मूल चुनावी बांड योजना, 2017 पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और अगली सुनवाई शीघ्र ही होने की उम्मीद है। इस 2017 अधिनियम के प्रावधानों को कानूनी विशेषज्ञों द्वारा पहले ही चुनौती दी जा चुकी है और यहां तक कि चुनाव आयोग ने भी कुछ प्रावधानों के बारे में संदेह व्यक्त किया है। इस समय, इस योजना के माध्यम से चुनाव के लिए संसाधन जुटाने की अनुमति देने के केंद्र के इस कदम का मतलब केवल भाजपा की वित्तीय ताकत को और मजबूत करना है।

संशोधन के कुछ घंटे बाद, केंद्र ने 9 नवंबर से 15 नवंबर तक चुनावी बांड की बिक्री के लिए एक नयी खिड़की खोलने के लिए इसका इस्तेमाल किया। चुनावी बांड मौद्रिक साधन हैं जिन्हें आम नागरिक और कॉरपोरेट भी भारतीय स्टेट बैंक से खरीद सकते हैं और राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं जो इसे नकद में बदलने के लिए स्वतंत्र हैं। केंद्र ने पहली बार जनवरी 2018 में चुनावी बांड पेश किया था।

ये चुनावी बांड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि में खरीद के लिए उपलब्ध हैं। आम चुनावों के वर्षों में अतिरिक्त 30 दिनों की खिड़की की अनुमति है।अब ताजा संशोधन के जरिये केंद्र ने इस साल नवंबर में एक और किश्त की अनुमति दी है। आखिरी सेल इसी साल अक्टूबर में हुई थी। जुलाई 2022 की बिक्री में, चुनावी बांड के माध्यम से कुल दान 10,246 करोड़ रुपयों का था। अक्टूबर 2022 के चंदे का आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन वित्त वर्ष 2020-21 के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भाजपा को वित्त वर्ष के दौरान जुटाये गए कुल धन का 75 प्रतिशत हिस्सा मिला।

पिछले चार वर्षों मेंभाजपा ने कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को अस्थिर करने में सैकड़ों हजार करोड़ रुपये खर्च किये और गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने के लिए विधायकों को खरीदा। महाराष्ट्र मेंयह दिन के उजाले के रूप में स्पष्ट था कि इस साल जुलाई में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से एकनाथ शिंदे समूह के दलबदल को सुनिश्चित करने के लिए भारी धन खर्च किया गया। कुछ सूत्रों ने इसे 200 करोड़ रुपये से अधिक बताया। इसके बाद वहां शिंदे-भाजपा की सरकार बनी। विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने के इन सभी कदमों में, भाजपा ने कॉरपोरेट चंदे और अन्य कुटिल तरीकों से जुटाये गये अपने विशाल उपलब्ध धन का उपयोग किया।

इसी तरह, पांच चुनावी ट्रस्टों ने मिलकर 2021-22 में भाजपा को 481 करोड़ रुपये से अधिक धन दिया जो उनके द्वारा दिये गये धन का 72 प्रतिशत था, जबकि कांग्रेस के उनके किटी का केवल 3.8 प्रतिशत हिस्सा मिला।

बांड या पोल ट्रस्ट से धन प्राप्त करनाही भाजपा के लिए एकरास्ता है क्योंकि जो कंपनियां दान करती हैं वे केंद्र में सत्ताधारी पार्टी का विरोध कर आईटी विभाग, सीबीआई या ईडी के माध्यम से कार्रवाई को आमंत्रित नहीं करना चाहती हैं।

भारतीय कारपोरेटों के बीच यह डर इतना अधिक है कि औद्योगिक परिवारों के युवा वंशज जो आगे देख रहे हैं और भाजपा को पसंद नहीं करते हैं, वे चुप रहते हैं क्योंकि वे अपनी कंपनियों के भविष्य को जोखिम में डालने के लिए तैयार नहीं हैं।

इसका शुद्ध परिणाम यह है कि चुनावों में राजनीतिक पार्टियों के लिए कोई समान अवसर नहीं है। भाजपा विपक्षी दलों के मुकाबले दस गुना ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में है। जरूरत पड़ने पर इसके पास दलबदल करवाने के लिए धन का एक विशाल भंडार है।

मोदी शासन के पिछले आठ वर्षों मेंभारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र में धन का असामान्य संकेंद्रण हुआ है। हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत की बीस सबसे अधिक लाभदायक फर्मों ने 1990 में कुल कॉर्पोरेट लाभ का 14 प्रतिशत, 2010 में 30 प्रतिशत और 2019 में 70 प्रतिशत कमाया।
इसका मतलब यह है कि नरेंद्र मोदी के शासन के पहले पांच वर्षों के दौरान कुछ कॉरपोरेट घरानों में धन के जमा होने में भारी उछाल आया। पिछले तीन वर्षों में इस प्रक्रिया को और बल मिला होगा।

विपक्षी दलों को सरकार की मिलीभगत से लाभ कमाने वाले भारतीय क्रोनी पूंजीपतियों और मोदी शासन के बीच इस सौदेबाजी पर ध्यान केंद्रित करना होगा और इस बात की जांच की मांग करनी होगी कि कैसे बड़े कॉरपोरेट इस दीर्घकालिक व्यवस्था के तहत सत्तारूढ़ दल भाजपा को धन दे रहे हैं। चुनावी बांड योजना में नवीनतम संशोधन विपक्ष को चुनाव में बराबरी का मौका न देकर अपंग करने की भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा है।

दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनावी बांड योजना फिर से सुनवाई के लिए आयेगी। याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ पूरे विपक्ष और लोकतांत्रिक नागरिकों को यह मांग करनी चाहिए कि भारतीय क्रोनी पूंजीपतियों की सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के साथ मिलीभगत से भारतीय लोकतंत्र को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।
चुनावी बांड योजना को उसके वर्तमान स्वरूप में वापस लिया जाना चाहिए।2017 की योजना में केंद्र द्वारा नये संशोधन को एक जीवंत लोकतंत्र के कामकाज के लिए लोकतांत्रिक राय और कानूनी बिरादरी द्वारा एक चुनौती के रूप में लिया जाना चाहिए और सभी स्तरों पर लड़ा जाना चाहिए।नये मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ 9 नवंबर को कार्यभार संभाल रहे हैं। उम्मीद है कि वह चुनावी बांड योजना की गैर-पारदर्शी विशेषताओं पर गंभीरता से विचार करेंगे और लोकतंत्र के हित में निर्णय लेंगे।(संवाद)