सरकार के विमुद्रीकरण और डिजिटलीकरण के उपायों का इस काली अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। इसे रोकने में विफलता पूरे समाज को आहत कर रही है। स्थिति के विश्वसनीय आकलन के अभाव में सरकार काली अर्थव्यवस्था के आकार के बारे में अनभिज्ञ प्रतीत होती है। जो भी हो, व्यस्था को सुधारना एक कठिन काम साबित होगा क्योंकि यह सत्ता में बैठे राजनेताओं, पुलिस और सरकारी अधिकारियों पर पुलिसिंग की मांग करेगा जो काली अर्थव्यवस्था की समृद्धि के पीछे हैं।

काला धन बढ़ रहा है। यही हाल अवैध खनन, तस्करी और संपत्ति निर्माण और हस्तांतरण का है। कुछ गैर-भाजपा शासित राज्यों में नवीनतम सीबीआई और ईडी छापे - हालांकि विपक्ष द्वारा राजनीतिक कहा जाता है - काले धन के लेनदेन, बेनामी संपत्ति हस्तांतरण, अचल संपत्ति लेनदेन, तस्करी और अवैध खनन में भारी वृद्धि को दर्शाता है।

पिछले आठ वर्षों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में औसतन लगभग पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भाजपा ने 2014 में एक प्रचंड जनादेश के साथ भारत के राजनीतिक मंच पर धावा बोला था और 2019 में अधिक नौकरियों, समृद्धि, कम लालफीताशाही, काले धन पर नियंत्रण और बड़े धमाकेदार सुधार का वायदा किया, परन्तु वे ज्यादातर कागजों पर ही रह गये। वास्तव में, देश की समानांतर काली अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में काफी तेजी आयी है।

सरकार का घोषित सकल घरेलू उत्पाद का लक्ष्य 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर का था, अर्थात् मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर, जो अब एक सपना प्रतीत हो रहा है। आठ साल पहलेजब भाजपा सत्ता में आयी थी तब उसने विदेशों में सुरक्षित पनाहगाहों से काला धन वसूल करने और प्रत्येक भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा करने का वायदा किया था।

सरकार की खुद की स्वीकारोक्ति में, नवंबर2016में 500 और 1,000रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण तथा डिजिटलीकरण के बाद भी नकद धन के चलन पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। नकद राजा बना रहा। काला धन बढ़ता रहा। नरेंद्र मोदी सरकार को उम्मीद थी कि नोटबंदी से कम से कम 3-4 लाख करोड़ रुपये का काला धन खत्म हो जायेगा। हालांकि, रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबंदी के कारण जो पैसा अमान्य हो गया था, उसका 99 फीसदी बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गया। 15.41 लाख करोड़ रुपये के अमान्य नोटों में से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट वापस आ गये।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि उन्होंने कभी भी नोटबंदी के विचार का समर्थन नहीं किया और महसूस किया कि अभ्यास का अल्पकालिक दुष्प्रभाव दीर्घकालिक लाभ से अधिक हो सकता है। रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि सिस्टम में काले धन का पता लगाने में विमुद्रीकरण एक विफलता थी। नवंबर 2016 मेंजब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्च मुद्रा नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा की, तो उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से काले धन से लड़ने के लिए यह कदम उठाया था।

सरकार बाजार में नकली नोटों के चलन को रोकने में भी विफल रही। नकली नोटों की बढ़ती उपस्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। रिजर्व बैंक ने 500 रुपये के नकली नोटों में 101.93 प्रतिशत की वृद्धि का पता लगाया, जबकि 2021-22 के दौरान 2,000 रुपये के नकली नोटों में 54 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि वित्त वर्ष 2022में क्रमशः 10 रुपये और 20 रुपये के नकली नोटों में 16.45 और 16.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 200 रुपये के नकली नोट 11.7 फीसदी बढ़े। रिपोर्ट में दिखाया गया है कि 50 और 100 के मूल्यवर्ग में पाये गये नकली नोटों में क्रमशः 28.65 और 16.71 प्रतिशत की गिरावट आयी है। उनमें से 6.9 प्रतिशत रिजर्व बैंक में जबकि बाकी 93.1 प्रतिशत अन्य बैंकों में पाये गये।

