पूर्वोत्तर भारत के मीडिया ने कुछ दिनों पहले असम के कोकराझार से दो केएलओ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की सूचना दी थी। कथित तौर पर वे अपनी जबरन वसूली से संबंधित गतिविधियों को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस से शिकायत करने वाले एक स्थानीय व्यवसायी से पैसे मांगे थे। रिपोर्टों से यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कार्यकर्ता प्रस्तावित कामतापुर राज्य की ओर से केएलओ की पुरानी मांग के अनुसार धन एकत्र कर रहे थे या अपने दम पर काम कर रहे थे। आंतरिक विभाजन की रिपोर्ट और इसके कुछ कैडरों के अन्य समूहों में स्थानांतरित होने के बावजूद, केएलओ ने अभी तक पूरी तरह से काम करना बंद नहीं किया है।
सूत्रों ने कहा कि आदिवासी बोडोलैंड स्वायत्त क्षेत्र के एक प्रमुख वाणिज्यिक / प्रशासनिक केंद्र कोकराझार शहर का चुनाव महत्वपूर्ण था। संभवत: केएलओ के कार्यकर्ताओं ने जातीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में बहुसंख्यक असमिया और अल्पसंख्यक बोडो जनजाति के लोगों के बीच पारंपरिक अविश्वास का फायदा उठाने की कोशिश की।
चाहे असम हो या उत्तर बंगाल, आम धारणा यह है कि हाल के वर्षों में केएलओ अल्फा के साथ एक गंभीर अलगाववादी संगठन नहीं रह गया है। कुछ समय पहले इसके पूर्व नेता अतुल रॉय की कोविड से मौत ने कैडर के मनोबल को प्रभावित किया था। हालांकि, केएलओ द्वारा हाल ही में जारी एक वीडियो में स्पष्ट रूप से एक स्वतंत्र राज्य की मांग का आह्वान नये सिरे से करते हुए केएलओ को दिखाया गया है। यह सोशल मीडिया में वायरल हो गया लेकिन स्थापित राजनीतिक दलों से ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं मिली।
इसमें केएलओ ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जोरदार हमला किया, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के विभाजन की सभी मांगों का कड़ा विरोध किया है, चाहे वह गोरखाओं द्वारा या अन्य जातीय समूहों द्वारा उठायी गयी हो। केएलओ ने मुख्यमंत्री को 1947 में कूचबिहार की 'स्वतंत्र' स्थिति की याद दिलाई जब भारत का विभाजन हो रहा था। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कभी पश्चिम बंगाल का हिस्सा नहीं बना।
जो भी हो, सुरक्षा विश्लेषकों ने केएलओ के बयान के एक हिस्से को नजरअंदाज नहीं किया, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि उनके संगठन ने अब ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) के साथ अपने वैचारिक मतभेदों को सुलझा लिया है। अब मध्य/उत्तरी बंगाल और दक्षिणी असम के मौजूदा जिलों से अलग कूचबिहार राज्य के निर्माण के लिए आंदोलन, पूरे क्षेत्र के प्रमुख जातीय समूह — राजबंशियों के पूर्ण समर्थन के साथ फिर से शुरू किया जायेगा।
असम में राजनीतिक नेताओं/पार्टियों ने केएलओ के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की, परन्तुउन्होंने उत्तर बंगाल के अनुभवी नेता श्री अनंत रे द्वारा व्यक्त विचारों को अधिक गंभीरता से लिया। हाल ही में केएलओ प्रमुख के बारे में अपने स्तर पर बोलते हुए, जीसीपीए नेता, जो अन्यों की तुलना में अधिक अनुयायियों के लिए जाने जाते हैं, ने एक अलग कूचबिहार राज्य के आह्वान का फिर से समर्थन किया। उन्होंने केएलओ का जिक्र नहीं किया।
हालांकि, पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह कोई संयोग नहीं हो सकता है कि दो गैर-मुख्यधारा के राजनीतिक नेता बिना पूर्व समन्वय के लगभग एक ही समय में अपनी समान आदिवासी वफादारी और मांगों पर जोर देते हैं।
