लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष के रूप में चुनाव से कांग्रेस में वैचारिक लड़ाई का नया दौर देखने को मिलेगा। इस चुनाव में पार्टी ने वाममार्गी तत्वों जिसमें परिवर्तन के पक्षधर उदारवादी नेता शामिल थे तथा दक्षिणमार्गी नेताओं के बीच लड़ाई देखी।युवा तुर्कों के दिनों में, वामपंथी उन्मुख नेताओं की एक मजबूत पकड़ थी क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व को उदार और मध्यमार्गी तत्वों के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए उनकी आवश्यकता थी। इस चुनाव से पहले, पार्टी के दो चुनाव हुए -एक 1997 में और दूसरा 2000 में। लेकिन इन दोनों चुनावों का कोई वैचारिक झुकाव नहीं था। वे चुनाव व्यक्तित्व संघर्ष की प्रकृति के अधिक थे।

इस बार का नजारा काफी अलग रहा। हिंदुत्व और अति-राष्ट्रवाद की भाजपा की राजनीति के कारण समाप्त हो जाने के खतरे से जूझती कांग्रेसनेतृत्व के लिए स्वयंभू वामपंथी उन्मुख राजनीति में झांकना अनिवार्य हो गया है। पार्टी नेतृत्व को यह अहसास हो गया है कि नरम हिंदुत्व की राजनीति पर चलनास्वयं को पराजित करना तथा विनाशकारी साबित होगा।

इस चुनाव की एक विशेषता काफी महत्वपूर्ण रही है। जी-23 समूह, जो पार्टी के भीतर असहमति की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है, मल्लिकार्जुन के पीछे लामबंद हो गया है।शशि थरूर को1072 मत मिले जो इस बात के संकेत है कि जिला स्तर तक के सदस्य और नेता पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन चाहते हैं।

उम्मीद की जा रही है कि अनुभवी मल्लिकार्जुन खड़गे आम सहमति की राजनीति करेंगे, परन्तु थरूर को मत देने वाले सबकुछ चुपचाप मानकर शांत नहीं बैठने वाले। इसलिए खड़गे को गुटीय प्रभावों से ऊपर उठने और निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने की उनकी क्षमता से आंका जायेगा। एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि कांग्रेस सदस्य, खड़गे या थरूर के प्रति अपनी वफादारी के बावजूद, गांधी परिवार के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह गलत धारणा है कि थरूर गांधी परिवार के विरोधी रहे हैं।

इस बीच के घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है - नरेंद्र मोदी का खड़गे को जीत के लिए बधाई देना और दूसरा भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय का थरूर की हार पर दुख व्यक्त करना। इनके अशुभ उद्देश्य हैं। यह थरूर के मामले में अधिक महत्वपूर्ण है। भाजपा ने यह बताने की कोशिश की कि परिवर्तन की ताकतों को हराने के लिए गांधी समर्थक ताकतों के एक साथ आने के लिए खेद है। अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा ने यह संदेश दिया कि कांग्रेस अभी भी गांधी परिवार के अंगूठे के नीचे है। यह खड़गे को बदनाम करने और कांग्रेस को नीचा दिखाने का एक अपमानजनक प्रयास है। भाजपा घबड़ाई हुई है जो अमित मालवीय के बयान से स्पष्ट है।

संभवतः यदि राहुल गांधी की भारत जोड़ी यात्रा को लोगों का जोरदार समर्थन नहीं मिलता तो शायद ये दोनों संदेश नहीं आते। भाजपा दर्शकों की इस भारी संख्या को कांग्रेस के पुनरुद्धार की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देख रही है। दो संदेश लोगों के बीच भ्रम पैदा करने के लिए निर्देशित हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के पुनर्गठन और संसदीय बोर्ड के पुनरुद्धार के लिए मल्लिकार्जुन का पहला कदम यह तय करेगा कि पार्टी दक्षिणपंथी ताकतों का मुकाबला करने के लिए किस राजनीतिक दिशा को अपनायेगी। मल्लिकार्जुन ने अपने चुनाव के ठीक बाद अपनी प्राथमिकता यह कहते हुए व्यक्त की कि उनका पहला काम फासीवादी ताकतों से लड़ना होगा।

