आज परिदृश्य काफी बदल गया है। पिछले दस वर्षों में, विशेष रूप से, तेजी से प्रगति हुई है। अब हम एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और एक विशाल, युवा आबादी के साथ धन्य हैं जो अपेक्षाकृत स्वस्थ है। परन्तु कोविड-19 महामारी ने दुनिया की बड़ी समस्याओं से निपटने की हमारी क्षमता को धीमा कर दिया है। अच्छे नेतृत्व और सक्रिय सामुदायिक भागीदारी के साथ, हम पीपीई, वेंटिलेटर और रिक्तियों के मामले में आत्मनिर्भर बने, फिर भी जब भारत की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे तब लोगों को कोविड के बुरे सपने देखने को मिल सकते हैं।

अब नई चुनौतियां हमारा इंतजार कर रही हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन, लोगों की बढ़ती आकांक्षा, संसाधनों तक असमान पहुंच और सबसे बड़ी चुनौती स्वास्थ्य भी शामिल है। भारत को गैर-संक्रमणकारी रोगों, जैसेकैंसर और पक्षाघात के कारण होने वाली मौतों, की राजधानी होने का अनुमान है। वर्तमान में 1.35 अरब की विशाल आबादी, अपेक्षाकृत अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और अमीरों और वंचितों को अलग करने वाली गहरी दरार के साथ जुड़ी होने के कारण चुनौतियां बहुत अधिक हैं। यह स्पष्ट है कि अजादी के 100वें वर्ष तक भारतके उन सभी संकटों सेमानवीयढंग से कुशलतापूर्वक और पर्याप्त रूप से सफलतापूर्वक निपटने के लिए तथा देश को स्वास्थ्य के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बनाने के लिए एक क्रांति की आवश्यकता है।

यदि भारत इस दिशा में अभी से कार्य नहीं करेगा तोअगले 25 वर्षों में स्वास्थ्य सूचकांकों में बड़ा दुखद बदलाव देखने को मिलेगा। ऐसा न हो इसके लिए हमें एक समाज और एक राज्य व्यवस्था के रूप में साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। मेडिकल कॉलेजों के विभाग, प्रयोगशालाओं में जीवन विज्ञान अनुसंधान, और सरकारी अस्पतालों में सार्वजनिक स्वास्थ्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति2020, के तहत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और सबसे महत्वपूर्ण रूप से केंद्र और राज्य के साथ तालमेल में उचित लिंकेज के साथ एकीकृत सहयोग की आवश्यकता होगी। तभी जाकर भारत की आजादी के 100वें वर्ष तक स्वास्थ्य की यह संपूर्ण मशीनरी सुचारू रूप चल पायेगी।

चिकित्सा शिक्षा आज अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं मेडिकल, नर्सिंग एवं आयुष कॉलेजों का तेजी से बढ़ना परन्तु समर्पित फैकल्टी सदस्य (शिक्षकों) की अनुपलब्धता। हम डिजिटल तकनीक का उपयोग करके इन कमियों को दूर कर सकते हैं ताकि अगम्य छात्रों तक जल्दी और प्रभावी ढंग से पहुंचा जा सके। हम एकीकृत पाठ्यक्रमों के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा को भारत की स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतों के साथ जोड़ सकते हैं और प्राथमिकता के आधार पर पैरा-मेडिकल और नर्सिंग कर्मियों की एक बड़ी और बेहतर फौज तैयार कर सकते हैं। प्रशिक्षित मानव संसाधनों को पर्याप्त मेहनताना देकर कार्यबल में समाहित करना भी महत्वपूर्ण है।

छात्रों की आकांक्षाओं को नवीन समाधानों के साथ पूरा करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, जिला आवासीय कार्यक्रम का विस्तार किया जा सकता है ताकि सार्वजनिक अस्पतालों से सहायक संकाय के साथ जिला पीजी कार्यक्रम प्रदान किया जा सके। यह देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करेगा और छात्रों की आकांक्षाओं को भी पूरा करेगा। साथ ही, इससे फैकल्टी पूल और विश्वविद्यालय अतिरिक्त सहायक फैकल्टी को प्रशिक्षण देंगे। विभिन्न विश्वविद्यालयों के तहत शिक्षण प्रबंधन प्रणाली देश भर के छात्रों को समान अवसर प्रदान कर सकती है। छात्रों को अपने समय और गति से ज्ञान तक पहुंच प्राप्त होगी। एक बड़ी आबादी में जुड़वां, संयुक्त डिग्री या दोहरी डिग्री कार्यक्रमों के लिए अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग एक बड़ा अवसर है जो आज उपलब्ध है।

भारत अपनी विशाल युवा आबादी के साथ दुनिया को स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों का प्रदाता बन सकता है। एक और बदलाव जो मैं देख रहा हूं वह है इंजीनियरिंग और चिकित्सा के बीच की रेखा का धुंधलापन। जबकि इंजीनियरिंग और विज्ञान संस्थान मेडिकल कॉलेज स्थापित कर रहे हैं, जिन्हें पोषण करने में अधिक समय लगता है, चिकित्सा विश्वविद्यालय नवाचार में सुधार करने और समाधान खोजने के लिए कम समय में बेंच के अलावा समस्याओं को लाने के लिए डिजाइन स्कूलों से डेटा विज्ञान, कंप्यूटिंग टूल और इनपुट का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार आजादी के 100 वर्ष पूरा होते होते भारत एक ही छत के नीचे कई डिग्रियां प्रदान कर सकता है। (संवाद)