इसी पृष्ठभूमि में यह हिजाब विवाद शुरू हुआ है। शुरुआत भी हुई है, तो एक बहुत ही मामूली बात को लेकर। यह स्कूलों और प्रीयूनिर्सिटी कॉलेजों में स्कूल यूनिफॉर्म के खिलाफ हुई है। ज्ञात हो कि देश के अधिकांश राज्यों में स्कूलों के बच्चों के लिए यूनीफॉर्म चलते हैं। यूनिफॉर्म क्या हो, इसे स्कूल प्रबंधन ही तय करते हैं। अपने बच्चों में वेशभूषा की एकरूपता और दूसरे खासकर पड़ोसी विद्यालयों के छात्रों से अलग दिखाने के लिए खास तरह के यूनिफॉर्म स्कूल तय करते हैं। कर्नाटक के उड्डुपी के एक प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज यानी 12वीं कक्षा की कुछ छात्रों ने स्कूल यूनिफॉर्म की पॉलिसी का उल्लंघन करना शरू कर दिया। वे लड़कियां पहले स्कूल के यूनिफॉर्म के नियमों का पालन कर रही थीं और अन्य लड़कियों की तरह की पोशाक में आती थीं, लेकिन पिछले दिसंबर महीने से कुछ लड़कियां स्कूल यूनिफॉर्म के साथ साथ अपने सिर और चेहरे पर हिजाब डालकर भी आने लगीं। इसके विरोध में आरएसएस से जुड़े कुछ संगठनों ने भगवा गमछा हिन्दू छात्रों को बांटना शुरू कर दिया और वे अपने कंधों पर भगवा गमछा पहनकर आने लगे और स्कूल में तनाव बढ़ने लगा।

स्कूल प्रबंधन ने आदेश निकालकर भगवा गमछा और हिजाब पर रोक लगा दी। रोक के बावजूद छह मुस्लिम लड़कियां हिजाब में आईं और प्रबंधन ने उसे कक्षा में प्रवेश करने नहीं दिया। इस समय तक तो यह पूरी तरह से एक स्कूल की समस्या थी, लेकिन हिजाबी लड़कियां के कक्षा में घुसने पर रोक लगाने से यह मामला पहले प्रान्तीय और फिर राष्ट्रीय रूप लेने लगा। मामला अभी कर्नाटक के हाई कोर्ट में पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में भी इसकी गूंज उठ चुकी है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। अनेक राज्यों में हिजाब पहनकर मुस्लिम लड़कियां स्कूल और कॉलेज के यूनिफॉर्म कोड का उल्लंघन कर रही हैं। यूनिफॉर्म जहां नहीं थे और जहां मुस्लिम लड़कियां हिजाब में नहीं आती थीं, वहां भी अनेक लड़कियां न केवल हिजाब, बल्कि बुर्के में भी आने लगी हैं। यानी मुस्लिम लड़कियों में हिजाब पहनने की प्रवृति तेज हो गई हैं। वे इसे अपनी पहचान से जोड़ रही हैं। वह इसे कुरान से भी जोड़ रही हैं।

यह तो मामले का एक पहलू है, लेकिन दूसरा पहलू इससे भी ज्यादा दारुण है। कर्नाटक में अल्पसंख्यक विभाग मुस्लिमों के लिए अनेक संस्थान चलाता है। वहां उर्दू, अरबी, फारसी या इस्लाम से संबंधित अध्यापन होता है। वहां लड़कियां आमतौतर हिजाब और बुर्के में ही पिछले कई सालों से आ रही थीं। ये मुस्लिम पोशाक ही उनका अघोषित यूनीफॉर्म बना हुआ था। अब कर्नाटक प्रशासन ने आदेश निकालकर वहां भी हिजाब और बुर्के का पोशाक के रूप में इस्तेमाल बंद करवा दिया है। यह कर्नाटक हाई कोर्ट के एक आदेश का हवाला देकर किया गया है, जिसमें कहा गया था कि जिन संस्थानों में यूनिफॉर्म कोड है, वहां के छात्र और छात्राएं धार्मिक पहचान वाले पोशाक में नहीं आएं।

कर्नाटक हाई कोर्ट का आदेश छात्रों और छात्राओं तक सीमित है और वह भी उसी स्कूल और कॉलेज में जहां पहले से यूनिफॉर्म कोड घोषित है, लेकिन इसका असर मुस्लिम शिक्षिकाओं पर भी पड़ रहा है। एक कॉलेज की शिक्षिका को इसलिए संस्थान में प्रवेश नहीं करने दिया गया, क्योंकि उन्होंने हिजाब पहन रखा था। उनके प्रवेश का रोकना पूरी तरह से गलत था। गुस्से में उस शिक्षिका ने अपनी नौकरी से ही इस्तीफा दे डाला। अनेक मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब पहन कर प्रवेश करने से रोके जाने पर अपनी परीक्षा तक को छोड़ दिया है।

और यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। जाहिर है, इसके पीछे राजनीति भी है। हालांकि मुसलमानों में बढ़े रहे असंतोष की यह अभिव्यक्ति है, लेकिन इसका तात्कालिक कारण राजनीति ही है। पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया मुस्लिम पहचान को बढ़ावा देने की राजनीति कर रहा है। इसने छात्रों के बीच कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया बना रखा है। इस विवाद में इन दोनों फ्रंटों का नाम बार बार आ रहा है। एक सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया(एसडीपीआई) भी इस विवाद के पीछे है, जिसे पोपुलर फ्रट ऑफ इंडिया का ही बच्चा माना जाता है। इसे हाल ही के दिनों हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में कुछ सफलताएं हासिल हुई थीं और उनसे उत्साहित होकर यह प्रदेश भर में उभरने के लिए यह विवाद खड़ा कर रहा है। ऐसा भी आरोप लगाया जा रहा है। इसमें सच्चाई हो सकती है, क्योंकि जिन लड़कियों ने हिजाब पहनने की जिद की, उनमें से कुछ के पिता एसडीपीआई से जुड़े हुए हैं।

मामला अदालत में है। इसलिए जो भी अदालत का फैसला होगा, वहीं मान्य होगा, लेकिन इसके बाद यह मामला शांत हो जाएगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता। जिन संस्थानों में कोई यूनिफॉर्म नहीं हैं, वहां की मुस्लिम लड़कियां ज्यादा से ज्यादा संख्या में हिजाब और बुर्के में आने लगेंगी और प्रतिकिया में संघी संगठन भगवा गमछे बांट सकते हैं। इस तरह शैक्षिक संस्थान टकराव के नये अखाड़े बन सकते हैं। नये माहौल में अपनी पहचान दिखाने के लिए मुसलमानों को नया अस्त्र मिल चुका है और उसने अपनी महिलाओं के वस्त्र को ही अपना अस्त्र बना लिया है। (संवाद)