खड़गे के लिए यह काम काफी कठिन है। लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में, जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं तक पहुंचना उनके बीच विश्वास पैदा करने का सबसे अच्छा तरीका है। खड़गे को क्षेत्रीय नेताओं को बढ़ावा देना चाहिए और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। थरूर, जो सीडब्ल्यूसी के सदस्य नहीं थे, जाहिर तौर पर अब सर्वोच्च नीति-निर्माण निकाय में शामिल होने के इच्छुक होंगे। लेकिन उनके लिए यह काम इतना आसान नहीं होगा क्योंकि समान अवसर के अभाव और चुनाव में धांधली के आरोप लगाकर उन्होंने नेताओं के एक बड़े वर्ग का विरोध अर्जित किया है। थरूर के कट्टर समर्थकों ने अवज्ञा की मुद्रा अपनायी और यह धारणा दी कि वे यथास्थितिवादी ताकतों से लड़ रहे हैं जो पार्टी के पतन के लिए जिम्मेदार हैं।

कांग्रेस के नये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 24 साल बाद पद संभालने वाले पहले गैर-गांधी होंगे। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि वह एक दलित होने के नाते, दलितों को कांग्रेस की ओर लाने में सफल होंगे। परन्तु इसके लिए उन्हें यथास्थितिवादी होने की अपनी छवि को तोड़ना होगा। उन्हें भाजपा के खिलाफ एक जोरदार वैचारिक लड़ाई शुरू करनी होगी।

आगे की राजनीतिक लड़ाई हिंदुत्व की राजनीति का प्रचार करने वाली ताकतों और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के बीच होने वाली है, जो समय बीतते के साथ और कड़ी होती जायेगी। सत्ता जुनूनी नेताओं, जिनके एक कदम पार्टी के बाहर ही होते हैं, से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे हिंदुत्ववादी ताकतों से जोरदार मुकाबला करेंगे। समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को भाजपा की साज़िश का कोई जवाबी बयान देना होगा। यह भी सर्वविदित तथ्य है कि विपक्ष की राजनीति का पुनरुद्धार कांग्रेस के कंधों पर है। एक मजबूत विपक्ष लोकतंत्र को जीवित रहने और उसकी खोई हुई महिमा को पुनः प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
पार्टी को पुनर्जीवित करने के मिशन का नेतृत्व कर रहे राहुल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह खड़गे के इशारे पर और उनके द्वारा सौंपे गये कार्य को पूरा करेंगे। यह खड़गे के लिए बहुत बड़ी राहत है। दक्षिणपंथी पैंतरेबाज़ी की बुराई से लड़ने के लिए राहुल का अभियान की अगुवाई करना खड़गे के लिए वरदान साबित होगा। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि उनका काम दक्षिणपंथी ताकतों के हमले को रोकना और देश की बुनियादी वैचारिक और राजनीतिक संरचना और लोकाचार को बनाए रखना है।

अक्सर कहा जाता है कि राहुल को यात्रा छोड़कर गुजरात चुनाव पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन यह राजनीति की किशोर समझ है। गुजरात चुनाव के नतीजों का पार्टी के भविष्य पर अस्थायी असर पड़ सकता है। परन्तु यात्रा पूरे देश में जमीनी स्तर पर कांग्रेस को पुनर्जीवित करेगी। कांग्रेस और गांधी परिवार के कट्टर विरोधियों की भागीदारी और यात्रा में ग्रामीण लोगों की भारी भागीदारी, आरएसएस और भाजपा के शासन के प्रति लोगों की हताशा की अभिव्यक्ति है।खड़गे का कार्य राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी की भूमिका और आवाज को बनाये रखना और पार्टी के भविष्य को आकार देना है। उन्हें नेताओं की नई पीढ़ी के निर्माण का कार्य भी करना है। अधिकांश नेताओं के पार्टी छोड़ने और भाजपा में जाने के साथ, जमीनी स्तर पर एक बड़ा खालीपन है। 2019 की चुनावी हार के बाद राहुल गांधी के पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने के बाद, पार्टी अनिश्चितता की भावना से जूझ रही है। (संवाद)