इस बीच अनेक राजनैतिक विश्लेषक, जो खासकर कांग्रेस के प्रति बहुत ही आशावाद पालते हैं कह रहे हैं कि राहुल गांधी के साथ ईडी जो बर्ताव कर रहा है, उससे कांग्रेस को बहुत ही राजनैतिक लाभ होगा, उसमें रक्त संचार हो जाएगा और वह फिर अपने पुराने दिनों के गौरव को प्राप्त कर लेगी। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वे जनता पार्टी के शासन काल में मोरारजी सरकार द्वारा इन्दिरा गांधी की गिरफ्तारी का हवाला दे रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि तत्कालीन उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, जो उस समय गृहमंत्री भी थे, ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने की जिद न की होती, तो फिर कांग्रेस की फिर से वापसी ही नहीं हो पाती
सवाल उठता है कि क्या यह विश्लेषण सही है? क्या राहुल गांधी की गिरफ्तारी से कांग्रेस में जान आ जाएगी? इन सवालों का जवाब देने के लिए 1977 में हार के बाद कांग्रेस की दशा और आज की दशा में तुलना करनी चाहिए। पहली बात तो यह है कि 1977 में कांग्रेस हारी थी, समाप्त नहीं हुई थी। हारी हुई पार्टी उचित माहौल में जीत भी सकती है और जीत भी जाती है, लेकिन जो पार्टी समाप्त हो गई हो, वह कैसे जीतेगी?
कांग्रेस समाप्त हो चुकी है, ऐसा कहना शायद यह ज्यादती होगी, लेकिन इतना तो कह ही सकते हैं कि देश के अधिकांश भागों से कांग्रेस समाप्त हो चुकी है। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में उसे ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले। देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले महाराष्ट्र में उसका कुछ वजूद है, लेकिन वह वहां की दो सबसे बड़ी पार्टियों में एक नहीं है। तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले बिहार में भी वह गायब है। उसके जो करीब डेढ़ दर्जन विधायक वहां हैं, वे राजद के वोटों के बल पर हैं। देश की चौथी सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य पश्चिम बंगाल में भी उसका वजूद समाप्त हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे देख लीजिए। देश की पांचवीं सबसे ज्यादा आबादी वाले तमिलनाडु में भी वह लगभग गायब ही है। उसके जो भी इक्का दुक्का उम्मीदवार जीतते हैं, वे वहां की प्रमुख क्षेत्रीयों पार्टियों में से किसी एक के सहयोग से ही जीतते हैं।
ऊपर तो हमने देश की पांच सबसे आबादी वाले राज्यों की चर्चा की। अन्य अनेक राज्यों में भी कां्रगेस ने दूसरी बड़ी पार्टी का रुतबा खो दिया है। दिल्ली में वे समाप्तप्राय है। पंजाब में भी वह समाप्ति की ओर जा रही है। झारखंड में भी उसका बिहार वाला हाल ही है। उड़ीसा में भी वह तीसरे नंबर पर धकेल दी गई है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी वह लगभग समाप्त ही है। जम्मू और कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी ने उसका स्थान ले लिया है। पूर्वात्तर भारत में भी उसका बुरा हाल है।
अब जब कांग्रेस की हालत इतनी बुरी है, तो फिर वह कैसे एकाएक उठ खड़ी होगी राहुल की गिरफ्तारी से? 1977 में कांग्रेस के पास 30 फीसदी से ज्यादा वोट थे। उसकी हार का मुख्य कारण उसके विरोधियों का आपस में हाथ मिला लेना था। हार के बावजूद उसके लोकसभा सांसदों की संख्या डेढ़ सौ के करीब थी। राज्य सभा में कांग्रेस उस समय भी नंबर वन पार्टी थी। प्रदेशों में वह कहीं सत्ता में थी, तो कहीं मुख्य विपक्षी पार्टी थी। उसके पास प्रतिबद्ध कांग्रेसियों की एक फौज थी। बहुत सारे तो स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनकी अपने अपने इलाकों में बहुत प्रतिष्ठा थी।
