पिछले 21 मई को आल इंडिया गोरखा लीग के नेता मदन तमांग की हत्या मोर्चा के लंपटों ने कर दी थी। मदन तमांग दार्जिलिंग में एक आम सभा को संबोधित कर रहे थे। सभा में ही खुलेआम उनकी हत्या कर दी गई। तमांग की हत्या गोरखा आंदोलन के लिए एक विनाशकारी घटना है, जिसका असर पड़े बिना नहीं रह सकता।

पुलिस ने अब तक 56 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से अधिकांश गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के सदस्य हैं। हत्या में सीधें तौर पर शामिल 6 अन्य लोगों की गिरफ्तारी की कोशिश भी पुलिस कर रही है। उनके बारे में बताया जा रहा है कि वे पड़ोसी राज्य सिक्किम में छुपे हुए हें।

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिमल गुरिंग और रोशन गुरिंग कह रहे हैं कि यह उनके विरोधियों की साजिश है जो उन्हें और उनके मोर्चा को बदनाम करना चाहते हैं। वे राज्य सरकार पर उस हत्या का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि उनके आंदोलन का विभाजित करने के लिए वैसा किया गया है। यइन नेताओं द्वारा की जा रही ये बातें अप्रत्याशित नहीं हैं। उनसे इसी तरह के बयानों की उम्मीद की जा रही थी।

लेकिन इन नेताओं की बातों को उनके मोर्चा के लोग ही पचा नहीं पा रहे हैं। उनके एक नेता अनमोल प्रधान ने तो उस हत्या के विरोध में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया। एक अन्य नेता हरका बहादुर छेत्री भी मोर्चा छोड़ने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि उस हत्या ूमें मोर्चा के नेताओं के शामिल होने की बात साबित होती है, तो वे भी मोर्चा छोड़ देंगे।

हत्या के बाद मोर्चा के नेता तो भूमिगत हो गए और कार्यकर्त्ता भी अपने घरों में दुबक गए। दूसरी तरफ हत्या के खिलाफ लोगों का हुजूम सड़कों पर उमड़ पड़ा। हत्या के अगले दिन दार्जिलिंग बंद का किया गया आहवान भी पूरी तरह से स्ल रहा।

तमांग की हत्या के बाद केन्द्र और राज्य सरकार के लिए यह जॅरी हो गया है कि वह गोरखा आंदोलन से संबंधित अपनी रणनीतियों में बदलाव करे और मोर्चा के नेताओं को राजनैतिक कार्यकर्त्ता की तरह नहीं, बल्कि अपराधियों की तरह समझें और उनके साथ उसी तरह का व्यवहार हो। (संवाद)