अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार विश्लेषण से स्थिति अधिक स्पष्ट हो जाती है। उदाहरणार्थ, औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र को लें। सरकार द्वारा जारी आँकड़ों से स्पष्ट है कि फरवरी के 15.1 प्रतिशत की तुलना में मार्च में उत्पादन गिरकर 13.5 प्रतिशत पर आ गया। परन्तु हकीकत में, पूरे वित्त वर्ष के दौरान उससे पहले वाले वित्त वर्ष की तुलना में 2.8 प्रतिशत अधिक अर्थात 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वास्वत में यह एक बड़ी उपलब्धि है, खासकर तब जब दुनिया भर मंदी का प्रकोप छाया था। यह सब संभव हो पाया सरकार के उन राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के कारण, जो मांग और आपूर्ति को बढा़वा देने के लिए शुरू किए गए थे।

कृषि क्षेत्र में स्थिति कुछ असहज अवश्य है। इसका मुख्य कारण खराब मानसून रहा है, जिससे कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। पिछले वर्ष 22 प्रतिशत कम वर्षा हुई।

कृषि उत्पादन के अग्रिम अनुमानों के अनुसार खाद्यान्न उत्पादन में 7 प्रतिशत कमी हो सकती है। खराब मानसून के बावजूद, गेहूँ का रिकार्ड उत्पादन हुआ है, परन्तु चावल और मोटे अनाजों के उत्पादन में आई कमी से कुल कृषि उत्पादन 229 मी.टन से गिरकर 218 मी. टन पर आ सकता है। इस प्रकार करीब 11 मी.टन की कमी रहेगी।

संतोष की बात यह है कि मौसम विभाग ने इस वर्ष समय पर सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की है। मौसम विभाग का कहना है कि मानसून केरल में 30 मई तक आ जाएगा। इस अनुमान में तीन-चार दिन आगे पीछे हो सकते हैं। सौभाग्य से, पिछले 4-5 वर्षों से मौसम विभाग की भविष्यवाणियां और अनुमान सही होते रहे हैं। विभाग ने इस वर्ष सामान्य वर्षा का अनुमान लगाया है। दीर्घावधि औसत में 4-5 प्रतिशत की भूलचूक के साथ, इस वर्ष 98 प्रतिशत सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की गई है। यह अनुमान समूचे देश को ध्यान में रखकर लगाया गया है। अनुमानों के अनुसार यदि इस वर्ष समय पर अच्छी वर्षा होती है तो हम पिछले वर्ष के घाटे और अभाव को काफी हद तक पूरा कर लेंगे।

निर्यात क्षेत्र में, मामला उत्साहजनक भी है और हतोत्साहित करने वाला भी। हतोत्साहित करने वाला इसलिए कि यही वह क्षेत्र है जिस पर वैश्विक मंदी का सबसे भीषण प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप निर्यात में भारी गिरावट आई, जिसके कारण रोजगार कम हो गए और विदेशी मुद्रा की कमाई पर असर पड़ा। उत्साहवर्धक इसलिए कि इन सब परेशानियों के बावजूद, निर्यात क्षेत्र ने वैश्विक चुनौतियों का डटकर सामना किया और हार नहीं मानी। नतीजा यह हुआ है कि पिछले 6 महीनों के दौरान निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वर्ष मार्च में 54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। परन्तु सरकार ने व्यापार क्षेत्र के जो वार्षिक आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार 2008-09 की तुलना में 2009-10 में 4.7 प्रतिशत की कमी आई है। कुल निर्यात 17 खरब 65 अरब डॉलर (यूएस) का रहा। रुपए के मूल्य में सुधार का जो आनुषंगिक प्रभाव है, उसको लेकर भी उद्योग जगत में चिन्ता बनी हुई है, क्योंकि इससे निर्यात की प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव पड़ता है। इस वर्ष डॉलर की तुलना में रुपए के मूल्य में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

परन्तु एक सुखद पहलू यह है कि वर्ष 2008-09 की तुलना में वर्ष 2009-10 के दौरान आयात में भी 8.2 प्रतिशत की कमी आई। इस वर्ष कुल 27 खरब 87 अरब डॉलर का आयात हुआ। इसके कारण व्यापार घाटा भी 2008-09 के एक खरब 18 अरब डॉलर से घटकर 2009-10 में 1 खरब 2 अरब डॉलर रह गया। वाणिज्य मंत्रालय ने इस वित्त वर्ष के लिए अब 2 खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य निर्धारित किया है।

परन्तु सब ज्सेयादा चुनौती वाला क्षेत्र मुद्रास्फीति की उच्च दर है, जोकि दहाई अंकों को छूने लगा है। खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति बढक़र 19 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो सरकार के लिए काफी चिन्ता का विषय है, क्योंकि मुद्रास्फीति की उच्च दर से समाज का कमजोर और वंचित वर्ग सीधे प्रभावित होता है। जैसा कि वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने हाल ही में समावेशी विकास और प्रगति के क्रियान्वयन पर केन्द्रित राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि आर्थिक विकास की उच्च दर के बावजूद अर्थव्यवस्था के लाभ निचले स्तर तक नहीं पहुंचे हैं और हमारे समाज के बहुत बड़े तबके को अभी भी इस विकास यात्रा में सहयात्री बनने का सौभाग्य नहीं मिला है। हालांकि उन्होंने विश्वास जताया है कि इस वर्ष अच्छे मानसून की संभावना को देखते हुए खाद्यान्न मुद्रास्फीति में अगले कुछ महीनों में काफी कमी आ जाएगी और यह प्रवृत्ति शुरू भी हो चुकी है। अप्रैल माह में मुद्रास्फीति में मामूली गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल में यह दर 9.59 प्रतिशत रही, जबकि मार्च में मुद्रास्फीति की दर 9.9 प्रतिशत थी। अनुमान है कि अगले तीन महीनों के दौरान मुद्रास्फीति में उतार-चढा़व होता रहेगा और इसके बाद उसमें गिरावट आने लगेगी। सरकार इस बात को लेकर आश्वस्त है कि इस वित्त वर्ष की समाप्ति तक मुद्रास्फीति की दर को 5.5 प्रतिशत के निचले स्तर तक लाया जा सकेगा।

बाजार में मांग को बढा़वा देने के लिए सरकार ने जो प्रोत्साहन पैकेज पिछले वर्ष दिए, उसने निश्चित रूप से अपना प्रभाव दिखाया है, परन्तु इससे मुद्रास्फीति में वृद्धि की प्रवृत्ति और राजकोषीय घाटे को भी बढा़वा मिला है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले महीने रिपो और रिवर्स रिपो दरों में मामूली वृद्धि कर नकदी प्रवाह को नियमित करने की दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु बड़े कदम संभवत: बाद में ही उठाए जाएंगे।

विश्व आर्थिक परिदृश्य में अनुमान लगाया गया है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर 2011 तक 8.8 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। सरकार दरअसल, इससे अधिक हासिल करने के प्रयास में है। आने वाले वर्षों में विकास दर दहाई अंकों तक ले जाने की कोशिश हो रही है। इसे हासिल करने की कुंजी उचित नीतियों, समय पर कार्रवाई और इन सबसे ऊपर मौसम की मेहरबानी में निहित है।