इन सबके अलावा खुद इन्दिरा गांधी का अपना व्यक्तित्व बहुत ही बड़ा था। वह एक मजबूत नेता की छवि रखती थी। पाकिस्तान को तोड़की बांग्लादेश नाम का एक नया देश बनाने का तगमा उन्हें हासिल था। बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना और प्रीवी पर्स को समाप्त करना उनकी उपलब्धियों में शामिल था। आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन किया गया और सरकार विरोधी नेताओं को जेल भेजे गए, लेकिन उस दौरान सरकार के द्वारा कुछ अच्छे काम भी किए गए थे, जिसके कारण लोगों के एक सेक्शन में आपातकाल के लिए इन्दिरा गांधी के प्रति प्रशंसा का भाव भी था। और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि जो लोग 1977 में एक साथ होकर कांग्रेस से लड़े थे, 1980 में आपस में विभाजित होकर अलग हो गए थे। उसके बाद जो इन्दिरा गांधी को जीतना ही जीतना था और 1977 के पहले की प्रतिष्ठा कांग्रेस को हासिल हो गई।
लेकिन अभी कांग्रेस के पास क्या है? कहा जा रहा है कि राहुल के साथ किए जा रहे बर्ताव से कांग्रेस में रक्त का संचार हो जाएगा। लेकिन ऐसा कहने वाले ये भी देख लें कि क्या कांग्रेस के पास रक्त बचा हुआ भी है क्या? नेतृत्व की ही बात करें, तो इन्दिरा के सामने सोनिया और राहुल की क्या बिसात है? इन्दिरा गांधी को उनके विरोधी अटलबिहारी वाजपेयी तक ने दुर्गा कहा था। राहुल और सोनिया के बारे में उनके विरोधी क्या कहते हैं? इन्दिरा गांधी एक फुल टाइम नेता थी, लेकिन राहुल गांधी तो अभी भी राजनीति में पार्ट टाइमर ही हैं। कब वे देश में रहते हैं और कब विदेश चले जाते हैं, यह पता नहीं चलता। ट्विटर पर लिख लिख की राजनीति में अपनी उपस्थिति का अहसास कराते रहते हैं। वे कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन फुल टाइम पॉलिटिक्स करने में अपनी असमर्थता के कारण उन्होंने अध्यक्ष पद का ही त्याग कर डाला, हालांकि अध्यक्ष पद की शक्तियों का इस्तेमाल वे ही करते दिखाई देते हैं। बिना किसी जिम्मेदारी के सत्ता में बने रहने की कला उन्होंने सीख ली है। यह कला आपके काम की होती है, यदि आपकी पार्टी बहुत मजबूत हो, लेकिन कमजोर पार्टी का नेता सिर्फ सत्ता का इस्तेमाल करे और जिम्मेदारियों से भाग जाए, तो फिर वह पार्टी को ही डुबाएगा। और यही काम राहुल गांधी कर रहे हैं।
इसलिए कांग्रेस को इस बात की खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए कि राहुल के खिलाफ ईडी की कार्रवाई से कांग्रेस को जीवनदान मिल रहा है। सच तो यह है कि लोगों का यह पता लगने लगा है कि सोनिया और राहुल ने क्या गड़बड़ियां कर दीं। नेशनल हेराल्ड कांग्रेस की संपत्ति थी, जिन्हें दोनों ने एक ऐसी कंपनी के नाम करवा दी, जिसके मालिक दोनों मां-बेटे ही हैं। और वह संपत्ति कुछ करोड़ों में नहीं है, बल्कि करीब 5 हजार करोड़ की संपत्ति है।
हां, कांग्रेसी इन घटनाओं का लाभ उठा सकते हैं। नेशनल हेराल्ड घोटाले का हवाला देते हुए यदि वे सोनिया-राहुल को कांग्रेस से बाहर कर दें, और सामुदायिक नेतृत्व के द्वारा काग्रेस को चलाएं, तब शायद कांग्रेस में नया रक्त पैदा हो और उस नये रक्त का संचार हो। (संवाद)
ईडी के शिकंजे में राहुल गांधी
क्या इससे कांग्रेस फिर से मजबूत हो जाएगी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2022-06-16 10:59
राहुल गांधी अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। उनकी मां की तबियत खराब है और उन्हें ईडी के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है। उनसे वैसे सवाल पूछे जा रहे हैं, जो उनके लिए बेहद असुविधाजनक हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उनसे पूछताछ का काम पूरा नहीं हो सका है। जैसा कि पूछताछ के बाद प्रायः होता है, उनकी गिरफ्तारी की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस नेताओं का पूछताछ के खिलाफ लामबंद होकर उग्र प्रदर्शन इसी गिरफ्तारी की आशंका के कारण हो रहा है।