जहां तक भाजपा और केंद्र सरकार का सवाल है, उनकी ओर से उद्धव ठाकरे सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें कोई नई बात नहीं है। जिस दिन से शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन की यह सरकार अस्तित्व में आई है, उसी दिन से इस सरकार को गिराने के प्रयास शुरू हो गए थे। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा देवेंद्र फड़णवीस ने एक बार नहीं, कई बार यह बात दोहराई है कि जिस दिन हमें दिल्ली से इशारा मिल गया, उस दिन हम यह सरकार गिरा देंगे।
इस दौरान केंद्र सरकार ने भी इस सरकार को अस्थिर करने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी। इस सिलसिले में उसने प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी, आयकर, सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने में भी कोई कोताही नहीं की। इसके अलावा सूबे के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी अपने स्तर पर सरकार के कामकाज में बाधा डालने और नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन दूसरी ओर शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन से बनी इस सरकार में भी हमेशा सबकुछ ठीक नहीं चला। तीनों दलों के बीच आपसी समन्वय की तो कमी तो हमेशा रही ही, तीनों दलों के भीतर भी कम खटपट नहीं रही। इसी वजह से महाविकास अघाड़ी की सरकार को अक्सर झटके लगते रहे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भले ही कई मौकों पर यह दोहराया हो कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि वे अपनी सरकार की स्थिरता को लेकर आश्वस्त होकर कभी काम नहीं कर सके।
बहरहाल सवाल है कि पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़णवीस अचानक इतने ताकतवर कैसे हो गए कि उन्होंने एक पखवाड़े के भीतर दो बार सत्तारूढ़ गठबंधन को चुनौती देकर करारी शिकस्त दे दी और अब सरकार गिरा कर खुद तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते दिख रहे हैं? दो सप्ताह पहले हुए राज्यसभा के चुनाव में भाजपा अपने संख्याबल के बूते सिर्फ दो सीटें जीतने की स्थिति में थी, लेकिन फडणवीस के कहने पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तीसरा उम्मीदवार भी खड़ा कर दिया। फड़णवीस ने सत्तारूढ़ गठबंधन में सेंध लगा कर पांच-छह अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ किया और भाजपा के तीसरे उम्मीदवार को भी जितवा दिया। शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन अपने संख्याबल के बूते चार उम्मीदवार जिताने की स्थिति में था। शिव सेना ने दो और एनसीपी व कांग्रेस ने एक-एक उम्मीदवार उतारा था, लेकिन गठबंधन की ओर से हुई क्रास वोटिंग के चलते शिव सेना के दूसरे उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा।
राज्यसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को शिकस्त देने के बाद फड़णवीस ने ऐलान किया कि वे विधान परिषद के चुनाव में महाविकास अघाड़ी को और ज्यादा बड़ा झटका देंगे। उन्होंने जो कहा, वह कर भी दिखाया। विधान परिषद के चुनाव में भाजपा चार सीटें ही जीतने की स्थिति में थी लेकिन फड़णवीस ने अपनी पार्टी से पांच उम्मीदवार खड़े करवाए और पांचवें उम्मीदवार को जिताने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन में सेंध लगा कर 20 अतिरिक्त वोटों का इंतजाम किया। जाहिर है कि महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों पार्टियों के बीच आपसी समन्वय का अभाव तो रहा ही, तीनों पार्टियों के नेतृत्व की अपने-अपने विधायकों पर भी ढीली पकड़ रही। इसके उद्धव ठाकरे अपनी सरकार को समर्थन दे रहे छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को भी अपने साथ एकजुट रखने में नाकाम रहे।
