दोनों में बहूत समानताएं हैं। दोनो संगठन बंदूक की ताकत पर सत्ता को हथियाने का सपना देखते हैं। दोनों लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और एक पार्टी का राज चाहतें हैं। माओवादियों का दर्शन मार्क्सवाद, लेनिनवाद और माआ के विचार हैं, तो तालिबान इस्लामी शायन चाहता है। माओवादियों और तालिबान के बीच ये समानजा तो पहले से ही दिखाई दे रही थी, लेकिन वे तालिबान की तरह आंखें मूंदकर नागरिकों को अपने आतंक का निशाना नहीं बनाते थे। पर अब वे वह भी करने लगे है। इसके कारण दोनों के बीच समानता और भी बढ़ गई है।

दोनों में एक समानता यह भी है कि दोनों अमेरिका के विरोघी हैं। दोनों वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध करते हैं। दोनों के समर्थक आधार में भी समानता है। माओवादियों और तालिबान दोनों को अपने अपने इलाके में आम लोगों का समर्थन हासिल है। कुछ बौद्धिक लोग भी उनका समर्थन करते हैं। बौद्धिकों का समर्थन उन्हें इसलिए मिल रहा है, क्योंकि वे दोनों अमेरिका का विरोध करतें हैं।

भारत के माओवादी किस तरह से स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल करते हैं, इसके बारें में कोई निश्चित राय नहीं है। यह पता नहीं चल रहा है कि उनका समर्थन लोग उनकी विचारधारा के कारण कर रहे हैं अथवा उनके डर से कर रहे हैं। उनका आधार उन दूरदराज जंगली इलाकों में है, जहां प्रशासन की पहु्रच कम है। वे शहरी इलाकों से दूर रहते हैं, क्योंकि वे इन इलाको में पुलिस के हाथ आसानी से आ सकते हैं।

पाकिस्तान में भी तालिबान दूर दराज इलाकों में ही अपना अड्डा बनकार रखतें है। भारत के माओवादियों की तरह उन्होंने भी आदिवासी इलाकों में ही अपना मुख्य आधार बना रखा है, जहां पुलिस की पहु्रच आसान नहीं होती। उनके बारे में भी यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उनका समर्थन लाग उनकी विचारधारा के कारण कर रहे हैं अथवा उनके डर के कारण।

पकिस्तान में दो आतंकवादी संगठन हैं। एक संगठन तो तालिबान है, जबकि दूसरा लश्कर ए तैय्यब है। तालिबान के खिलाफ तो पाकिस्तान सरकार लड़ रही है, लेकिन लश्कर के खिलाफ वह कार्रवाई नहीं करती। उसके बारे में कहा जाता है कि वह पाकिस्तान सरकार की ही उपज है और वह सिर्फ भारत के खिलाफ काम करने के लिए तैयार किया गया है। तालिबान को भी कभी परकिस्तान का समर्थन हासिल था, लेकिन अब वह उसके हाथ से निकल चुका है।

भारत में माओवादियों ने दूरदराज इलाको में इसलिए पकड़ बनाई है, क्यांेकि वहा प्रशासन से लोग खुश नहीं हैं। प्रशासन भ्रष्ट है और उनके द्वारा जनता को प्रताड़ित किया जाता है। वे लोगांे को न्याय नहीं दिला पाते। लोगांे के लिए की जा रही जन कल्याणकारी कार्यक्रमों को वे सफल नहीं हाने दे रहे हैं और वे उन कार्यक्रमों के पैसों को लूट रहे हैं।

इसके कारण ही उन इलाकों में माओवादी फैल रहे हैं। प्रशासन में बैठे लोगों से माआवादी ही बेहतर दिखाई देते हैं इसलिए अपनी समस्याओ के समाधान के लिए चे माओवादियों की शरण में जाते हैं, पुलिस की शरण में नहीं। 1970 के दशक के शुरुआत और 1960 के दशक के अंतिम सालों में माओवादी नक्सलवादी के रूप में जाने जाते थे। उस समय तो प्रशासन ने उनका दमन कर दिया था, लेकिन उससे सीख लेकर उन्होंने अब शहरों को अपना केन्द्र बनाना छोड दिया है।

यह सच है कि अभाव और भ्रष्टाचार के कारण माओवाद की समस्या पैदा हुई है, लेकिन राज्य को इसका सामना तो करना ही होगा। जिस तरह से माओवाद का विस्तार हो रहा है, उससे तो देश में अराजकता फेलने ेका डर दिखाई लगने लगा है। कोई भी सरकार अराजकता फेलने नहीं दे सकती। (संवाद)