इसका सुबूत असम के नेताओं और समूहों के कूचबिहार राज्य की मांग को अस्वीकृत करने के रूप में मिला। सोशल मीडिया पर वीडियो और संदेशोंके व्यापक प्रचार मेंउन्होंने श्री रे को उत्तर बंगाल में स्थित एक स्वयंभू नेता के रूप में खारिज कर दिया।इसका निहितार्थ है कि उन्हें असम में ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है।
हालांकि, अन्य स्रोतों ने श्री रे के विचारों और दावों को अधिक पेचीदा पाया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह को संवेदनशील असम-उत्तर बंगाल सीमावर्ती क्षेत्रों और आस-पास के जिलों में मौजूदा जातीय/आदिवासी भावनाओं से पूरी तरह अवगत कराया गया है। उन्होंने दावा किया कि श्री शाह ने लंबे समय से लंबित राजबंशी राजनीतिक मांगों पर हाशिये पर धकेले गये समुदाय के रूप में सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का वायदा किया था।
असम के राजनेताओं ने श्री रे की टिप्पणियों के इस हिस्से पर कोई टिप्पणी नहीं की। हालांकि, कूचबिहार स्थित पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता उदयन गुहा की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई।केएलओ प्रमुख पर उनके विचारों के लिए जोरदार हमला करते हुए गुहा, जिन्हें अक्सर उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा स्थानीय 'बाहुबली' के रूप में वर्णित किया जाता है, ने कहा कि सिंघा जैसे लोगों को उत्तर बंगाल या अन्य जगहों पर बिल्कुल भी समर्थन नहीं मिल रहा है। यदि उन्होंने या उनके अनुयायियों ने अशांति पैदा करने की कोशिश की, तो राज्य सरकार और आम लोग उन्हें निर्णायक रूप से 'कुचल' देंगे।
सिंघा ने जवाब में कहा कि गुहा राजबंशी बहुल इलाके में एक 'बाहरी' थे और केवल आदिवासी अनुमति ने ही उन्हें कूचबिहार में बसने में सक्षम बनाया था। गुहा ने जवाब दिया कि वह चार पीढ़ियों से जिले में रह रहे हैं और उन्हें किसी के पुष्टिकरण या प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं है।
वर्तमान संकेत बताते हैं कि जातीयता-आधारित राजनीति के तनाव और आंदोलन से उत्तर बंगाल और असम क्षेत्र अभी मुक्त नहीं हुआ है।
फिर, चाहे असम में हो या पश्चिम बंगाल, वहां कोई भी राजनीतिक नेता वर्तमान स्थिति में भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की भूमिका के बारे में निश्चित रूप से नहीं बोल सकता। जहां एक ओर भाजपा पहले से ही प्रभावी शासन के आधार पर छोटे राज्यों के गठन का समर्थन करती है, इसने कभी भी अलग गोरखालैंड की मांग का खुलेआम समर्थन नहीं किया है और न असम और पश्चिम बंगाल से अलग कूचबिहार राज्य का।
हालांकि, भाजपा प्रदेश इकाई ने पश्चिम बंगाल के भीतर एक अलग उत्तर बंगाल राज्य के विचार को अपनी सामान्य स्वीकृति दे दी है, जिससे सत्तारूढ़ टीएमसी खीज गयी है।नये कूचबिहार राज्य में पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद, दिनाजपुर, दार्जिलिंग और अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ गोलपारा, धुबरी, बोंगाईगांव, बोडोलैंड, चिरांग और असम के अन्य क्षेत्रों के कुछ हिस्से शामिल होंगे। पर्यवेक्षकों के अनुसार, पिछली शताब्दियों के दौरान अलग-अलग समय में, कूचबिहार एक स्वतंत्र राज था और इसने इनमें से अनेक क्षेत्रों पर शासन किया था। (संवाद)
बंगाल के जनजातीय क्षेत्र में फिर उठी अलग राज्य की मांग
तृणमूल कांग्रेस को भाजपा के समर्थन का संदेह
आशीष बिस्वास - 2022-09-30 10:51
जब से प्रतिबंधित कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (केएलओ) के भूमिगत नेता जीबन सिंघा ने एक अलग राज्य के आह्वान को दोहराया है, तब से असम और उत्तर बंगाल में इसके कार्यकर्ताओं कीगतिविधियां फिर से शुरू होने लगी हैं।