मैंने अपना लेक्चर प्रारंभ किया ही था कि एक छात्रा ने प्रश्न पूछा कि “आपने तो पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं किया है. आप तो अखंड भारत की बात करते हैं।“ इस पर मैंने कहा कि “यह तुम्हारी गलतफहमी है। हमने पाकिस्तान का अस्तित्व स्वीकार कर लिया था। विभाजन के तुरंत बाद महात्मा गांधी ने भारत सरकार पर दबाव डाला था कि हम पाकिस्तातन को उसके बकाया 55 करोड़ तुरंत अदा करे। उन्होंने अपनी इस मांग के समर्थन में अनशन भी किया था। उनकी इस मांग को कुछ लोगो ने गलत माना था। जिन लोगो ने उसे अनुचित माना था उनमें एक नाथूराम गोडसे था। जिसने आक्रोशित होकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। जहां तक मेरा व्यक्तिगत प्रश्न है मैं अखंड भारत की मांग को उचित नहीं मानता हूँ।
“परंतु मेरी दिली इच्छा है कि भारत पाकिस्तानन बंगला देश मिलकर कनफेडरेशन बने।“ इस पर छात्रों ने मुझसे कहा कि कनफेडरेशन का क्या अर्थ है। इस पर मैंने कहा कि कनफेडरेशन का स्वरूप वैसा ही होगा जैसा यूरोपियन यूनियन का है। परंतु मेरी अवधारणा के अनुसार कनफेडरेशन में शामिल देश पासपोर्ट, वीजा आदि समाप्त कर देगे। बिना किसी बाधा और शर्तो के तीनों देश के नागरिक एक दूसरे देशो की यात्रा कर सकेंगे। यह सुनकर कुछ छात्राएं प्रसन्न होकर कुर्सी पर खड़ी होकर कहने लगीं तब हम तो ताजमहल खूब देख पाएंगे।
तीनों देशों के बीच नानएग्रेशन संधि होगी। इस के अनुसार तीनों देश यह तय करेगें कि वे एक दूसरे पर किसी हालत में हमला नहीं करेंगे। तीनों देशों के बीच अबाध रूप से व्यापार चलेगा। कस्टम की व्यंवस्था समाप्त हो जाएगी। तीनों देशों में तीनों देशों के नागरिकों को शीर्ष संस्थाओं मे पद मिल सकेगें। जैसे यूरोपियन यूनियन में शामिल देशो ने यूरो को सभी देशों की मुद्रा बना लिया है वैसे ही तीनों देश भी अपनी साझा मुद्रा बनाने की सोचेंगें। तीनो देश अपने यहां रहने वाले अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा देंगे। न सिर्फ सुरक्षा, उसके साथ अल्पपसंख्यवकों का विकास भी सुनिश्चिपत करेंगे। चाहे बात अखंड भारत की हो या कनफेडरेशन (महासंघ) की अल्पसंख्यकको को पूरी सुरक्षा दिए बिना उनका निर्माण और प्रगति संभव नहीं होगी। किसी भी देश में अल्पसंख्यतकों का क्या महत्व होता है यह डॉ. अम्बेडकर के निम्न कथन से सिद्ध होता है. अम्बेडकर के अनुसार “संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अत्यधिक महत्वनपूर्ण हैं. इन्हें अनुच्छेद 15, 16, 17 के साथ पढ़ने पर यह महसूस होता है कि संविधान निर्माता इस बात के लिए कितने जागरूक थे कि अल्पसंख्यरको की समस्याओं और उनका संरक्षण देश की एकता के लिए कितना महत्वपूर्ण है।’’ कई लोगों ने इन प्रावधानो को मुसलमानो का तुष्टीकरण माना।
इस आलोचना का उत्तर देते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा ’’वे कट्टरपंथी जो सोचते हैं कि यह कंसेशन जरूरत से ज्यादा है. जो अल्पसंख्यकों को किसी प्रकार के संरक्षण के विरोधी हैं, उन्हे मैं दो चेतावनियां देना चाहूंगा. पहला अल्पसंख्य्क एक विस्फोटक वर्ग है, जो यदि फूट पड़ा तो वह राज्य के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा।’’ भारत के अल्पसंख्यकों ने अपना अस्तित्व बहुसंख्यको के हाथ में सौंप दिया है और जिसे बहुसंख्यकों ने कानूनी रूप से स्वीकार किया है। भारत के बहुसंख्ययकों का स्वरूप राजनीतिक नहीं, वास्तव में जातिगत है। मेरी राय में जब पड़ोस के देश काफी विभाजित हैं, तब अखंड भारत की बात करना उनके सार्वभौमिक अहम को चोट पहुँचाने जैसा है। (संवाद)
अखंड भारत का नहीं महासंघ का प्रयास हो
अखंड भारत की बात करना पड़ोसी देशों को चिढ़ाने जैसा है
एल. एस. हरदेनिया - 2022-04-22 10:42
वर्ष 2013 में मैं एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गया था। पाकिस्तान के प्रवास के दौरान काराची विश्वविद्यालय ने मुझे छात्रों से बातचीत के लिए निमंत्रित किया था। श्रोताओं में मुख्यतः इंटरनेशनल अफेयर्स के छात्र-छात्राएं थे। मेरे लेक्चकर का विषय था ’’भारत पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान की संभावनाएँ’’।