नोट छापने की प्रौद्योगिकी में प्रगति हुई तथा सरकारी स्तर पर दावा किया गया कि नकली नोट छापना अब इतिहास की बात हो जायेकी। परन्तु नकली नोट छापने वालों ने भी प्रगति की तथा नकली नोटों की छपाई भी होती रही। कहा जाता है कि नकली भारतीय रुपये के नोट ज्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में छापे जाते हैं।

भारत की काली अर्थव्यवस्था के विकास में अवैध खनन और उत्खनन का प्रमुख योगदान है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट में 2013 और 2017 के बीच अवैध खनन की 4,16,000 घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है। देश में हर साल कम से कम एक लाख अवैध खनन की घटनाएं होती हैं। "हर महीने, अवैध खनन के 8,833 मामले, हर दिन 294 और हर घंटे 12 घटनाएं हुईं"। देश की कुछ नदियों और पहाड़ियों को अवैध रूप से खोदा जाता है। भारत की खनिज संपदा को खुलेआम लूटा जाता है। अवैध खनन के मामले पुलिस या कोर्ट तक कम ही पहुंचते हैं। उदाहरण के लिए, 2016 में अवैध खनन के 1,07,609 मामले दर्ज किए गये थे। उनमें सेपुलिस में केवल 6,033 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। खनन माफिया इतने दबंग हैं कि उन्हें रोकना मुश्किल हो गया है। अपराधी रिश्वतखोरी, गुंडागर्दी और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के क्षत्रपों, पुलिस और सरकारी अधिकारियों के साथ मिलीभगत जैसे आमतौर पर प्रचलित साधनों का उपयोग करके आसानी से भागने और बच निकलने का प्रबंध कर लेते हैं। इस मुद्दे पर बहुत कम सार्वजनिक चर्चा या बहस होती है।

अनौपचारिक रिपोर्टों से पता चलता है कि हवाला गिरोह सोने की तस्करी से प्राप्त होने वाले लाभ से अधिक लाभ कमाते हैं। उनका व्यवसाय सऊदी अरब से हवाला के पैसे को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाना है। नकदी में समृद्ध लोगों के बीच अवैध धन हस्तांतरण में मदद करने वाला व्यवसाय लगातार बढ़ रहा है। हवाला गतिविधियों का इस्तेमाल आमतौर पर मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और मादक पदार्थों की तस्करी के लिए भी किया जाता है। हवाला हस्तांतरण प्रणाली तेज, कुशल और गुमनाम है।

हाल के वर्षों में दुनिया भर में हवाला प्रणाली जांच के दायरे में आयी है क्योंकि इसका इस्तेमाल अक्सर आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है।यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी हवाला प्रणाली को नियंत्रित करने और आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने से रोकने के लिए नियम बनाये हैं। यह प्रणाली लंबे समय से भारत में मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग और देश में रहने वाले लोगों और विदेशों में उनके संपर्कों के बीच फंड ट्रांसफर के लिए लोकप्रिय है। एक पारंपरिक धन हस्तांतरण प्रणालीहवाला भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देशों में लोकप्रिय है। यह प्रणाली हवाला दलालों और हवालादारों के बीच विश्वास और व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित है। हवाला लेनदेन को नियंत्रित करने में भारत का रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। बढ़ते हवाला रैकेट के बारे में बहुत कम जानकारी है।

भारत की श्वेत अर्थव्यवस्था उसकी काली अर्थव्यवस्था से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने 2017 में प्रकाशित अपनी पुस्तक द ब्लैक इकोनॉमी इन इंडिया में इसे अच्छी तरह से समझाया था। जहां 1991 मेंकाली अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का लगभग 35 प्रतिशत थी, यह कथित तौर पर 2013 तक बढ़कर 62 प्रतिशत हो गयी थी। हानिकारक काली आय या अवैध संपत्ति निर्माण और मैक्रोइकॉनॉमी में उनका हस्तांतरण तथा समाज में उसके दुष्परिणाम सबको मालूम हैं। केवल एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति ही व्यवस्था को नियंत्रित कर सकती है। दुर्भाग्य से, यह देश में पूरी तरह से गायब प्रतीत होता है। (संवाद)