्चा में कानून और व्यवस्था का सवाल डाला हो। लेकिन उसमें भी सच उनकी ओर नहीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ;राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरोद्ध की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 12,913 अपहरण के और 3,779 हत्याओं के मामलों के साथ उत्तर प्रदेश में अपराध सबसे ऊपर है। इन संख्याओं के आसपास केरल कहीं नहीं है। जनता को इस फर्क को जानने दें।

उत्तर प्रदेश वह जगह है जहां मंत्रियों और नेताओं के सगे-संबंधी स्वतंत्रता से नादान लोगों के ऊपर गाड़ी चला सकते हैं, जनता पर गोली चला सकते है, गरीब लड़कियों का बलात्कार कर सकते हैं और मार सकते हैं। उत्तर प्रदेश वह राज्य है जहां के राजनीतिक जीवन के आदर्श को अंडरवर्ल्ड के गुरुओं द्वारा खोजा गया है।

योगी आदित्यनाथ की चुनौती का सामना करने के लिए केरल तैयार रहेगा। 1957 से केरल राज्य के विकास की जनसुलभ डगर पर विकसित करने के लिए वाम और जनतांत्रिक शक्तियां मजबूती से खड़ी हैं, वाम और जनतांत्रिक शक्तियों को केरल की उपलब्धियों पर गर्व है। वे उत्तर प्रदेश के अपने भाई-बहिनों से अपील करते हैं कि वे वोट डालने से पहले केरल और उत्तर प्रदेश में जीवन की तुलना करे। (संवाद)