मोहित सेन लिखते हैं कि जयप्रकाश नारायण बार-बार पुलिस और सेना से अपील कर रहे थे कि वे शासन के उन आदेशों का पालन न करें जिन्हें वे अन्यायपूर्ण और गैर-कानूनी मानते हैं। जयप्रकाशजी बार-बार गर्व से इस बात का उल्लेख करते थे कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे अनुशासनबद्ध संगठन का समर्थन प्राप्त है। जयप्रकाशजी ऐसा इस तथ्य के बावजूद कहते थे कि वे पहले आरएसएस को फासिस्टवादी संस्था बता चुके थे। शायद यदि इस तरह की बातें नहीं कही जातीं तो इंदिरा गांधी आपातकाल लागू नहीं करतीं।
मोहित सेन लिखते हैं कि एक मुलाकात के दौरान इंदिरा गांधी ने प्रख्यात कम्युनिस्ट नेता भूपेश गुप्ता को बताया था कि मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि ये लोग मुझे शारीरिक रूप से मारना चाहते हैं। मैं इस बात से ज्यादा चिंतित हूं कि ये लोग हमारे देश को और उसने अभी तक जो विकास किया है उसे भी नष्ट करना चाहते हैं।
इस बीच सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के एक अधिकृत प्रतिनिधि भारत आए। वे अपने साथ सोवियत नेताओं का एक लंबा पत्र लाए थे। इस पत्र की एक ही कापी थी और यह आदेश था कि पढ़ने के बाद उसे नष्ट कर दिया जाए। इस पत्र में यह सूचना दी गई थी कि जिन नेताओं ने बांग्लादेश के निर्माण में मदद की थी, उनकी हत्या कराने की साजिश रची जा रही है। इन नेताओं में इंदिरा गांधी, मुजीबुर रहमान और जुल्फिकार भुट्टो शामिल थे। सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत के कम्युनिस्टों को संदेश दिया कि वे इस चेतावनी को हल्के-फुल्के तौर पर न लेें। सोवियत संदेश वाहक ने बताया कि इंदिराजी और मुजीबुर रहमान को यह सूचना व्यक्तिगत रूप से दे दी गई थी परंतु भुट्टो को सीधे नहीं दी गई क्योंकि वे कम्युनिस्टां, विशेषकर सोवियत कम्युनिस्टों पर विश्वास नहीं करते हैं। इसलिए भुट्टो को यह चेतावनी फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात के माध्यम से दी गई।
इसके कुछ समय बाद इसी तरह का संदेश और सूचना फिडेल कास्त्रो द्वारा हस्ताक्षरित पत्र के माध्यम से आई। इसी तरह यही सूचना यासर अराफात ने भी भेजी। इन दोनों ने यह सूचित किया कि भारतीय उपमहाद्वीप को अस्थिर करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है और यह तभी सफल हो सकेगा जब इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी जाए।
जहां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इंदिराजी के विरूद्ध षड़यंत्र रचे जा रहे थे वहीं देश की सेना के उच्च पदों पर बैठे कुछ अधिकारियों के बीच यह विचार प्रारंभ हो गया था कि यदि न्यायपालिका श्रीमती गांधी को अपदस्थ कर देती है और ऐसा होने पर भी प्रधानमंत्री त्यागपत्र नहीं देती हैं तो ऐसे में फौज की क्या भूमिका होगी। विचार का मुद्दा था कि फौज सरकार के प्रति वफादार रहे या संविधान के प्रति। सर्वाधिक संतोष की बात यह थी कि सभी अधिकारी इस मुद्दे पर एकमत नहीं थे। अधिकारियों के एक वर्ग का मत यह था कि यदि परिस्थितियां उलझनपूर्ण होती हैं तो वे मूक दर्शक नहीं बने रहेंगे। इस स्थिति पर टिप्पणी करते हुए सेन कहते हैं कि ‘यदि ऐसा होता तो वह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होता'।
इस बीच इलाहबाद हाईकोर्ट ने इंदिराजी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। बहुत सोच-विचार के बाद इंदिराजी ने इस्तीफा न देने का निर्णय किया। यद्यपि इस मुद्दे पर कांग्रेस में मतभेद था। परंतु जिन नेताओं ने इस्तीफा न देने की सलाह दी उनमें पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर भी शामिल थे। वे एक प्रमुख कांग्रेस नेता होने के साथ-साथ प्रसिद्ध वकील भी थे। परंतु अनेक कांग्रेस नेता चाहते थे कि वे इस्तीफा दे दें। ऐसे नेताओं की सलाह मानते हुए इंदिराजी ने इस्तीफा लिख लिया था परंतु अंततः उन्होंने इस्तीफा न देने का फैसला किया। जब उनके इस निर्णय का विरोध हुआ तो उन्होंने आपातकाल की घोषणा कर दी।
ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस तरह की खबर मिल रही थी कि प्रतिक्रियावादी ताकतें देश पर कब्जा करने का प्रयास कर सकती हैं। सीपीआई ने इंदिराजी के निर्णय का स्वागत किया। उस समय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता श्रीपाद अमृत डांगे मध्यप्रदेश के इंदौर नगर में थे। वहां एटक की कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी। डांगेजी इस मत के थे कि तुरंत कोई वक्तव्य जारी न किया जाए। इसके बावजूद सीपीआई ने आपातकाल की घोषणा का स्वागत किया। सीपीआई के प्रमुख नेता भूपेश गुप्ता ने इंदिराजी से भेंट कर उन्हें समर्थन का आश्वासन दिया।
परंतु कुछ दिनों बाद इंदिराजी ने अपने पुत्र संजय गांधी को ढील देना प्रारंभ कर दिया जो सीपीआई के साथ-साथ अनेक कांग्रेस नेताओं को भी अच्छा नहीं लगा। धीरे-धीरे इंदिराजी और सीपीआई के बीच मतभेद बढ़ने लगे। इस बीच विरोधी पार्टियों के नेताओं की गिरफ्तारियां प्रारंभ हो गईं। जिन लोगां को गिरफ्तार किया गया उनमें आरएसएस प्रमुख बाला साहब देवरस भी शामिल थे। देवरस ने इंदिराजी को पत्र लिखकर क्षमा मांगी और यह दावा किया कि उनके संगठन का संपूर्ण क्रांति आंदोलन से कुछ लेना-देना नहीं है।
सेन लिखते हैं कि थोड़े समय में ही संपूर्ण क्रांति आंदोलन धराशायी हो गया। आंदोलन इतना कमजोर था कि यह महसूस होने लगा कि इससे निपटने के लिए आपातकाल लागू करने की कतई आवश्यकता नहीं थी।
इसी दरम्यान ऐसी खबरें मिलने लगीं कि सीआईए स्थिति का लाभ उठाने के उद्धेश्य से षड़यंत्र रच रहा है। इस उद्धेश्य की पूर्ति के लिए उसने संजय गांधी का सहारा लिया। संजय गांधी की गतिविधियों के कारण आपातकाल के खिलाफ माहौल बनने लगा। सीपीआई भी संजय गांधी की गतिविधियों की सूचना देती रही। केरल, जहां कम्युनिस्ट सरकार थी, ने संजय गांधी के तथाकथित पांच सूत्री कार्यक्रम पर अमल करने से इंकार कर दिया।
इस दरम्यान श्रीमती गांधी ने आपातकाल हटाने और आम चुनाव करवाने की घोषणा कर दी। चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई। सीपीआई का भी नुकसान हुआ। आश्चर्य की बात यह थी कि जहां उत्तर भारत में कांग्रेस बुरी तरह हारी वहीं दक्षिण भारत और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में कांग्रेस की जीत हुई। सेन कहते हैं कि इस विरोधाभासी स्थिति का ठीक तरह से विश्लेषण नहीं किया गया। यहां तक कि केरल में संयुक्त मोर्चा की 1972 से बेहतर जीत हुई। चुनाव के बाद देश में यह विवाद प्रारंभ हो गया कि क्या ‘‘संपूर्ण क्रांति के समर्थक वह हासिल कर पाए जो वे करना चाहते थे। वे सत्ता में तो आए गए परंतु ‘संपूर्ण क्रांति‘ के नेतृत्व रूप में नहीं। सच पूछा जाए तो वे संपूर्ण प्रतिक्रांति के रूप में जीते। इस बात से कैसे इंकार किया जा सकता है कि उन्होंने उसी व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव जीता जिसे वे नष्ट करना चाहते थे।
सेन लिखते हैं कि आपातकाल लागू करना उस षड़यंत्र को नाकाम करने के लिए आवश्यक था जो देश की लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को नष्ट करना चाहता था। वैसे तो इंदिरा गांधी ने आपातकाल की निंदा नहीं की परंतु उन्होंने यह अवश्य कहा कि वे भविष्य में कभी आपातकाल लागू नहीं करेंगीं। (संवाद)
25 जूनः आपातकाल की 47वीं बरसी
अपातकाल लगाना क्या जरूरी हो गया था?
एल. एस. हरदेनिया - 2022-06-24 12:24
जाने-माने कम्युनिस्ट नेता मोहित सेन अपनी आत्मकथा में इंदिरा गांधी के बारे में एक अत्यधिक सनसनीखेज रहस्य का उद्घाटन करते हैं। श्रीमती गांधी ने मोहित को बताया था कि अमेरिकी प्रशासन उनकी (श्रीमती गांधी की) हत्या का षड़यंत्र रच रहा था। श्रीमती गांधी ने बताया था कि प्रसिद्ध क्रांतिकारी और क्यूबा के सर्वमान्य नेता फिडेल कास्त्रो ने मुझे सावधान किया था कि मेरी हत्या का षड़यंत्र उसी तरह किया जा रहा था जैसा कि क्रांतिकारी नेता और चिली के राष्ट्रपति सलवाडोर अलेन्डे की हत्या का किया गया था। कास्त्रो ने यह चेतावनी स्वयं के स्रोतों और सोवियत संघ से प्राप्त गुप्त सूचनाओं के आधार पर दी थी। अमेरिका इंदिरा गांधी को विकासशील देशों में अपनी नीतियों को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा मानता था। अमेरिका ने चिली में सीआईए द्वारा प्रायोजित षड़यंत्र के माध्यम से अलेन्दे की हत्या करवाई थी। अलेन्दे एक प्रगतिशील नेता थे जो लातिनी अमेरिका की जनता के प्रेरणास्त्रोत थे।