यह हैलिकाप्टर दुश्मन के ठिकानों पर प्रक्षेपास्त्रों, बमों और राकेटों से हमला करने में सक्षम है । पहाड़ी इलाकों में भी दुश्मन के जमीनी और हवाई लक्ष्यों को नष्ट करने में भी इसे पूर्ण रूप से महारत हासिल है । यह लड़ाकू हैलिकाप्टर आड़े-तिरछे और पीछे की ओर तेजी से उड़ान भर कर दुश्मन पर निशाना लगा सकता है । यह आतंकवादियों और उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिये पूर्ण रूप से उपयुक्त है। आवश्यकता पड़ने पर इसे शहरी इलाकों में भी आतंकवादियों के खिलाफ तैनात किया जा सकता है । रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार टैंकों की लड़ाई में भी इसे दुश्मन के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है ।

इस हल्के लड़ाकू हैलिकाप्टर (एलसीएच) का विकास भारत की प्रमुख विमान निर्माण कंपनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने किया है । हैलिकाप्टर के पहली उड़ान भरने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मौजूदा वायुसेना के चीफ एयर वाइस मार्शल पी के बारबोरा ने इस लड़ाकू हैलिकॉप्टर की क्षमताओं और देश की रक्षा में इसकी उपयोगिता पर पूरा भरोसा जताया । इस अवसर पर बताया गया कि 5.8 टन वजन वाला यह हैलिकाप्टर साढे़ छ किलोमीटर की ऊंचाई से पर्वतीय क्षेत्रों में लक्ष्य पर निशाना लगाने में सक्षम है । लगभग 270 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से यह अधिकतम 550 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है । इसमें हवा से हवा और हवा से जमीन पर वार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों से लैस अनेक प्रकार के अन्य आधुनिक हथियार और बम भी तैनात होंगे ।

हल्के लड़ाकू हैलिकाप्टर के निर्माण की योजना 2006 में बनी थी । लगभग तीन अरब 76 करोड़ रूपये की लागत से 40 महीने में बने इस हैलिकाप्टर के निर्माण में किसी तरह की विदेशी सहायता नहीं ली गई है । वायुसेना ने एचएएल को 64 हैलिकाप्टर बनाने का आदेश दिया है, जिनकी डिलीवरी 2014 में शुरू होने की संभावना है । भारतीय थलसेना भी 114 हल्के लड़ाकू हैलिकाप्टर खरीदेगी । एचएएल के ध्रुव हैलिकॉप्टर के आधारस्थल (बेस) पर निर्मित इस हल्के लड़ाकू हैलिकॉप्टर में आधुनिकतम इलेक्ट्रानिक एवं राडार प्रशालियां लगी हैं जो 6 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन के ठिकानों को पहचानकर पायलट को आक्रमण का निर्देश देती हैं । यह दुश्मन के प्रक्षेपास्त्रों को हवा में ही नष्ट कर सकता है । दुश्मन के हमले को नाकाम करने के लिये स्वचालित प्रतिरोध प्रणालियां भी इसमें लगायी गई हैं । नाइट विजन (रात में देखने में समर्थ) उपकरणों से लैस यह हैलिकॉप्टर रात में भी दुश्मन पर कहर बरपा सकता है ।

रक्षा सूत्रों के अनुसार भारतीय सेनाओं से हल्के लड़ाकू हैलिकॉप्टरों का आर्डर मिलने से एचएएल का मनोबल और उत्साह बढा़ है । वायुसेना के पास फिलहाल रूस में बना एमआई-25 और एमआई -35 लड़ाकू हैलिकाप्टरों का बेड़ा है । लेकिन इन हैलिकॉप्टरों का वजन कुछ भारी है और वे ऊंचाई वाले पर्वतीय सैन्य अभियानों में अधिक कारगर नहीं होते । थलसेना की विमानन शाखा को भी ऐसे हल्के लड़ाकू हैलिकाप्टरों की जरूरत कई वर्षों से महसूस हो रही थी ।

हल्के लड़ाकू हैलिकॉप्टर की पहली उड़ान देखने के बाद एयर मार्शल बारबोरा ने कहा कि यह न सिर्फ एचएएल के लिये ऐतिहासिक दिन है बल्कि पूरे देश के लिये गौरव की बात है । उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह हैलिकॉप्टर भारतीय वायुसेना की हर जरूरत को पूरा करने में सक्षम होगा । उन्होंने कहा कि ऐसे बहुत कम देश हैं जिनके पास अपने देश में निर्मित इस श्रेणी के हैलिकॉप्टर के निर्माण की क्षमता है । एलसीएच के स्वदेशी स्तर पर विकास के रणनीतिक और आर्थिक कारणों पर प्रकाश डालते हुए एयर मार्शल बारबोरा ने कहा कि किसी भी स्वाभिमानी देश के लिये यह जरूरी है कि वह रक्षा सामग्रियों के मामले में आत्मनिर्भर हो । उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह हैलिकॉप्टर शीघ्र ही वायुसेना में शामिल होगा । इस अवसर पर मौजूदा रक्षा उत्पादन सचिव आर के सिंह ने कहा कि विकसित देशों की तुलना में एचएएल ने कम समय में इस हैलिकॉप्टर का निर्माण कर दुनिया को दिखा दिया है कि भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता को कम करके नहीं आंका जा सकता ।