पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से हाईकोर्ट में ओबीसी संबंधित डाटा पेश करने के लिए मोहलत मांगी थी। महाधिवक्ता ने दलील दी थी कि सरकार ओबीसी वर्ग से संबंधित डाटा हाईकोर्ट में पेश करना चाहती है। गौर करने वाली बात यह है कि ओबीसी संबंधित डाटा के लिए सर्वे का आदेश सरकार ने पिछले साल दिसंबर में ही दे दिया था। इस आदेश में 10 दिनों के भीतर सर्वे कार्य को पूरा करने की बात कही गई थी। इस सर्वे को पूरा करने के लिए हजारों की संख्या में कर्मचारियों को कार्य पर लगाया गया था और अब यह कार्य पूरा भी हो चुका है। मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने ओबीसी वर्ग के शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन के आधार पर वोटर लिस्ट की पड़ताल के बाद डाटा तैयार किया है। सरकार कोर्ट में इसी डाटा के आधार पर तैयार रिपोर्ट को प्रस्तुत करेगी, इसकी पुष्टि पिछले सप्ताह प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की सदस्य कृष्णा गौर ने मीडिया से एक बातचीत के दौरान की थी।

शिवराज सरकार की तरफ से ओबीसी वर्ग के सर्वे को लेकर जल्दबाजी में दिए गए आदेश, कार्य को पूरा करने के लिए हजारों की संख्या में कर्मचारियों को कार्य पर लगाना, साथ ही कम समय में इस सर्वे को पूरा करने का आदेश देना, यह तमाम तथ्य यह दर्शाती है कि शिवराज सरकार इस मुद्दे पर अपने दावे को मुकम्मल करने को लेकर कितनी गंभीर है। ओबीसी वर्ग को अपने पाले में करने लिए सरकार के भीतर भी छटपटाहट अपने चरम सीमा पर पहुँच चुकी है। शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा हर कीमत पर ओबीसी वोट बैंक को साधना चाहती है। ओबीसी वोट बैंक कांग्रेस की ओर झुके इसके लिए कांग्रेस भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है।

नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ इस आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस की ओर से सबसे मुखर हैं। पिछले सप्ताह हुए ओबीसी सम्मेलन में कमलनाथ ने कांग्रेस की ओर से दावा ठोका कि आरक्षण की लड़ाई कांग्रेस ने लड़ी है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए कमलनाथ ने सरकार पर यह आरोप लगाया था कि सरकार आरक्षण को लेकर विधानसभा में जवाब तक नहीं दे पाई। इससे पहले भी कमलनाथ सार्वजनिक मंचों से 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू करवाने को लेकर दावा ठोकते रहे हैं।

कांग्रेस और बीजेपी दोनों इस आरक्षण को लागू करवाने के अपने-अपने दावों को मजबूत करने के लिए या यूँ कहें अपने वोट को पक्का करने के लिए अब तक तमाम हथकंडे अपना चुकी है। 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण देने का संकल्प पारित करने के मुद्दे पर शिवराज सरकार की तारीफ़ इस बार के बजट सत्र के अभिभाषण में राज्यपाल मंगूभाई पटेल कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से शुरुआत में इस मुद्दे पर प्रदेश महासचिव पवन पटेल ने कमान संभाला। पवन पटेल इस आरक्षण को लागू करवाने के दावे को मजबूत करने के लिए प्रदेश भर में आभार यात्रा निकाल चुके हैं। अब यह कमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ आक्रामकता के साथ संभाले हुए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट के फैसले आने के बाद कैसे इस मुद्दे को दोनों राजनितिक पार्टियां अपने अनुसार भुनाती है।

कांग्रेस और बीजेपी 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को प्रदेश में सरकार बनाने के फार्मूले के रूप में इसलिए भी देख रही है क्योंकि प्रदेश में जनसंख्या के आधार पर ओबीसी वर्ग एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रदेश के 52 प्रतिशत मतदाता ओबीसी समाज से आते हैं। प्रदेश के राजनितिक विद्वानों का मानना है कि प्रदेश के 120 विधानसभा सीटों से ज्यादा सीटों पर इसी समाज का प्रभुत्व है। आगामी पंचायत चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव में ओबीसी आरक्षण भी एक बड़ा फैक्टर होगा । इस मुद्दे पर दोनों पार्टियों का रूख कितना आक्रामक होगा यह कोर्ट के फैसले पर ही निर्भर करता है।

जाहिर है, जब हाईकोर्ट का फैसला आयेगा, तो राजनितिक पार्टियों के दावे भी फैसले के अनुरूप होंगे और आरोप-प्रत्यारोप भी फैसले के अनुरूप होंगे। ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रही राजनीती को देखते हुए एक बात तो साफ है कि मध्यप्रदेश की दोनों प्रमुख राजनितिक पार्टियां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को लुभाने के बाद ओबीसी वर्ग को अपने पक्ष में कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाना चाहती है। पार्टियों के दावे और आरोप-प्रत्यारोप की इस छटपटाहट से देखकर यही लगता है कि वे अजा और अजजा के साथ ओबीसी आरक्षण को भी सत्ता की कुर्सी तक पहुँचने का एक जरिया मान रहे हैं। (संवाद)