विधान परिषद के चुनाव में शिव सेना के सिर्फ तीन विधायकों ने क्रॉस वोटिग की, लेकिन उसके बाद उसके एक दर्जन से ज्यादा विधायक बागी हो गए है। बताया जाता है कि शिव सेना के बागी विधायकों ने फड़नवीस से कहा था कि वे अपने दम पर विधान परिषद की पांचवी सीट जीत कर दिखाएं तो वे उनका साथ देंगे। फड़नवीस ने शिव सेना के बागी विधायकों की मदद के बगैर पांचवीं सीट जीत ली। उन्होंने शिव सेना और कांग्रेस के तीन-तीन विधायकों के अलावा निर्दलीय व छोटी पार्टियों के करीब 15 विधायक अपने साथ जोड़ लिए, जो अब तक महाविकास अघाड़ी सरकार का समर्थन कर रहे थे। इसके बाद ही एकनाथ शिंदे और बाकी विधायकों को बगावत करने का हौसला मिला।
इसीलिए सवाल यह भी है कि इस पूरे अभियान में फड़णवीस की मदद कौन कर रहा है? जानकारों का मानना है कि शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार की परोक्ष मदद फड़णवीस को मिल रही है। प्रदेश में महाविकास अघाड़ी के पास बड़ा बहुमत है और कुछ समय पहले तक पूरी कमान सत्तारूढ़ गठबंधन के हाथ में थी। लेकिन कुछ समय पहले शरद पवार ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। उनकी उस मुलाकात को लेकर राजनीतिक हलकों में हैरानी भी जताई गई थी और उसे सवालिया निगाहों से देखा गया था, जिस पर पवार ने सफाई दी थी कि वे अपने अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ हो रही केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई और विधान परिषद में मनोनीत कोटे के सदस्यों के नाम लंबे समय से राज्यपाल के पास लंबित पड़े होने के मामले में प्रधानमंत्री से बात करने गए थे।
हालांकि पवार की इस सफाई पर कम ही लोगों ने यकीन किया था और आशंका जताई गई थी कि पवार और भाजपा के बीच कोई नई खिचड़ी पक रही है। हुआ भी यही। पवार की मोदी से उस मुलाकात के बाद ही महराष्ट्र की राजनीति में समीकरण बदलना शुरू हुए। कमान सत्तारूढ़ गठबंधन के हाथ से निकल कर फड़नवीस के हाथ में पहुंच गई है। कुछ समय पहले तक फड़नवीस अपनी पार्टी में भी अलग-थलग दिख रहे थे लेकिन अब महाराष्ट्र में बेहद ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं। उन्होंने राज्यसभा और विधान परिषद दोनों के चुनाव में अपनी पार्टी को एक-एक अतिरिक्त सीट जितवाई है। पहले राज्यसभा चुनाव में उन्होंने शिव सेना को झटका दिया और फिर विधान परिषद के चुनाव में कांग्रेस को। दोनों चुनावों में पवार की पार्टी एनसीपी को कोई नुकसान नहीं हुआ।
अब शिव सेना के अंदर जो बगावत हुई है, उसे लेकर भी माना जा रहा है कि शिव सेना के बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे को परोक्ष रूप से कहीं न कहीं शरद पवार का समर्थन भी है। हालांकि शिव सेना में यह बगावत कोई पहली बार नहीं हुई है। बाल ठाकरे के जीवनकाल में भी शिव सेना में कई बार बगावत हुई है, लेकिन पहले इक्का-दुक्का नेताओं ने ही नेतृत्व के खिलाफ सिर उठाया। इस बार बड़े पैमाने पर बगावत होना बताता है कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद उद्धव ठाकरे की हनक और पार्टी पर पकड़ कमजोर हुई है। जिसकी परिणति उनकी सरकार के पतन के रूप में होती दिख रही है। (संवाद)
महाराष्ट्र में भाजपा को किसकी मदद से मिल रही है यह ताकत?
शक की सूई शरद पवार की ओर इशारा कर रही है
अनिल जैन - 2022-06-27 12:24
महाराष्ट्र एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। उद्धव ठाकरे की अगुवाई में ढाई साल पुरानी महाविकास अघाड़ी की सरकार पर एक बार फिर संकट में है। यह संकट दो तरफा है। एक ओर जहां मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और परोक्ष रूप से केंद्र सरकार सत्ताधारी गठबंधन को तोड़ने में लगी है, वहीं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिव सेना में भी बड़े पैमाने पर विधायक बागी हो गए हैं, जिसके चलते संकट के बादल इतने गहरा गए हैं कि सरकार बचना लगभग असंभव हो गया है।