उनका यह कहना कि वे पूरे कार्यकाल तक सरकार का नेत्त्व करेंगे और जिस काम के लिए वे प्रधानमंत्री बने हैं, उसे भी पूरा करना चाहेंगे, यह साबित करता है कि वे अब अपने आपको किसी की कृपा पर आश्रित नेता नहीं मानते। उन्हें इस बात का पूरा अहसास है कि पिछले लोकसभा चुनाव में लोगों ने उनकी सरकार को जनादेश दिया था और कांग्रेस उन्हें नेता बनाकर चुनाव लड़ रही थी।

यह सच है कि उन्होंने यह भी कहा कि यदि पार्टी चाहे तो वे प्रधानमंत्री का पद छोड़ देंगे। लेकिन इसमें ज्यादा कुछ नहीं देखा जाना चाहिएं। इस तरह की बयानबाजी महज औपचारिकता है, जो ऐसे मौके पर की जाती है। अपना कार्यकाल पूरा करने का जो संकल्प प्रधानमंत्री ने दिखाया वह ज्यादा मायने रखता है।

वैसे अपने पहले साल की उपलब्धि के रूप में देश और दुनिया को दिखाने के लिए प्रघानमंत्री के पास कुछ खास नहीं था। शिक्षा के अघिकार को मौलिक अघिकार बनाने को वे अपन सरकार की उपलब्धि के रूप में बिना रहे थे, लेकिन सच यह भी है कि इसे अमल में लाना फिलहाल संभव नहीं है, क्योंकि राज्य सरकारों ने पैसे की कमी का हवाला देकर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।

महिला आरक्षण विधेयक को राज्य सभा से पारित करवाना भी सरकार के लिए कोई उपलब्धि नहीं रही है, क्योंकि इसे लोकसभा से पारित करवाना बाकी है और राज्य सभा में जिस तरह से इसे पारित करवाया गया, उससे मनमोहन सिंह सरकार की परेशानियां और बढ़ ही गई हैं।

आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ भी प्रधानमंत्री ने बहुत कुछ कहा, लेकिन दोनों मोर्चे पर कोई खास सफलता सरकार को पिछले एक साल में नहीं मिली है। माओवाद की समस्या तो गंभीर रूप ले रही है और उसके सामने केन्द्र सरकार के प्रयास बौने साबित हो रहे हैं। गृहमंत्री पी चिदंबरम ने नक्सलवाद से लड़ाई को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़ दिया था। वे माओवादियों के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई लड़ने लग गए थे और बात बात में उस पर अपनी राय को जगजाहिर करने लगे थे।

मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रियों को बाहरी मंचों पर बयानबाजी कर दूसरे मंत्रियों के साथ अपने मतभेदों को उजागर करने की प्रवृत्ति पर लगाम देने की बात भी की। यह सलाह पी चिदंबरम के लिए ही थी, जिन्हे बात बात में एक न्यूज चैनल के पास जाकर अपनी बात कहने की आदत पड़ गई थी। जिन नीतिगत बातों की चर्चा मंत्रिमंडल की बैठकों में करनी चाहिए, उन्हें वे मीडिया के सामने करने लगे थे।

प्रधानमंत्री ने यह तो दावा किया कि विकास की गति तेज है, लेकिन महंगाई के कारध विकास की यह गति आमलोगों के लिए शायद ही कोई मायने रखती है। आने वाले दिनों में केन्द्र सरकार की स्थिरता को लेकर भ्रम बना रहेगा, क्योंकि लोकसभा में सरकार का गणित गड़बड़ा गया है। (संवाद)