लेकिन कांग्रेस में स्पष्ट गेम प्लान देखा जा सकता है। गांधी परिवार अब पार्टी में कोई पद धारण किए बिना और बिना किसी जवाबदेही के निर्णय लेने वाले होंगे। सोनिया गांधी राजमाता बनेंगी, और प्रियंका एक और शक्ति केंद्र होंगी। लेकिन राहुल के पास रिमोट होगा।
जैसा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने एक साक्षात्कार में कहा है, "कांग्रेस अध्यक्ष हों या न हों, राहुल का पार्टी में हमेशा एक प्रमुख स्थान रहेगा।"
उन्होंने 1921 और 1948 के बीच कांग्रेस की स्थिति को समझाते इस बारीकी को स्पष्ट किया है, जबमहात्मा गांधी कांग्रेस के स्वीकृत नेता थे, और बाद में, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी। "कांग्रेस के इतिहास में ऐसे समय रहे हैं जब नेता और अध्यक्ष एक ही लोग थे और लंबे समय से नेता और अध्यक्ष अलग-अलग व्यक्ति भी थे। अगर राहुल गांधी चुने जाते हैं, तो वह नेता और अध्यक्ष दोनों होंगे, लेकिन यदि नहीं, तो वह पार्टी के स्वीकृत नेता बने रहेंगे।"
कांग्रेस ने जहां 22 साल बाद अध्यक्ष पद के लिए संगठनात्मक चुनाव के अपने दरवाजे खोले हैं, वहीं अब मुकाबला 80 वर्षीय गांधी के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे और 66 वर्षीय शशि थरूर के बीच है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखने वाले खड़गे के पास आखिरकार पार्टी का नेतृत्व करने का मौका है।
नेहरू-गांधी परिवार से बाहर कांग्रेस पार्टी के कम से कम 13 अध्यक्ष रह चुके हैं। इनमें जेबी कृपलानी, बी पट्टाभि सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, यूएन ढेबर, एन संजीव रेड्डी, के कामराज, एस निजलिंगप्पा, जगजीवन राम, शंकर दयाल शर्मा, डी.के. बरुआ, के बी रेड्डी, पी वी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी। यह डी.के.बरूआ थे जिन्होंने प्रसिद्ध रूप से कहा था, “इंदिरा भारत है और भारत इंदिरा।”
कांग्रेस पार्टी में भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कोई नयी बात नहीं है। यह 1950 की बात है जब टंडन और कृपलानी ने चुनाव लड़ा था और सरदार वल्लभभाई पटेल के वफादार टंडन ने प्रधानमंत्री नेहरू की पसंद को पछाड़ते हुए प्रतियोगिता जीती थी।
कांग्रेस ने आखिरी बार 2000 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराया था जब दिवंगत जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को चुनौती दी थी। जैसी कि उम्मीद थी, उन्होंने जितेंद्र प्रसाद को 7448 मतों के मुकाबले आसानी से हरा दिया, क्योंकि जितेन्द्र प्रसाद के मात्र 94 मत मिल पाये थे।
राहुल के उदय की घटना एक पार्टी के लिए एक बोझ बन गयी है क्योंकि वह वोट आकर्षित करने वाले नेता नहीं हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस पार्टी में सबसे महत्वपूर्ण नियुक्तियां और फैसले राहुल ने ही किये हैं। बेशक, ये सभी जिम्मेदारी के बिना हैं।
जैसा कि गांधी परिवार ने एक वफादार को उम्मीदवार के रूप में तय किया था, मुसीबत अप्रत्याशित कोने से आयी है। यह उस व्यक्ति से था जिसे सोनिया गांधी ने अपना पद संभालने के लिए प्रेरित किया था और वे हैं - राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।
नाटकीय रूप सेराजस्थान में लगभग 90 कांग्रेस विधायकों ने पार्टी के आलाकमान को चौंकाते हुए अध्यक्ष को अपने त्याग पत्र दे दिये। गहलोत मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख बने रहना चाहते थे, जबकि गांधी परिवार 'एक आदमी–एक पद' की अवधारणा पर जोर देते थे। सोनिया ने गहलोत को बुलायाजिसके बाद मुख्यमंत्री पीछे हट गये। फिर एक डमी अध्यक्ष की तलाश शुरू हुईऔर राज्यसभा में पार्टी के नेता खड़गे इसमें उपयुक्त लगे।
राहुल गांधी ने इस महीने 3500 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा शुरू की। राहुल का जवाब है, "कांग्रेस पार्टी ने देश भर में पदयात्रा करने का फैसला किया है। मैं कांग्रेस पार्टी का सदस्य हूं, और कांग्रेस पार्टी के सदस्य और कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से सहमत व्यक्ति के रूप में, मैं इस यात्रा में भाग ले रहा हूं। मुझे इस यात्रा में भाग लेने में कोई विरोधाभास नहीं दिखता है।"
एक गैर-गांधी पार्टी प्रमुख अपने कामकाज के आधार पर कांग्रेस के लिए एक संपत्ति भी साबित हो सकते हैं और एक बोझ भी। वे बिना सामान के आते हैं। वे संपत्ति बन जाते हैं यदि वे पार्टी और गांधी परिवार के बीच गोंद बने रहें, न कि केवल रबर स्टैंप। नये कांग्रेस अध्यक्ष को भी वोट आपर्षित करने वाला होना चाहिए और पार्टी को एकजुट करने में सक्षम होना चाहिए। उसे प्रतिभा को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा, आंतरिक गुटबाजी और विद्रोह को रोकना और सभी को साथ ले जाना मुश्किल होगा यदि उसके पास स्वतंत्रता नहीं है।
अगले कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ में एक अविश्वसनीय कार्य होगा - एक तरफ आलाकमान से अच्छे संबंध बनाये रखना और दूसरी तरफ गिरते पार्टी संगठन को फिर से जीवंत करना। नये अध्यक्ष गांधी परिवार के रडार पर रहेगा।नये कांग्रेस अध्यक्ष को राहुल की सलाह है, "आप विचारों के एक समूह, एक विश्वास प्रणाली और भारत के एक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विस्तार से कहा - हमने उदयपुर में जो फैसला किया, हम उम्मीद करते हैं कि प्रतिबद्धता को बनाये रखा जाएगा, जिसका अर्थ है ‘एक आदमी, एक पद' की अवधारणा।”राजनीतिक नेतृत्व हमेशा गांधी परिवार के साथ रहा है, और यहां तक कि गैर-गांधी अध्यक्ष भी उनके प्रति निष्ठावान रहे हैं। तो, जो स्पष्ट है वह यह कि चाहे निर्वाचित हों या नहीं, गांधी परिवार हावी रहेगा। (संवाद)
राहुल गांधी कांग्रेस की धुरी बने रहेंगे चाहे अध्यक्ष कोई हो
नये अध्यक्ष के लिए चुनाव के पहले कठिन होगा कांग्रेस नेताओं को एकजुट करना
कल्याणी शंकर - 2022-10-06 16:02
अब जब कांग्रेस पार्टी के पास एक गैर-गांधी प्रमुख होगा, तो तीनों गांधी- सोनिया, राहुल और प्रियंका का क्या होगा? क्या उनका दबदबा बना रहेगा? जब एक पत्रकार ने उनकी भविष्य की भूमिका के बारे में पूछा, तो सोनिया ने कहा, "बेशक, मुझे लगता हैआपको पार्टी से पूछना होगा।"